इस दुखद घड़ी में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा देर रात ही अमृतसर पहुँच गए, वहीं (यह लेख लिखे जाने तक) अमेरिका के दौरे पर गए रेल मंत्री पीयूष गोयल भी अपनी यात्रा को अधूरी छोड़ देश के लिए रवाना हो गए हैं। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिन्दर सिंह ने जिस असंवेदनशीलता का परिचय दिया, वो दुर्भाग्यपूर्ण है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि मुख्यमंत्री इस विपत्ति के समय देश में होने के बावजूद तत्काल पीड़ित लोगों को संवेदना देने नहीं पहुंच सके? मीडिया द्वारा ऐसे सवाल पूछे जाने पर उनका जवाब था कि वह एयरपोर्ट पर थे और इजराइल जाना था।
जब समूचा देश दशहरा के अवसर पर रावण का पुतला दहन कर अधर्म पर धर्म की विजय के जश्न में डूबा हुआ था, उसी वक्त अमृतसर से एक ऐसी दुखद खबर आई जिसने सबको हतप्रभ कर दिया। किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि ऐसी अप्रिय घटना होने जा रही जिससे दशहरे का पूरा जश्न क्षण भर में ही मातम में तब्दील हो जाएगा। पंजाब के अमृतसर के करीब जोड़ा रेलवे फाटक के पास रावण दहन का कार्यक्रम चल रहा था, वहाँ उपस्थित लोग दशहरे के इस जश्न को अपने मोबाइल में कैद कर रहे थे।
खबरों के अनुसार, तभी अचानक आग में लिपटा दशानन का पुतला गिर गया और लोग अपने बचाव में इधर–उधर भागने लगे और इस बचाव से भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई। उसी वक्त जोड़ा फ़ाटक से गुजरी लोकल ट्रेन की चपेट में आने से अभी तक 62 लोग असमय काल के गाल में समा गए, वहीं 150 से अधिक लोगों के घायल होने की भी खबर है। मौत के यह आकड़े बढ़ भी सकते हैं।
इस दुखद घटना से पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। जैसे ही इस हादसे की बात सामने आई, केंद्र सरकार ने राहत और बचाव के लिए पूरा अमला लगा दिया। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और देश-विदेश के कई नेताओं ने इस घटना पर शोक प्रकट किया है। लेकिन हर हादसे के उपरांत सरकरी अमले की जो रवायत रही है, वह भी पूरी की जा चुकी है। घायलों तथा मृतकों के परिवारजनों के लिए मुआवजा राशि की घोषणा केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों ने कर दी है।
राज्य सरकार ने जांच की कमेटी भी गठित कर दिया है। इन सबके बीच कई सवाल सबके मन में कौंध रहे हैं कि इस क्रूर हादसे का जिम्मेदार कौन है? सवाल है कि आखिर किसकी लापरवाही से 62 लोग अपनी जिन्दगी से हाथ धो बैठे? रेलवे की इस मामले में कोई गलती नहीं है। गलती पटरी पर मौजूद लोगों की और इसकी अनदेखी करने वाले स्थानीय प्रशासन व आयोजकों की है।
एक खबरिया चैनल को प्राप्त एक वीडियो के अनुसार, मंच संचालक नवजोत कौर से कह रहा है कि आपके लिए लोग पटरियों पर खड़े हैं और पांच सौ ट्रेनें गुजरने के बाद भी खड़े रहेंगे। इस वक्तव्य से जाहिर होता है कि आयोजकों को पता था कि लोग पटरियों पर मौजूद हैं, लेकिन इसके बावजूद उस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया।
एक सामान्य बुद्धि का मनुष्य भी ऐसे असुरक्षित स्थान पर इतना बड़ा कोई आयोजन करने से पहले एक बार अवश्य सोचता कि जब रावण दहन होगा, उसवक्त अनुमान से ज्यादा लोग आ सकते हैं, ऐसी स्थिति में कोई भी हादसा हो सकता है। लेकिन आयोजन समिति ने इस बिंदु पर जरा भी गौर नहीं किया। रेलवे पटरी के समीप यह कार्यक्रम करना किसी हादसे को आमंत्रण देना ही था, जिसके लिए सबसे पहले दशहरा कमेटी और स्थानीय प्रशासन अक्षम्य ढंग से जिम्मेदार है। लेकिन विचित्र है कि इस हादसे के उपरांत दोनों ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है।
सबसे पहले तो स्थानीय प्रशासन का बयान आया कि उसकी ओर से ऐसे किसी कार्यक्रम की अनुमति प्रदान नहीं की गई थी। किन्तु, कमेटी ने घोबी घाट पर दशहरा उत्सव के आयोजन के लिए पुलिस से सुरक्षा प्रबंधन की मांग को रखते हुए एक पत्र भी लिखा था, इस पत्र के सामने आने के उपरांत जो पुलिस हादसे के दिन इस तरह की अनुमति होने से इनकार कर रही थी, ने अब इसे स्वीकार कर लिया है। सवाल यह उठता है कि जब पंजाब पुलिस इस कार्यक्रम में सुरक्षा उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं थी, फिर अनुमति क्यों प्रदान की गई? भीड़ बढ़ने पर फिर भीड़ प्रबंधन के नियमों का पालन क्यों नहीं किया गया?
बहरहाल, इस दुखद घड़ी में रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा देर रात ही अमृतसर पहुँच गए, वहीं अमेरिका के दौरे पर गए रेल मंत्री पीयूष गोयल भी अपनी यात्रा को अधूरी छोड़ (यह लेख लिखे जाने तक) देश के लिए रवाना हो गए हैं। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिन्दर सिंह ने जिस असंवेदनशीलता का परिचय दिया है, वो हैरान करने वाली और दुर्भाग्यपूर्ण है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि मुख्यमंत्री इस विपत्ति के समय तत्काल घटनास्थल पर पीड़ित लोगों को संवेदना देने नहीं पहुंचे? मीडिया द्वारा ऐसे सवाल पूछे जाने पर उनका जवाब था कि वह एयरपोर्ट पर थे और उन्हें इजराइल जाना था।
अमरिंदर सिंह को बताना चाहिए कि क्या एक मुख्यमंत्री का अपने राज्य के प्रति आपातकालीन स्थिति में कोई दायित्व नहीं होता? वो भी तब जब राज्य के प्रशासन की चूक के कारण इतनी बड़ी दुर्घटना हो गयी। उन्हें तत्काल घटनास्थल पर पहुंचना चाहिए था, लेकिन उन्होंने जिस तरह के संवेदनहीन और दायित्वशून्य रुख का परिचय दिया, वह दर्शाता है कि पंजाब में ऊपर से नीचे तक कैसी व्यवस्था चल रही है। बहरहाल, अब देखना होगा कि राज्य सरकार की मजिस्ट्रेट जाँच में क्या निकलकर आता है और 62 मौतों के गुनहगार को कठोर सज़ा मिल पाती है या नहीं?
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)