आंकड़ों पर नजर डालें तो अब तक पिन्नाराई सरकार में संघ या भाजपा के 14 कार्यकर्त्ता अपने जान से हाथ धो चुके हैं और सैकड़ों गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। केवल भाजपा ही नहीं, कांग्रेस और यहाँ तक कि सीपीआई के कार्यकर्ता भी मार्क्सवादी हिंसा के शिकार होते आये हैं, परन्तु विचारकों की एक बड़ी फौज पता नहीं क्यों मार्क्स और स्टालिनवादी केरल सरकार की इस विफलता पर पर्दा डालने पर आमादा है। केरल में 1967 के बाद से अब तक 290 से ज्यादा भाजपा संघ के कार्यकर्ता राजनैतिक हिंसा में अपनी जान गँवा चुके हैं।
केरल में राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध पिन्नाराई सरकार की शह पर वामपंथियों के द्वारा लगातार की जा रही घात-प्रतिघात की राजनीति के विरुद्ध भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में चली जनरक्षा यात्रा को अभी 1 महीने भी नहीं पूरे हुए थे कि संघ का एक और स्वयंसेवक फिर से वामपंथियों की रक्तरंजित राजनीति का शिकार हो गया है। त्रिसूर जिले के अंतर्गत नेन्मेनिक्करा निवासी संघ के कार्यकर्ता आनंद (26) की हत्या रविवार दिनांक १२ नवम्बर की दोपहर उस समय कर दी गयी, जब वे अपने मोटर साइकिल से कहीं जा रहे थे| पहले उनकी गाड़ी को किसी भारी वाहन ने टक्कर मारी और जब वो असहाय रोड पर पड़े हुए थे, तो कायर कम्युनिस्टों ने उनकी नृशंस हत्या कर दी।
केरल भाजपा अध्यक्ष कुम्मानम राजशेखरन ने मार्क्सवादियों की हिंसावादी राजनीति के प्रति आसक्ति को इस घटना की मुख्य वजह बताते हुए मामले पर कड़ा प्रतिरोध दर्ज किया है। वामपंथियों के इस जघन्य अपराध के विरुद्ध गुरुवयुर शहर में सोमवार को बंद का आह्वान भी किया गया है। यह घटना तब हुई है, जब एबीवीपी पूरे देश में केरल में लगातार हो रही इन राजनैतिक हिंसाओं के विरुद्ध चलो केरल के नाम से अभियान चला रहा है और प्रदेश में पूरे देश से विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्त्ता पहुँच रहे हैं।
यहाँ यह बताते चलें कि यह वही गुरुवयुर शहर है, जहाँ आज से 9 साल पहले 28 फ़रवरी, 2008 को एबीवीपी के नेता सनूप की श्री कृष्णा कॉलेज के अध्यक्ष चुने जाने के कारण एसएफआई के नेताओं ने इतनी पिटाई की थी कि गंभीर जख्म के कारण उनके बायीं आँख को निकलना पड़ा था। परन्तु, इसके बाद भी वो सनूप के हौसले को तोड़ नहीं पाए। वे आज भी जगह-जगह जाकर वामपंथियों की हिंसा का सबूत अपनी नकली आँख दिखा कर पेश करते हैं। उनके अपराधियों को आज भी समुचित सजा नहीं मिली है।
यहाँ ध्यातव्य हो कि दिनांक 3 से 16 अक्तूबर तक भाजपा ने हिंसा की राजनीति के विरुद्ध जनजागरण और इस मुद्दे पर राष्ट्रीय विमर्श हेतु केरल में पदयात्रा का आयोजन किया था। इस यात्रा में पूरे देश से भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और केन्द्रीय मंत्रियों ने हिस्सा भी लिया था। इस यात्रा का एक उद्देश्य केरल की वामपंथी सरकार को लोकतंत्र में राजनैतिक विरोधियों के प्रति उसकी जिम्मेदारी के प्रति सजग कराने का भी था। पूरे देश में छोटी-छोटी घटनाओं पर नागरिक अधिकारों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले वामपंथी नेता और उनके तथाकथित चिन्तक केरल की घटना पर मौन ही रहते हैं और लाल झंडे की बुलंदी केरल में सलामत रखने हेतु इस तरह की हिंसा को तरह-तरह के तर्क गढ़ कर परोक्ष रूप से जायज भी ठहराते हैं।
वामपंथियों की बेशर्मी का ये आलम है कि जिस दिन प्रदेश में जनरक्षा यात्रा की शुरूआत हुई, उसी दिन यात्रा में शामिल होने जा रहे कासरगोड के कार्यकर्त्ताओं की गाड़ी पर पल्लिकरा में हमला किया गया। इसके अगले ही दिन 4 अक्तूबर को विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्त्ता एवं कन्नूर के एक आईटीआई के प्रथम वर्ष के छात्र आनंद पर एसएफआई और डी.वाय.एफ.आई के गुंडों ने हमला कर अस्पताल में भर्ती करवा दिया। इनकी हिंसा केवल संघ या भाजपा तक ही नहीं रूकती, इसी हफ्ते इन्होने फिर एलप्पी एस. डी. कॉलेज की एक छात्रा की कांग्रेस की छात्र इकाई शुरू करने के कारण लोहे के रॉड से पिटाई कर दी एवं कपड़े भी फाड़ दिए। फिर 5 अक्तूबर को मार्क्सवादियों ने कंजानगड में जनरक्षा यात्रा से लौट रहे भाजपा कार्यकर्ता पर हमला कर दिया। यात्रा के अंतिम पड़ाव पर भी 15 अक्तूबर को कन्नूर में आरएसएस के मंडल कार्यवाह पी. निधीश पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें उन्हें काफी गंभीर चोटें आई।
बोल्शेविक के क्रांतिकारियों का अपने 100वें साल में केरल की धरती पर ये हाल तब था, जब वे सत्तानशीं हैं और पूरे देश की मीडिया की नज़र उनपर थी। फिर अन्य दिनों में वहाँ राजनीति कितनी हिंसात्मक होती होगी ये सोच के भी डर लगता है। परन्तु, बड़े-बड़े टीवी चैनलों पर बैठे राजनैतिक विश्लेषकों के लिए ये बात समझ से परे है, जब तक कि वो खुद केरल की जमीनी हकीकत देख ना आयें कि वहाँ आपका वामपंथी विचारधारा के विरुद्ध खड़ा होना कितना जोखिम भरा काम है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो अब तक पिन्नाराई सरकार में संघ या भाजपा के 14 कार्यकर्त्ता अपने जान से हाथ धो चुके हैं और सैकड़ों गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। केवल भाजपा ही नहीं, कांग्रेस और यहाँ तक कि सीपीआई के कार्यकर्ता भी मार्क्सवादी हिंसा के शिकार होते आये हैं, परन्तु विचारकों की एक बड़ी फौज पता नहीं क्यों मार्क्स और स्टालिनवादी केरल सरकार की इस विफलता पर पर्दा डालने पर आमादा है। केरल में 1967 के बाद से अब तक 290 से ज्यादा भाजपा संघ के कार्यकर्ता राजनैतिक हिंसा में अपनी जान गँवा चुके हैं।
जनरक्षा यात्रा के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने वामपंथी नेताओं और सरकार से आग्रह किया था कि प्रतिद्वंदिता ही करनी है, तो भाजपा शासित राज्यों और केरल के बीच विकास की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की जाय। विचारधारा की ही लड़ाई करनी है, तो कौन अपने राज्य के नागरिकों के जीवन को ज्यादा बेहतर कर सकता है, इसकी लड़ाई की जाय। परन्तु, विकास की विचारधारा मार्क्सवादियों के समझ से बाहर लग रही है।
संघ के एक और स्वयंसेवक की हत्या तो कम से कम यही इशारा कर रही है कि सभ्य समाज के नियमों और लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति अनासक्ति रखने वाले वामपंथी शायद ही अपने संवैधानिक दायित्वों का अनुपालन कर पाएंगे। पिन्नाराई सरकार का १८ महीनों का अबतक का कार्यकाल काफी निराशाजनक रहा है। केरल की आम जनता को ही अब कुछ निर्णय लेना पड़ेगा कि किस तरह केरल में यह वामपंथी हिंसा का तांडव समाप्त हो एवं विरोध और विपक्षियों के बोलने की आज़ादी केरल में भी इकबाल हो।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान में शोधार्थी हैं। ये उनके उनके निजी विचार हैं।)