प्रश्न यह है कि किसी अपराध के आरोपी यदि बरी हो जाएं तो इससे अपराध कैसे समाप्त हो सकता है ? सही है कि शायद ख़राब जांच के कारण सबूतों के अभाव में 2जी के आरोपी फिलहाल बरी हो गए हैं, मगर इससे यह कहाँ प्रमाणित हो जाता है कि ये घोटाला हुआ ही नहीं था। अब अगर ऐसे चलें तब तो किसी चोरी के मामले में अगर चोर पकड़ा नहीं जाता तो यह मान लेना चाहिए कि चोरी हुई नहीं है। जाहिर है, 2जी घोटाले को झूठ बताना सिर्फ कांग्रेस नेताओं का कोरा राजनीतिक दावा है, जिसमें कुछ भी ठोस नहीं है।
यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में सामने आए एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ के घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा, कनिमोझी, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के तत्कालीन निजी सचिव आरके चंदोलिया समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कुछ भी साबित कर पाने में नाकाम रहा। अदालत के इस फैसले के बाद से ही कांग्रेस आक्रामक हो गयी है। कांग्रेसी नेता 2जी घोटाले को ही झूठा बताते हुए यह कहने में लगे हैं कि ऐसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं था। साथ ही, इस मुद्दे को उठाने के लिए भाजपा से माफ़ी की मांग भी की जा रही है।
प्रश्न यह है कि किसी अपराध के आरोपी यदि बरी हो जाएं तो इससे अपराध कैसे समाप्त हो सकता है ? सही है कि शायद ख़राब जांच के कारण सबूतों के अभाव में 2जी के आरोपी फिलहाल बरी हो गए हैं, मगर इससे यह कहाँ प्रमाणित हो जाता है कि ये घोटाला हुआ ही नहीं था। अब अगर ऐसे चलें तब तो किसी चोरी के मामले में अगर चोर पकड़ा नहीं जाता तो यह मान लेना चाहिए कि चोरी हुई नहीं है। जाहिर है, 2जी घोटाले को झूठ बताना सिर्फ कांग्रेस नेताओं का कोरा राजनीतिक दावा है, जिसमें कुछ भी ठोस नहीं है।
यहाँ कई ऐसी बातें हैं, जिनके आधार पर यह स्पष्ट होता है कि 2जी घोटाला अपने आप में एक सच्चाई है, जिसको झुठलाया नहीं जा सकता। पहली चीज कि अदालत ने आरोपियों को बरी करते हुए कहीं नहीं कहा कि घोटाला झूठा है। दूसरी चीज कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस घोटाले के उजागर होने के पश्चात् स्पेक्ट्रम की नीलामी रद्द कर दी गयी थी।
दूसरी बात कि ये घोटाला जब सामने आया था, तब सत्ता में किसी और दल की नहीं खुद कांग्रेसनीत संप्रग की ही सरकार थी। ऐसे में, इस तरह की किसी आशंका का कोई आधार नहीं है कि यह किसी राजनीतिक साज़िश से प्रेरित मामला था। अगर कोई ये कहे कि ये वास्तविक घोटाला होता तो तत्कालीन सरकार इसे दबा देती, तो इसका जवाब यह है कि इसे कैग द्वारा उजागर किया गया था, जो कि संवैधानिक रूप से स्वायत्त संस्था है, अतः तत्कालीन सरकार चाहकर भी इसे दबा नहीं सकती थी। कैग द्वारा अक्सर अपने ऑडिट के माध्यम से इस तरह की सच्चाईयों सामने लाई जाती रही हैं।
सैद्धांतिक रूप से कैग पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है और अगर कैग का मुखिया कोई मजबूत व्यक्ति हो, तो इस सैद्धान्तिकता को व्यवहार में बदलना उसके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। 2जी घोटाले के समय विनोद राय के रूप में एक मजबूत और ईमानदार व्यक्ति कैग प्रमुख था, जिससे यह मामला सामने आ सका। 1972 बैच के केरला कैडर से आईएएस विनोद राय 2008 से लेकर 2013 तक कैग के प्रमुख रहे। वर्तमान में वह संयुक्त राष्ट्र के एक्सटर्नल ऑडिटर्स पैनल के अध्यक्ष हैं। विनोद राय के ही कार्यकाल में कैग ने कोयला घोटाले का भी पर्दाफाश किया था। ये कारण है कि वे शुरू से ही कांग्रेस के निशाने पर रहे।
इन तथ्यों से मोटे तौर पर यह समझा जा सकता है कि 2जी घोटाला कोई झूठ नहीं, एक सरकार की संगठित लूट का उदाहरण है। अब रही बात इस मामले में अभियोजन पक्ष के कुछ साबित न कर पाने की तो चूंकि, इस घोटाले के सामने आने के बाद लम्बे समय तक कांग्रेस सत्ता में रही थी, इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रभाव का इस्तेमाल कर सबूत खत्म करवा दिए गए हों। या यह भी हो सकता है कि सबकी मिली-भगत से इसे ऐसे अंजाम ही दिया गया हो कि आगे कुछ भी साबित कर पाना बेहद कठिन सिद्ध हो जाए।
अब जो भी हो, मगर आरोपियों के ‘सबूतों के अभाव में बरी’ होने पर ये कहना कि ये घोटाला हुआ ही नहीं था, कतई उचित नहीं है। अभी ये मामला उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक जा सकता है, जहां और बेहतर ढंग से तथ्यों की पड़ताल होगी। अतः बरी होने वाले एकदम निश्चितं न हों, अभी उनपर से गिरफ्तारी की तलवार पूरी तरह से नहीं हटी है। सीबीआई और सबूतों के साथ अब उच्च न्यायालय में अपील की तैयारी में लग गयी है, अतः बरी होने वाले अभी अपनी आँखें खुली रखें, क्योंकि तस्वीर कभी भी बदल सकती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)