अमेरिका की नयी अफगानिस्तान नीति से पाकिस्तान बाहर, भारत को होगा लाभ

ट्रम्प की बातों का आशय यह है कि पाक़िस्तान अमेरिका को बेवक़ूफ़ बना रहा है, अमेरिकी सहायता का वह आतंकवाद ख़त्म करने की बजाय अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किए जा रहा है। अमेरिका की नीति साफ़ है, देश अब आतंकियों और आतंकियों के सहयोगियों पर पैसे नहीं लगा सकता। पाक़िस्तान आतंकवाद का सहयोगी रहा है और अमेरिका धीरे धीरे अब पाक़िस्तान की  मित्रता से कदम पीछे खींच रहा है।

‘मदरशिप ऑफ़ टेररिज्म’ यानी आतंकवाद पैदा करने वाले देश का दर्जा पिछले ही साल अक्टूबर के ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को दिया था। अब धीरे-धीरे दुनिया के महाशक्ति देश भी भारत की बात के समर्थन में खड़े होने लगे हैं। बीते 21 अगस्त को अमेरिका के प्रधानमंत्री डोनाल्ड ट्रम्प ने भी अपने भाषण में पाकिस्तान को आतंक फैलाने वाला देश कह दिया।  ट्रम्प ने तीन बार अपने भाषण में पाकिस्तान का जिक्र किया और कहा कि पाक़िस्तान को हक़्क़ानी और दूसरे तालिबान गिरोहियों का साथ जल्द ही छोड़ना होगा जो अफ़ग़ानिस्तान में आतंक फैला रहे हैं।  हक़्क़ानी गिरोह अफ़ग़ानी तालिबान की  एक शाखा है।  

ट्रम्प की शुरूआती नीतियां और बयान थोड़े अलग रहे हैं।  ट्रम्प युद्ध या आतंकी गतिविधियों के खात्मे के लिए अमेरिकी सेना को भेजने के पक्ष में नहीं थे, न ही किसी आतंकी कार्रवाई का कोई हिस्सा बनना चाहते थे। व्यापारिक पृष्ठ्भूमि के ट्रम्प,  पूंजी व्यापार में लगाना चाहते थे न कि युद्ध में बर्बाद करना।  शुरू से ही उन्होंने बयान दिया है कि पूंजी गलत जगह निवेश की जा रही है, आतंकी गतिविधियों के खात्मे में अमेरिका अब पैसा और सेना बर्बाद नहीं कर सकता।  

नवाज शरीफ और डोनाल्ड ट्रंप (सांकेतिक चित्र)

लेकिन, हाल ही में ट्रम्प का बयान आया है कि अफ़ग़ानिस्तान में आतंक को कम करना बहुत ज़रूरी हो चुका है और वहां से पीछे हटने का मतलब शहीद हुई अमेरिकी सेना का अपमान करना होगा। ट्रम्प हर वो प्रयास करने की बात कर रहे हैं ताकि अफ़ग़ानिस्तान से आतंकी माहौल को जड़ से निकाल दिया जाए। अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने ट्रम्प के इस फैसले का स्वागत किया है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने बयान दिया कि देश हर वो कोशिश करेगा जिससे अमेरिका के साथ मिलकर आतंकियों का डर देश से निकल जाए।  

ट्रम्प की सरकार पाक़िस्तान के लिए शुरूआती दौर से ही ख़तरा साबित हो रही है। पिछले साल ट्रम्प ने पाक़िस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने से मना कर दिया था ये कह कर कि देश ने हक़्क़ानी गिरोह को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है। इसके बाद ही 350 मिलियन डॉलर की सहायता राशि पर भी रोक लगा दी गयी जो पाक़िस्तान सेना  को मिलनी थी। 

अलकायदा वार में सहयोग के बाद पाक़िस्तान को 2004 में नॉन-नाटो देशों में सम्मिलित किया गया था। नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) पश्चिमी देशों की मैत्री सेना है।  पाक़िस्तान को नॉन-नाटो देश का दर्जा मिलना भारत के लिए चिंता का विषय था। लेकिन ट्रम्प सरकार भारत के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही है।  अमेरिका देश सचिव रेक्स टिलर्सन का कहना है कि पाक़िस्तान को नॉन-नाटो मैत्री से भी निकाला जा सकता है।  जुलाई में पाक़िस्तान को 50 मिलियन डॉलर देने पर भी अमेरिका ने रोक लगा दी थी।

ट्रम्प की बातों का आशय यह है कि पाक़िस्तान अमेरिका को बेवक़ूफ़ बना रहा है, अमेरिकी सहायता का वह आतंकवाद ख़त्म करने की बजाय  अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किए जा रहा है। अमेरिका की नीति साफ़ है, देश अब आतंकियों और आतंकियों के सहयोगियों पर पैसे नहीं लगा सकता। पाक़िस्तान आतंकवाद का सहयोगी रहा है और ऐसे में, अमेरिका धीरे धीरे अब पाक़िस्तान की मित्रता की ओर से से कदम पीछे खींच रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रंप

ट्रम्प ने साथ में यह भी कहा कि उन्हें अफ़ग़ानिस्तान में स्थिति बेहतर करने के लिए भारत के सहयोग की आवश्यकता होगी। अफगानिस्तान, भारत का हमेशा से मित्र रहा है। विकास कार्यों के लिए भारत ने अफगानिस्तान का काफ़ी सहयोग किया है, जिसकी ट्रम्प ने सराहना करते हुए भारत से और सहयोग की आकांक्षा व्यक्त की है। अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में शांति, समृद्धि और विकास लाने के लिए तत्पर है।  

उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि अमेरिका की अफगान नीति के केंद्र में अब भारत रहने वाला है। ये मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत कही जा सकती है।  अभी जून में जब प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका दौरे पर थे, तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि भारत हमेशा से अमेरिका का मित्र रहा है। राजनयिक रिश्तों में  हाव भाव भी उतने ही मायने रखते हैं, जितना कि बयान, तो उस भेंट के दौरान दोनों बड़े नेताओं का एक दूसरे को गले लगाना नए रिश्ते की ओर साफ़ इशारा करता है।  हालाँकि चीन आदि पाक़िस्तान के खिलाफ खुलकर अभी नहीं बोल रहे, मगर भारत को भी कुछ कह नहीं पा रहे।

ग़ौरतलब है कि ट्रम्प ने अपने भाषण में एक दफ़ा भी चीन का ज़िक्र नहीं किया था।   ट्रम्प जिस तरह का व्यक्तित्व दर्शाते हैं, उनसे नरमी की आशा नहीं रखी जा सकती है। चीन का इरादा तो साफ़ पता चलता है उसके बयान से, चाइना पाक़िस्तान इकनोमिक कॉरिडोर में हाल ही में चीन ने 46 बिलियन डॉलर ख़र्च किया है। हालाँकि ज़्यादातर रूस तटस्थ रहा है, लेकिन आवश्यक होने पर वो भारत के साथ ही खड़ा होगा। बहरहाल, अमेरिका की ये बदली नीति भारत के लिए लाभकारी है। अगर अमेरिका इसी प्रकार अग्रसर रहा तो जल्द ही निवेश और सहयोग की कमी से पाक़िस्तान की आतंकी गतिविधियां ढीली पड़ जाएंगी और शांति का नया आगाज़ होगा।

(लेखिका डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में इंटर्न हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)