यूपीए सरकार के दौरान अन्ना का आन्दोलन इसलिए चल गया क्योंकि उस सरकार के भारी भ्रष्टाचार और नीति-पंगुता के कारण जनता में उसके प्रति पहले से ही भारी आक्रोश भरा हुआ था। उसी आक्रोश का लाभ अन्ना के लोकपाल आन्दोलन को मिला। लेकिन, वर्तमान सरकार के साथ ऐसी स्थिति नहीं है। इस सरकार के अबतक के शासन में इसपर न तो कोई भ्रष्टाचार का आरोप लगा है और न ही इसके निर्णयों के प्रति जनता में कोई आक्रोश ही नज़र आया है। इस सरकार के खिलाफ आन्दोलन करने पर अन्ना को जन्नत की हकीकत मालूम हो जाएगी।
किस तरह से कभी-कभी कुछ नेता और आंदोलनकारी अप्रासंगिक हो जाते हैं, उसका शानदार उदाहरण है अन्ना हजारे। अब उन्हें कोई याद तक नहीं करता। उनकी कहीं कोई चर्चा तक नहीं होती। एक दौर में वे भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई के प्रतीक बनकर उभरे थे। अब वही अन्ना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चेतावनी दे रहे हैं लोकपाल की नियुक्ति को लेकर आंदोलन की धमकी दे रहे हैं।
लोकपाल की नियुक्ति को लेकर हो रही देरी पर उन्होंने सरकार को दिल्ली में आंदोलन की चेतावनी दी। पर हो सके तो उन्हें अब अपना आंदोलन फिर से चालू कर देना चाहिए। इसके बाद अन्ना को जन्नत की हकीकत समझ आने लगेगी। उन्हें समझ आ जाएगा कि अब उनके साथ पचास लोग भी नहीं खड़े होंगे। प्रधानमंत्री मोदी को लिखे खत में अन्ना ने केंद्र में लोकपाल की नियुक्ति, प्रत्येक राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सिटिजन चार्टर की मांग की है।
खत में उन्होंने कहा ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सबसे बड़े आंदोलन को 6 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन 6 साल बाद भी सरकार ने भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए कुछ नहीं किया।’ आप जरा उनके पत्र की भाषा पर गौर करें। ‘पिछले तीन सालों से मैं आपकी सरकार को लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए याद दिलाता रहा हूं लेकिन आपने मुझे कभी जवाब नहीं दिया और ना ही एक्शन लिया।’ वे प्रधानमंत्री को मानो ललकार रहे हों। अन्ना इससे पहले भी पीएम मोदी को पत्र लिख चुके हैं जिसमें उन्होंने अधूरे चुनावी वादों को पूरा करने की मांग की थी।
छह साल पहले अन्ना ने दिल्ली के रामलीला मैदान से जनलोकपाल बिल के लिए अनशन किया था। इस दौरान अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और बाबा रामदेव उनकी टीम में शामिल थे। ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ नाम के इस आंदोलन में यूपीए सरकार और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठी। जिसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने 2013 में लोकपाल कानून पास कर दिया था, मगर अन्ना उससे संतुष्ट नहीं थे। अन्ना जी को कौन बताए कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। मराठी में ये कहावत नहीं है क्या? काहे बचीखुची इज्जत खराब करने पे तुले हैं। आराम से रालेगण को स्वर्ग बनाइए। अब कौन आपके साथ आ रहा है।
अन्ना की जुबान भी फिसलती रहती है। ये बात रालेगण सिद्धि की है। तारीख थी 25 नवंबर,2011। राजधानी में यूपूए सरकार में केन्द्रीय मंत्री शरद पवार की गाल पर एक सिरफिरे शख्स ने चांटा जड़ दिया था। जब अन्ना को इस घटना के बारे में पता चला तो अपने को गांधीवांदी बताने वाले अन्ना ने प्रतिप्रश्न किया,” सिर्फ एक ही मारा।” क्या अपने को गांधीवादी कहने वाले इंसान को इस तरह की हल्की टिप्पणी करनी चाहिए? आपका किसी से मतभेद हो सकता है, पर सार्वजनिक जीवन में गरिमामयी व्यवहार के रास्ते पर ही चलना जरूरी है। अन्ना से इस तरह के हल्के बयान की उम्मीद किसी ने नहीं की थी। उन्होंने हमलावर के प्रति नरमी दिखाई और जिसकी बेहद आलोचना भी हुई।
यही अन्ना पार्टी-पॉलिटिक्स से दूर रहने की बात करके ममता बनर्जी के लिए प्रचार करने लग गए थे। नारा था – कहा सबने और किया ममता ने। दिल्ली में रैली भी आयोजित कर ली और भीड़ नहीं जुटने के कारण ऐन मौके पर नहीं पहुंचे। अन्ना जी, अब कौन नया स्पॉन्सर मिला है आपको? लेकिन कोई फायदा नहीं। आपकी विशवसनीयता तार-तार हो चुकी है। यकीन ना आए तो दिल्ली में रामलीला मैदान में एक रैली कर लीजिए। देखिए कितनी भीड़ जुटती है।
दरअसल अन्ना हजारे सेना में ड्राइवर थे। संप्रग सरकार के कुकर्मों के कारण परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि उन्हें देश की जनता ने सिर पर बिठा दिया। अन्ना को अपने में गांधी का अक्स दिखाई देना लगा। मगर, गांधी बनना क्या हंसी-मजाक का खेल है। यूपीए सरकार के दौरान अन्ना का आन्दोलन इसलिए चल गया क्योंकि उस सरकार के भारी भ्रष्टाचार और नीति-पंगुता के कारण जनता में उसके प्रति पहले से ही भारी आक्रोश भरा हुआ था। उसी आक्रोश का लाभ अन्ना के लोकपाल आन्दोलन को मिला। लेकिन, वर्तमान सरकार के साथ ऐसी स्थिति नहीं है।
वर्तमान सरकार के अबतक के शासन में इसपर न तो कोई भ्रष्टाचार का आरोप लगा है और न ही इसके निर्णयों के प्रति जनता में कोई आक्रोश ही नज़र आया है। इस सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में उल्टे इजाफा ही हुआ है। रही बात लोकपाल की तो वो प्रक्रिया में है और वैसे भी यह सरकार भ्रष्टाचार होने वाली स्थितियों को समाप्त करने की दिशा में कार्य कर रही है जो कि लोकपाल से अधिक महत्वपूर्ण और कारगर कदम है। अन्ना हजारे को इस स्थिति को समझना चाहिए और खुद के लिए यह मान भी लेना चाहिए कि अपने भोलेपन की भूलों के कारण अब वे अप्रासंगिक हो चुके हैं।
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)