नेशनल हेराल्ड मसले पर भी कांग्रेस ने सरकार को घेरा था। बिल्कुल वही तर्क दिए गए थे, जो आज चिदंबरम मामले में दिए जा रहे हैं। यही कहा गया था कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है, जबकि वह मामला भी सुब्रमणियम स्वामी ने न्यायपालिका में उठाया था। न्यायपालिका की निगरानी में ही कार्रवाई चल रही है। उसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी आरोपी हैं और जमानत पर आजाद हैं। कांग्रेस में उनके बाद पी. चिदंबरम को माना जाता है, अब गड़बड़ी की आंच उनके करीब भी पहुंच रही है, तो कांग्रेस घबराई हुई है। इसी घबराहट में वो सरकार पर तरह-तरह के अनर्गल आरोप लगाने में जुटी है।
अंततः पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ति कानूनी शिकंजे में आ गए। उन पर विदेशी कंपनी को लाभ पहुंचाने और उसके बदले खुद भी लाभ उठाने का आरोप है। मामला यहीं तक सीमित नहीं है। इस मसले के याचिकाकर्ता राज्यसभा सदस्य सुब्रमणियम स्वामी की मानें तो पी. चिदंबरम भी शिकंजे में आएंगे, क्योकि लाभ भले ही उनके पुत्र ने उठाया, लेकिन पुत्र कार्ति को लाभ उठाने लायक बनाने का कार्य उनके पिता पी. चिदंबरम ने ही किया था। इसके लिए कथित तौर पर उन्होंने मंत्री पद के अधिकारों का अनुचित रूप से इस्तेमाल किया था।
कुछ भी हो, यह मामला न्यायपालिका के समक्ष विचाराधीन है, अंतिम फैसला वहीं होगा। लेकिन, प्रथमदृष्टया लगता है कि धुंआ किसी बड़ी आग से ही उठा है। ये बात अलग बात है कि कांग्रेस ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया है। अभी कुछ दिन पहले ही वह नीरव मोदी प्रकरण पर मुखर हुई थी। ऐसा लगा जैसे वह अब आर्थिक गड़बड़ी के खिलाफ लड़ेगी। चिदंबरम ने भी इस विषय पर लिखना शुरू कर दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भी खूब ट्वीट आने लगे, वह सीधे नरेंद्र मोदी से हिसाब मांग रहे थे। यह दिखाने का प्रयास हुआ जैसे आर्थिक गड़बड़ी के प्रति कांग्रेस का ‘जीरो टॉलरेंस’ रहा है। इस लिये कुछ प्रकरण उसे बेचैन कर रहे हैं, लेकिन यह सब चल ही रहा था, तभी कार्ति चिदंबरम गिरफ्तार हो गए।
कांग्रेस की ओर से बचाव में दो बातें कही गईं। एक यह कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है। कांग्रेस ईमानदार व्यवस्था के लिए कथित तौर पर संघर्ष कर रही है, सरकार ने इसीलिए बदले की भावना से कार्य किया। कार्ति चिदंबरम को गिरफ्तार किया गया। दूसरा कारण कांग्रेस ने यह बताया कि सरकार नीरव मोदी प्रकरण से ध्यान हटाना चाहती है, इसलिए उसने पूर्व वित्त मंत्री के पुत्र को गिरफ्तार किया। इसी क्रम में उसने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र पर भी अपने आरोप दोहराए।
लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने बचाव में जो तर्क दिए, उनका कोई आधार नहीं है। एक बात यह है कि इस गिरफ्तारी में सरकार का कोई हाथ या भूमिका नहीं है। कार्ति चिदंबरम के खिलाफ सुब्रमणियम स्वामी ने याचिका दायर की थी। न्यायपालिका की निगरानी में जांच कार्य चल रहा है, ऐसे में यह कहना गलत है कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है। कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी के समय को मात्र संयोग कहा जा सकता है। जब सरकार की इसमें कोई भूमिका ही नहीं है, तब गिरफ्तारी के लिए वह जिम्मेदार कैसे हो सकती है। यह विशुद्ध कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई कार्रवाई है।
अमित शाह के पुत्र की चर्चा से भी कांग्रेस का बचाव नहीं हो सकता। अमित शाह पहले भी कह चुके हैं कि उनके पुत्र ने सरकार से न एक रुपया सहायता ली है, न सत्ता का अनुचित लाभ उठाया है और न ही अनुचित साधनों से व्यवसाय किया है। शाह ने तो कानूनी कार्रवाई की चुनोती भी दी थी, लेकिन कांग्रेस के नेता आरोप लगाने तक ही सीमित रहे। जबकि सुब्रामणियम स्वामी जैसे नेता कार्ति चिदंबरम के खिलाफ न्यायपालिका पहुंच गए, क्योंकि उन्हें कार्ति के खिलाफ अपने आरोपों की सच्चाई का पता है। कांग्रेस में भी अनेक दिग्गज वकील हैं, लेकिन किसी ने अपने आरोपों पर कोर्ट में जाने की जहमत नहीं उठाई। क्योकि वह जानते हैं कि बेबुनियाद आरोप लगाना आसान है, किन्तु उसे न्यायपालिका में साबित करना कठिन है। ऐसे आरोपों पर राजनीति अवश्य हो सकती है, कार्रवाई नहीं।
इसी प्रकार उसने नेशनल हेराल्ड मसले पर भी कांग्रेस ने सरकार को घेरा था। बिल्कुल वही तर्क दिए गए थे, जो आज चिदंबरम मामले में दिए जा रहे हैं। यही कहा गया था कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है, जबकि वह मामला भी सुब्रमणियम स्वामी ने न्यायपालिका में उठाया था। न्यायपालिका की निगरानी में ही कार्रवाई चल रही है। उसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी आरोपी हैं और जमानत पर आजाद हैं। कांग्रेस में उनके बाद पी. चिदंबरम को माना जाता है, अब गड़बड़ी की आंच उनके करीब भी पहुंच रही है, तो कांग्रेस बिलबिलाई हुई है।
जांच एजेंसी का कहना है कि कार्ति चिदंबरम लंबे समय से सहयोग नहीं कर रहे थे। आरोप है कि उन्होंने आईएनएक्स मीडिया के लिए गैरकानूनी तरीके से निवेश की मंजूरी हासिल की थी। यह मंजूरी पी. चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते हुए मिली थी। उन्हें पाँच करोड़ निवेश की मंजूरी मिली थी, लेकिन कम्पनी ने तीन सौ पांच करोड़ रुपये का निवेश कराया।। कार्ति चिदंबरम ने आईएनएक्स को गैर कानूनी ढंग से एफआईपीबी की मंजूरी दिलाई। इसे वित्तीय जांच से छूट मिली थी। आरोप है कि इसके बदले कार्ति चिदंबरम ने चेस मैनेजमेंट और पदमा विश्वनाथ की कम्पनी एडवांटेज कन्सलटेसी के जरिये आईएनएक्स से रकम ली थी। इसके अलावा वह राजस्थान के एम्बुलेंस घोटाले के भी आरोपी हैं।
पी. चिदंबरम का वित्तमंत्री कार्यकाल आर्थिक गड़बड़ी के लिए ज्यादा चर्चित रहा था। एक प्रकार से तब समानांतर व्यवस्था चल रही थी। सरकार की नीतियों में अनेक ‘लूप होल’ थे। इसे लेकर खूब चर्चा हुई, लेकिन अर्थशास्त्र के विद्वान पी चिदंबरम ने इसे रोकने का प्रयास नही किया। नरेंद्र मोदी की सरकार ने ऐसे अनेक लूप होल बन्द किये हैं। फिर भी पुरानी व्यवस्था का लाभ उठाकर पीएनबी जैसी गड़बड़ी की गई। सरकार इसे रोकने के सख्त प्रयास कर रही है। बड़े बकायेदारों पर पन्द्रह दिन में कार्यवाई की जाएगी। जो सहयोग नहीं करेगा उसकी संपत्ति तत्काल प्रभाव से जब्त होगी। कार्ति चिदंबरम मामले में रकम से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि यूपीए सरकार में बागडोर किन हाथों में थी। ऐसे लोग कभी आर्थिक गड़बड़ी को मुद्दा नहीं बना सकते।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)