स्वस्थ होने के बाद यदि आप दुबारा बीमार पड़ते हैं और इलाज के लिए अस्पताल पहुंचतें हैं तो आपको पर्चों की फाइल साथ ले जाने की जरूरत नहीं रह जाएगी। यूनिक कार्ड के जरिए बीमारी का पूरा डेटा और उपचार की जानकारी डॉक्टर के सामने मोबाइल या कंप्युटर स्क्रीन पर प्रकट हो जाएगी। इससे डॉक्टर को इलाज में आसानी होगी और तत्काल नई जांचों की जरूरत भी नहीं रह जाएगी। इससे धन और समय दोनो की बचत होगी।
स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रत्येक नागरिक की अनूठी स्वास्थ्य कुंडली (यूनिक हेल्थ आईडी) बनाने की शुरूआत कर दी है। ‘आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन’ के अंतर्गत इस योजना का आरंभ किया गया है। बहुउद्देशीय आधार जैसे इस कार्ड में रोगी की बीमारी, जांच रिपोर्ट्स, दी गईं दवाएं, दवा की दुकान, जांच प्रयोगशाला और चिकित्सक की भी जानकारी होगी।
गोया, यदि रोगी एक शहर से दूसरे शहर में इलाज कराने जाता है तो उसे अपनी मेडिकल हिस्ट्री साथ ले जाने की जरूरत नहीं रह जाएगी, क्योंकि हेल्थ कार्ड में यह सब जानकारी दर्ज रहेगी। दरअसल इस मिशन की मार्गदर्शी परियोजनाएं एक साल पहले अंडमान-निकोबार, चंडीगढ़, दादर-नागर हवेली, दमनद्वीव, लद्दाख और लक्षद्वीप में शुरू करके पूरी कर ली गईं हैं। यहां परिणाम अच्छे रहे, इसलिए इन राज्यों में यूनिक कार्ड बनाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। इन्हीं परिणामों के मद्देनजर इस मिशन को पूरे देश में लागू किया जा रहा है।
डीएनए कानून बनने के बाद देश में जीन कुंडली बनने का रास्ता खुल गया था। इसी कानून के तहत यूनिक हेल्थ कार्ड बनाए जाने का रास्ता भी खुल गया है। अभी तक ज्योतिष विद्या से बनाई कुंडली से व्यक्ति के भविष्य और बीमारियों की जानकारी ली जाती थीं, किंतु अब यह काम जीन कुंडली और हेल्थ कार्ड करेंगे।
जीन कुंडली से व्यक्ति और उसकी संतानों की 1700 से भी ज्यादा किस्म की आनुवांशिक बीमारियों में से कौन सी बीमारी हो सकती है, यह जानने का रास्ता खुल गया है। बीमारी से पीड़ित दो अलग-अलग रोगियों में से किसके लिए कौनसी दवा ज्यादा असरकारी होगी, यह भी जीन कुंडली बताने की क्षमता रखती है।
दरअसल किसी व्यक्ति के जीन समूह यानी जीनोम अनुक्रम (सीक्वेंस) को पढ़ लेना है। फिलहाल जीनोम सीक्वेंसिंग कराने के लिए 70 लाख रुपए खर्च होते हैं, लेकिन अब भारत में यह जांच महज एक लाख रुपए में संभव हो जाएगी। भविष्य में जब इसकी मांग बढ़ेगी तो जीन कुंडली बनवाने का खर्च और भी कम हो जाएगा।
‘विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद्‘ (सीएसआईआर) की हैदराबाद एवं दिल्ली स्थित प्रयोगशालाओं ने 1008 नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग पायलट परीक्षण जांच पूरी करने में सफलता प्राप्त की है। सात अन्य प्रयोगशालाएं भी इस जांच में रुचि दिखा रही हैं। कोविड-19 वायरस के बदलते रूप की सरंचना भी जीनोम सीक्वेंसिंग से संभव हुई है।
योजना की घोषणा होते ही गूगल प्ले स्टोर पर एनडीएचएम हेल्थ रिकॉर्ड पीएचआर एप्लीकेशन उपलब्ध होगी। इसके जरिए रोगी का पंजीयन होगा और उसे 14 डिजिट का यूनिक आईडी नंबर मिलेगा। यह पंजीयन रोगी स्वयं अपने स्मार्ट फोन पर कर सकता है। हालांकि इसकी सुविधा सरकारी और निजी अस्पताालों के साथ सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी होगी। स्वास्थ्य से संबंधित पूरी जानकारी डिजिटल फार्मेट में दर्ज होगी। इस मेडिकल हिस्ट्री को नई बीमारी और उसके किए इलाज के साथ अपडेट भी किया जा सकेगा।
साफ है, स्वस्थ होने के बाद यदि आप दुबारा बीमार पड़ते हैं और इलाज के लिए अस्पताल पहुंचतें हैं तो आपको पर्चों की फाइल साथ ले जाने की जरूरत नहीं रह जाएगी। यूनिक कार्ड के जरिए बीमारी का पूरा डेटा और उपचार की जानकारी डॉक्टर के सामने मोबाइल या कंप्युटर स्क्रीन पर प्रकट हो जाएगी। इससे डॉक्टर को इलाज में आसानी होगी और तत्काल नई जांचों की जरूरत भी नहीं रह जाएगी। इससे धन और समय दोनो की बचत होगी।
बीमारी का यह डेटा गोपनीय रहेगा, क्योंकि यह अस्पताल की बजाय डेटा सेंटर में सुरक्षित रहेगा और इसे ओटीपी के जरिए ही खोला जाना संभव होगा। यह डेटा प्रकट होने के बाद स्क्रीन पर केवल दिखेगा, इसकी कॉपी नहीं होगी। न ही इसे स्थानांतरित किया जा सकेगा। दूसरे मरीज का डेटा देखने के साथ ही पहले मरीज का डेटा लॉक हो जाएगा। इसे दुबारा देखने के लिए फिर से ओटीपी की जरूरत होगी। यह कार्ड प्रत्येक व्यक्ति के लिए आधार कार्ड की तरह बनवाना जरूरी नहीं है। व्यक्ति की इच्छा पर ही इसे बनाया जाएगा।
भारत वर्तमान में डिजिटल तकनीक में व्यापक विस्तार के दौर से गुजर रहा है। कोरोेना महामारी पर नियंत्रण और टीकाकरण अभियान में अप्रत्याशित सफलता इसी संचार तकनीक से मिली है। नतीजतन भारत करीब 90 करोड़ लोगों का टीकाकरण कर चुका हैै। आरोग्य सेतु की उपलब्धता ने भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम् भूमिका निभाई है इसके जरिए लोगों ने कोरोना संक्रमण से बचने के उपाय तो किए ही अन्य रोगों के उपचार में भी मदद ली।
इसी तकनीक से आयुष्मान योजना के तहत 50 करोड़ से भी ज्यादा गरीब और निम्न आय वाले लोगों को मुफ्त में स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं। इस योजना के लागू होने से लेकर अब तक 2.25 करोड़ लोग फायदा उठा चुके हैं।
हेल्थ कार्ड इसलिए भी बनाया जाना जरूरी है, जिससे बीमारी के निष्कर्ष जीन डेटा से तालमेल बिठाकर निकाले जा सकें। साफ है, यह परिणाम चिकित्सा के क्षेत्र में अहम् होंगे। क्योंकि अभी तक यह शत-प्रतिशत तय नहीं हो सका है कि दवाएं किस तरह बीमारी का प्रतिरोध कर उपचार करती हैं। जाहिर है, अभी ज्यादातर दवाएं अनुमान के आधार पर रोगी को दी जाती हैं। जैसा कि हमने कोरोना की दो लहरों में देखा है। कोरोना की कोई दवा सुनिश्चित नहीं होने की वजह से ही इसका सभी पैथियों में इलाज हुआ और लोग ठीक भी हुए।
अभी भी कोरोना वायरस की दवा का बनाया जाना संभव नहीं हुआ है। कारगर टीका जरूर आ गया है। जीन के सूक्ष्म परीक्षण से बीमारी की सार्थक दवा देने की उम्मीद बढ़ जाती है। लिहाजा इससे चिकित्सा और जीव-विज्ञान के अनेक राज तो खुलेंगे ही, दवा उद्योग भी फले-फूलेगा। इसीलिए मानव-जीनोम से मिल रही सूचनाओं का दोहन करने के लिए दुनिया भर की दवा, बीमा और जीन-बैंक उपकरण निर्माता बहुराष्ट्रीय कंपनियां अरबों का न केवल निवेश कर रही हैं, बल्कि राज्य सत्ताओं पर जीन-बैंक बनाने का पर्याप्त दबाव भी बना रही हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में विश्व स्वास्थ्य सभा में 2005 में ई-हेल्थ की पहल करते हुए प्रस्ताव पेश किया गया था, जो 2013 में पारित हुआ। इसके बाद भारत समेत 120 देशों में अपनाने में मंजूरी दी। 2018 में सभा के 73 वें अधिवेशन में डिजिटल हेल्थ कार्ड का प्रस्ताव आया, जो 2020 में पारित हुआ। इन दोनों प्रस्ताव का आधार मरीजों का डेटा अनुसंधान के उद्देश्य से साझा करना भी है। जिससे बीमारियों के उपचार के सामूहिक हल तलाशे जा सकें।
प्रत्येक व्यक्ति की आंख, त्वचा, बालों के रंग, नाक व कान के आकार, आवाज, लंबाई जैसे सभी लक्षणों से लेकर बीमारियों का होना या न होना जीन से तय होता है। जीन हरेक प्राणी की कोशिका में होते हैं। कोशिका में मौजूद तीन अरब जीन की श्रृंखला को जीनों का समूह जीनोम कहा जाता है। इन्हीं जीनों को क्रमवार लगाना जीन कुंडली कहलाना है। जीन की किस्मों का पता लगाकर मलेरिया, कैंसर, रक्तचाप, मधुमेह और दिल की बीमारियों से कहीं ज्यादा कारगर ढंग से इलाज किया जा सकता है। हेल्थ कार्ड में रोगी की जीन संबंधी किस्मों का डेटा भी दर्ज होगा, नतीजतन डॉक्टर को सही इलाज करने में आसानी होगी। इस हेल्थ कार्ड के डेटा डेटा संधारण के लिए देश भर में डेटा केंद्रों को अपडेट करना होगा।
मानव-शरीर में मौजूद जीनोम कुंडली यानी डीएनए (आॅक्सीरिवोन्यूक्लिक एसिड) की आंतरिक संरचना यूनिक हेल्थ कार्ड से डॉक्टर को जानना आसान हो जाएगा। डीएनए नामक सर्पिल संरचना अणु कोशिकाओं और गुण-सूत्रों का निर्माण करती है। जब गुण-सूत्र परस्पर समायोजन करते हैं तो एक पूरी संख्या 46 बनती है, जो एक संपूर्ण कोशिका का निर्माण करती है। इनमें 22 गुण-सूत्र एक जैसे होते हैं, किंतु एक भिन्न होता है। गुण-सूत्र की यही विषमता स्त्री अथवा पुरूष के लिंग का निर्धाररण करती है। डीएनए नामक यह जो मौलिक महारसायन है, इसी के माध्यम से बच्चे में माता-पिता के आनुवंशिक गुण-अवगुण स्थानांतरित होते हैं।
वंशानुक्रम की यही वह बुनियादी भौतिक, रासायनिक, जैविक तथा क्रियात्मक ईकाई है, जो एक जीन बनाती है। 25000 से 35000 जीनों की संख्या मिलकर एक मानव जीनोम रचती हैं, जिसे इस विषय के विशेषज्ञ पढ़कर व्यक्ति के आनुवांशिकी रहस्यों को किसी पहचान-पत्र की तरह पढ़कर बीमारियों को ठीक से जान सकेंगे और उपचार के लिए उपयुक्त दवा दे सकेंगे।
यूरोपीय देश एस्टोनिया, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन ने डिजिटल हेल्थ कार्ड बनाने में बड़ी सफलता प्राप्त कर ली है। इजराइल, मलेशिया, थाईलैंड और बांगलादेश समेत 120 देशों में ई-हेल्थ कार्ड बनाने का काम जारी है। भारत भी अब इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगा और इस मिशन के समूचे देश में लागू हो जाने के बाद बीमारी का इलाज सरल हो जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)