भारत ने अपने सभी आठ पूर्वोत्तर राज्यों के माध्यम से आसियान देशों के साथ आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल दिया है। साथ ही, म्यांमार, थाईलैंड, भारत त्रिपक्षीय एक्सप्रेस-वे के द्वारा पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों की राजधानियां आसियान देशों से जोड़ने पर भी ध्यान केन्द्रित किया है। इसके साथ ही भारत, नेपाल, बाग्लादेश, भूटान चारों को जोड़ने वाली सड़क के निर्माण का कार्य जारी है। इस सम्पूर्ण विकास से आसियान के साथ परिवहन की दृष्टि से एक नया गठजोड़ स्थापित होगा जो आने वाले समय में भारत और आसियान देशो के मध्य स्थापित संबंधों को एक नया आयाम प्रदान करेगा।
भारत-आसियान संबंधो की रजत जयंती के अवसर पर इस बार गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आसियान के सदस्य-देशों के नेताओं को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। यह सिर्फ एक औपचारिकता वश ही नहीं था, बल्कि इसको मोदी सरकार के द्वारा अपनी कूटनीति को नये रूप में दक्षिण पूर्व एशिया में अपने वर्चस्व को बढ़ाने तथा इस क्षेत्र में चीन का जो वर्चस्व है, उससे संतुलन स्थापित करने के रूप में देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की प्रभावशाली उपस्थिति को सपूर्ण विश्व के समक्ष लाने को लेकर खासा संजीदा रहे हैं। उनकी इस कूटनीतिक शैली की यह खासियत है कि अपने शपथ-ग्रहण समारोह के अवसर पर उन्होंने सबको चकित करते हुए पड़ोसी मुल्कों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित किया था। उन्होंने आसियान के तमाम प्रमुखों को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करके एक बार फिर पिछले प्रयासों की यादो को ताजा कर दिया है। इस कूटनीति के माध्यम से भारत ने पूरे विश्व को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि क्षेत्रीय और वैश्विक समस्याओं का निवारण एक-दूसरे की भावनाओं को सम्मान देकर ही किया जा सकता है।
आसियान की स्थापना एक आर्थिक और कारोबारी संगठन के रूप में 1967 में हुई थी। प्रारंभ में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, सिंगापुर इसके सदस्य थे। ब्रुनेई, वियतनाम, म्यांमार, कम्बोडिया और लाओस बाद में इसके सदस्य बने थे। परन्तु, वर्तमान समय में बदलते वैश्विक आर्थिक वातावरण में इसकी सोच और सदस्यों की संख्या दोनों ही अधिक व्यापक हुए हैं। यह अपने सदस्य देशों के बीच में लोकतांत्रिक व उदार मूल्यों की स्थापना करने ओर आसियान देशो के बीच में सौहार्द व सहनशीलतापूर्ण वातावरण को बनाने को तवज्जो देने लगा है, आज के समय में सबसे उद्दंड सदस्य देश भी अपने विचार किसी पर नहीं थोपता। इसका ही परिणाम है कि क्षेत्र में पैदा हुए तमाम तनावों के बावजूद आसियान एक सुसंगत व सुगठित संगठन बना हुआ है, जिस कारण आज सम्पूर्ण विश्व के तमाम सगंठनों के लिए एक आदर्श माना जा रहा है।
भारतीय गणतंत्र दिवस पर की गई इस कूटनीतिक पहल ने भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ यानी ‘पूरब की ओर देखो’ नीति को एक नया रूप देने का प्रयास किया है। इसके तहत भारत ने अपने पूर्वी हिस्से की तरफ उभरते हुए विकासशील देशों को महत्व दिया है, जहां पर भविष्य में भी आपसी सहयोग व साझा आर्थिक लाभ के बीज मौजूद रहेंगे । दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के सम्बन्ध अति-प्राचीन काल से ही मधुर रहे हैं। कई आसियान देशों में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। सिंगापुर में तो नब्बे प्रतिशत आबादी बौद्धों की है।
इसके अलावा आसियान के कई देशों में रामकथा व्यापक रूप से प्रचलित है। यहां तक कि कई देशों में राजकीय प्रतीकों में रामायण से संबंधित प्रमाण हमको देखने को मिलते हैं। विश्व में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में भी रामायण संस्कृति पर विश्वास किया जाता हैं। इन देशो ने अपनी उपासना पद्धति को भले ही बदल दिया हो, लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत को नहीं छोड़ा। आसियान के कई देशों में रामलीला का मंचन बहुत लोकप्रिय है। यह सभी सांस्कृतिक और धार्मिक सूत्र भारत और आसियान देशों के बीच रिश्तों को मजबूत बनाते हैं।
भारत और आसियान देशों के मध्य में पहले भी आर्थिक, राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कई विषयों पर विचर विमर्श हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसियान देशों के नेताओं को इस अवसर पर बुला कर द्विपक्षीय वार्ताएं कीं, जिसमें ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा-राहत, समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दे पर सहयोग देने की बात हुई। भारत ने अपने सभी आठ पूर्वोत्तर राज्यों के माध्यम से आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल दिया है। साथ ही, म्यांमार, थाईलैंड, भारत त्रिपक्षीय एक्सप्रेस-वे के द्वारा पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों की राजधानियां आसियान देशों से जोड़ने पर भी ध्यान केन्द्रित किया है। इसके साथ ही भारत, नेपाल, बाग्लादेश, भूटान चारों को जोड़ने वाली सड़क के निर्माण का कार्य जारी है। इस सम्पूर्ण विकास से आसियान के साथ परिवहन की दृष्टि से एक नया गठजोड़ स्थापित होगा जो आने वाले समय में भारत और आसियान देशों के मध्य स्थापित संबंधों को एक नया आयाम प्रदान करेगा।
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी आसियान देशों के नेताओं के साथ में आतंकवाद पर भी चिंता जाहिर की। इससे मुकाबले करने के लिए साझा रणनीति बनाने पर भी सहमति बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और आसियान के दस देशों के बीच में समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति जाहिर की है। इसके साथ ही समुद्री इलाके के न्यायसंगत उपयोग के लिए साझेदारी बढ़ाने के लिए समुद्री कानून पर आधारित एक तंत्र बनाये जाने की बात कही है।
चीन आज विश्व में एक मैन्युफैक्चरिंग शक्ति के रूप में उभरा कर आ रहा है, जिसकी पहुंच धीरे-धीरे विश्वव्यापी होती जा रही है, साथ ही वो आर्थिक व सामरिक दृष्टि से समुद्र में भी अपनी ताकत को बढ़ा रहा है। खासकर हिंद महासागर में उसके नौसैनिकों की मौजूदगी जिस तेजी से बढ़ रही है, उससे अपनी समुद्री सीमा को लेकर पड़ोसी देशो के बीच में विवाद उत्पन्न हो रहा है। इन्हीं मतभेदों की वजह से इस क्षेत्र में समय-समय पर तनाव भी देखने को मिलता है। यह सही है कि अभी हाल फ़िलहाल में कोई बड़ा सैन्य टकराव नहीं हुआ है, लेकिन जब भारत और आसियान के बीच संबंधों का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है, तो हिंद महासागर की स्थिति को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
इसका ही परिणाम है कि भारत और आसियान देशो द्वारा जारी घोषणापत्र मे मुख्य रूप से किसी भी देश को वैसा विस्तारवादी रवैया अपनाने की इजाजत नहीं देने की बात की गयी, जैसा कि चीन ने अपनाया हुआ है। चीन ने अपनी आर्थिक शक्ति के बल पर जो अनुचित रवैया इस क्षेत्र के अन्य देशों के प्रति अपनाता है, उसके प्रति भी आगाह किया गया। इसके साथ ही समुद्री इलाके के न्याय संगत उपयोग के लिए साझेदारी बढ़ाने के लिए समुद्री कानून पर आधारित एक तंत्र बनाये जाने की भी बात की गयी।
भारत-आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आसियान देशों के साथ समुद्री क्षेत्र में आपसी सहयोग को बहुत अहम बताया था। भारत और आसियान देशों ने समुद्री क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने के साथ ही समुद्र से संबंधित नियम-कायदों का अनुपालन सुनिश्चित करने का आह्वान किया, जो कि स्वाभाविक तौर पर चीन को रास नहीं आ रहा है। इस मौके पर जारी हुआ घोषणापत्र जिसमें 1982 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मंजूर किए गए समुद्र संबंधी कानूनों, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन और अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन द्वारा संस्तुत मानकों और व्यवहारों के मुताबिक मतभेदों तथा विवादों के निपटारे की वकालत की गई है।
कुछ हद तक हम मान सकते हैं कि आसियान के सभी सदस्य देश चीन के विरुद्ध मुखर होना नहीं चाहते। लेकिन, उनका भारत के साथ मिलकर मुक्त नौवहन का पक्ष लेना या समुद्री आवाजाही के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित नियम-कायदों की बात करना अपने आप में यह दिखाता है कि वे चीन के दबदबे से आक्रांत हैं और इससे निकलना चाहते हैं। भारत को चाहिए कि वह अपनी ‘एक्ट ईस्ट नीति’ के अलावा अन्य विकल्प जैसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए जापान, भारत, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के प्रस्तावित समूह को प्रमुखता दे ताकि आसियान देश के नेताओं का दिल्ली आना, भारत-आसियान रजत जयंती शिखर सम्मेलन और इस मौके पर जारी हुआ दिल्ली घोषणापत्र एक अहम मुकाम हांसिल कर सके।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)