मनीला में हुए सम्मेलन कुछ खास बातों के नाम रहे। एक यह कि इस अवसर पर भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान की मजबूत जुगलबंदी कायम हुई। दूसरा यह कि यहां श्री रामकथा की गूंज सुनाई दी। तीसरा यह कि नरेंद्र मोदी ने अनेक शासनाध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धों को भी आगे बढ़ाया। यह आसियान की स्थापना का पचासवाँ वर्ष था। जाहिर तौर पर यह इस सम्मेलन के लिए ऐतिहासिक पड़ाव था। कई बार कतिपय निर्णय ऐसे अवसरों का महत्व बढ़ा देते हैं।
किसी वैश्विक शिखर सम्मेलन में प्रायः कुछ देशों की अलग से जुगलबंदी नहीं होती। लेकिन इसके अपवाद भी हैं। कई बार हालात इसके लिए विवश कर देते हैं। फिलीपींस की राजधानी मनीला में यही हुआ। चीन की विस्तारवादी नीति ने अलग ढंग के हालात बना दिये हैं। इसके मद्देनजर उसे सन्देश देना आवश्यक था। अन्य कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि, चीन वैश्विक नियमों को चुनौती देते हुए हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अपने सैन्य ठिकानों का विस्तार कर रहा है। विश्व के अनेक देश इससे चिंतित है।
मनीला में दो महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन आयोजित हुए। दक्षिण पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन अर्थात आसियान के तत्काल बाद पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ। क्रमशः दो शिखर सम्मेलनों का दायरा व्यापक था। भारत के लिए यह सन्तोष का विषय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से इस सम्मेलन के जरिये चीन पर दबाव बना।
ऐसा नहीं कि यह किसी तात्कालिक मीटिंग का परिणाम था।,मोदी पहले से इस दिशा में प्रयास करते रहे हैं। उनकी कोशिश उस समय से जारी है, जब अमेरिका में बराक ओबामा राष्ट्रपति थे। वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी इस तथ्य को समझा। वह भी इन प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी प्रकार मोदी ने ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों के साथ भी आपसी समझ बढ़ाने में कसर नहीं छोड़ी। इसका अनुकूल परिणाम सामने आ रहा है।
मनीला में हुए ये दोनों सम्मेलन कुछ खास बातों के नाम रहे। एक यह कि इस अवसर पर भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान की मजबूत जुगलबंदी कायम हुई। दूसरा यह कि यहां श्री रामकथा की गूंज सुनाई दी। तीसरा यह कि नरेंद्र मोदी ने अनेक शासनाध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धों को भी आगे बढ़ाया। यह आसियान की स्थापना का पचासवाँ वर्ष था। जाहिर तौर पर यह इस सम्मेलन के लिए ऐतिहासिक पड़ाव था। कई बार कतिपय निर्णय ऐसे अवसरों का महत्व बढ़ा देते हैं।
इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाने पर निर्णय हुआ। आसियान भारत का चौथा बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 1967 में स्थापित इस दक्षिण पूर्वी एशियाई संगठन के साथ भारत का गत वर्ष पैसठ अरब डॉलर का व्यापार हुआ। नरेंद्र मोदी ने इसे बढ़ाने का मंसूबा दिखाया। सम्मेलन से इतर इसके प्रयास भी किये जा रहे हैं।
भारत, म्यामार और थाईलैंड के बीच साढ़े तेरह सौ किलोमीटर हाईवे का निर्माण प्रगति पर है। इसी प्रकार भारत और वियतनाम के बीच बत्तीस सौ किलोमीटर ईस्ट-वेस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी निर्माण हो रहा है। इनसे आसियान के सदस्य देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, कम्बोडिया के साथ व्यापार करना आसान हो जाएगा। ईस्ट एशिया समिट में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रूनेई, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जापान, लाओस, म्यांमार, रूस, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर के शासक शामिल हुए।
एक्ट एशिया की नीति की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने की थी। इसके बाद इन देशों के साथ सहयोग बढ़ा है। इकोनॉमिक कॉरिडोर बनने के बाद इसमें बहुत बढ़ोत्तरी होगी। मोदी इन देशों के कारपोरेट जगत के लोगों से भी मिले। उन्हें बताया गया कि नोटबन्दी, जीएसटी, एफडीआई, घोटाला मुक्त व्यवस्था, जनधन, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर आदि से आर्थिक व्यवस्था में काफी सकारात्मक बदलाव हो रहा है। निवेशकों को इसका लाभ उठाना चाहिए। इन सम्मेलनों में नरेंद्र मोदी के विचारों को विशेष महत्व मिला।
अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने सहयोग की दिशा में निर्णायक कदम उठाया। पिछले दिनों भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया का संयुक्त सैन्य अभ्यास बंगाल की खाड़ी में हुआ था। मनीला में जापान ने भी इस अभ्यास में शामिल होने पर सहमति जताई। ये चारों देश चीन के दबाव का मुकाबला करेंगे। यह बड़ी उपलब्धि है।
मनीला शिखर सम्मेलन में वहां के कलाकारों ने रामकथा पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। इसकी डोनाल्ड ट्रम्प, शिन्जो अबे सहित अनेक नेताओं ने प्रशंसा की। यह बात यहीं तक सीमित नहीं है। दरअसल फिलीपींस, म्यांमार, कम्बोडिया, लाओस, थाईलेंड, जापान, इंडोनेशिया, मंगोलिया, वियतनाम ,रामकथा से जुड़े देश हैं। यहां के गीत-संगीत में इसका समावेश है। भारत के साथ इन देशों के भावनात्मक लगाव का यह आधार बन सकता है।
नरेंद्र मोदी ने मनीला में फिलीपींस के साथ द्विपक्षीय समझौते भी किये। वहां चावल रिसर्च केंद्र में नरेंद्र मोदी के नाम पर लैब बनाया गया है। इसका क्षेत्रीय केंद्र वाराणसी में बनेगा। यहां धान की ऐसी फसल विकसित की जाएगी, जो बाढ़ और सूखे में भी खराब नहीं होगी। जाहिर है, यह भारतीय कृषि के लिए एक नई क्रांति साबित होगी। इस प्रकार मोदी की मनीला यात्रा राष्ट्रीय हित से सम्बंधित बहुआयामी पक्षों को साधने में सफल रही।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)