अमेरिका की अफगान नीति में भारत को सर्वाधिक अहमियत दी गई है। ट्रम्प ने कहा कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नही आया तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पाकिस्तान को दी जा रही सहायता में भी कटौती की जाएगी। आतंकवादियो को सहायता व संरक्षण देने की नीति उसे छोड़नी पड़ेगी। ट्रम्प ने कहा कि शांति और लोकतंत्र के लिए भारत का सहयोग जरूरी है। उन्होने भारत से अफगान समस्या के समाधान में सहयोग मांगा है। पाकिस्तान में इसे लेकर हड़कम्प्प है। मन्त्रिमण्डल, संसद, सैन्य कमांडर सभी अमेरिकी धमकी का अर्थ तलाश रहे है।
भारत के थलसेना प्रमुख जनरल विपिन रावत और अमेरिकी विदेश उपमंत्री के बयान में कोई सीधा संबन्ध नही था। लेकिन, लगभग एक ही समय मे आये इन बयानों की सच्चाई एक जैसी है। जनरल विपिन रावत ने पाकिस्तान और चीन दोनो मोर्चो पर मुस्तैद रहने की बात कही तो दूसरी ओर अमेरिकी विदेश उपमंत्री ने कहा कि भारत दो खतरनाक देशों से घिरा है। इन दोनों बयानों का मतलब भी एक है और इनकी सच्चाई भी एक जैसी है। चीन की वास्तविकता जगजाहिर है। सीमा पर शांति रहे, इससे अच्छी बात कोई हो नही सकती । लेकिन चीन की दोमुंही नीति के चलते भारत अपनी सुरक्षा में ढील नही दे सकता। यही बात जनरल रावत ने कही। यही सच्चाई अमेरिकी विदेश उपमंत्री ने भी उजागर की।
यह मानना होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार सुरक्षा को मजबूत बना रही है। अमेरिका का सहयोग भी सकारात्मक है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को लेकर विश्व समुदाय में आशंकाए थीं। यह स्थिति उन्होने अपने प्रारम्भिक बयानों से खुद ही बनाई थी। लेकिन, समय के साथ गलतफहमी दूर हो रही है। वह जमीनी हकीकत से मुखातिब हैं। उनके द्वारा घोषित अफगान नीति इसका प्रमाण है। इसके कुछ दिन बाद ही अमेरिकी प्रशासन ने भारत को अपना प्रमुख सामरिक साझेदार बताया। अमेरिका ने भारत को एफ-16 लड़ाकू विमान देने का प्रस्ताव किया है।
इस संबन्ध में अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री एलिस वेल्स ने महत्वपूर्ण बात कही। संसदीय समिति के समक्ष उन्होने बताया कि भारत हमारा महत्वपूर्ण और भरोसेमंद साझीदार है। उन्होने बताया कि भारत खतरनाक देशो के बीच स्थित है। जाहिर है कि पहले अफगान नीति और उसके बाद एफ-16 पर प्रस्ताव से भारत की अहमियत बढ़ी है। इसका परिणाम देखने के लिए इंतजार करना होगा। फिलहाल यह मानना होगा कि इससे अधिक व्यावहारिक नीति संभव नही थी। भारत के पड़ोसी चीन और पाकिस्तान की सच्चाई को इतने बेबाक ढंग से पहले कभी स्वीकार नही किया गया था।
अफगान नीति में भारत की भूमिका का विषय ट्रम्प के पूर्ववर्ती बराक ओबामा और जॉर्ज बुश के सामने भी उठा था। लेकिन या तो उनको अफगान क्षेत्र की जमीनी स्थिति का अनुमान नही था या उन्होने जानबूझकर जमीनी सच्चाई को नजरअंदाज किया। सोलह वर्ष की अवधि कम नही होती। अफगानिस्तान जहां था, वही है। ओबामा और बुश ने यहां एक जैसी गलती की। उन्होंने पाकिस्तान पर विश्वास किया। यह बिल्ली से दूध की रखवाली के लिए कहने जैसा था।
पाकिस्तान खुद ही आतंकी मुल्क है। उससे अफगानिस्तान में आतंकी समस्या में सहयोग की उम्मीद करना ही बेमानी था। अमेरिका आतंकवाद को रोकने में सहयोग के नाम पर पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक व सामरिक सहायता देता रहा। पाकिस्तान इसका उपयोग आतंकवाद को बढ़ाने में करता रहा। अमेरिका का प्रशासन पाकिस्तान के जाल में उलझा रहा। सोलह साल में कोई समाधान नही निकला।
डोनाल्ड ट्रम्प ने इस कमजोरी को समझा। विश्लेषण के बाद उन्होंने देखा कि समस्या की जड़ तो पाकिस्तान है। यही जमीनी सच्चाई है। यही कारण है कि उनकी अफगान नीति में पाकिस्तान को बड़ी तल्खी से आईना दिखाया गया है। ट्रम्प ने पाकिस्तान को बच्चो की तरह लताड़ा है। वही भारत को केवल अफगानिस्तान ही नही दक्षिण एशिया का मुख्य किरदार माना है।
अमेरिका की अफगान नीति में भारत को सर्वाधिक अहमियत दी गई है। ट्रम्प ने कहा कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नही आया तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पाकिस्तान को दी जा रही सहायता में भी कटौती की जाएगी। आतंकवादियो को सहायता व संरक्षण देने की नीति उसे छोड़नी पड़ेगी। ट्रम्प ने कहा कि शांति और लोकतंत्र के लिए भारत का सहयोग जरूरी है। उन्होने भारत से अफगान समस्या के समाधान में सहयोग मांगा है। पाकिस्तान में इसे लेकर हड़कम्प्प है। मन्त्रिमण्डल, संसद, सैन्य कमांडर सभी अमेरिकी धमकी का अर्थ तलाश रहे है।
कुछ लोग मान रहे है कि पाकिस्तान का विभाजन हो सकता है। अमेरिका ने आर्थिक सहायता रोकी तो यहां त्राहि-त्राहि फैल जाएगी। अफगान मसले पर चीन और पाकिस्तान भी अपनी भूमिका तय करना चाहते हैं। लेकिन, इन दोनों देशों की सहानभूति आतंकी तालिबान व अलकायदा के साथ है। ये अच्छे और खराब अलकायदा की बात कर रहे है। जबकि आतंक का कोई भी रूप अच्छा नही हो सकता। भारत यही कहता रहा है। भारत के अधिकारी अपनी जान जोखिम में डालकर वहां निर्माण कार्य कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस बात का अनुभव किया है। इसीलिए वह व्यावहारिक नीति बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)