जो देश दुनिया भर के उपग्रहों को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजता हो, वहां की 65 फीसदी कृषि भूमि का बारिश के भरोसे होना विडंबना ही कहा जाएगा। इसी विडंबना के चलते न सिर्फ किसान बदहाल होते हैं बल्कि तीन सौ करोड़ की परियोजना पूरी होते-होते तीन हजार करोड़ रूपये की हो जाती है। इसी को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही वर्षों से लंबित पड़ी 108 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम निर्धारित किया। इसी का नतीजा है बाणसागर परियोजना।
उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के लिए संजीवनी रूपी बाणसागर नहर परियोजना का उद्घाटन आखिरकार हो ही गया। चालीस साल पहले शुरू हुई इस परियोजना के 20 साल तो काम शुरू होने में ही निकल गए। इस दौरान कई सरकारें आईं-गईं लेकिन इस परियोजना पर सिर्फ बातें-वादें हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि जो परियोजना 300 करोड़ रूपये में पूरी हो सकती थी उसके लिए 3500 करोड़ रूपये खर्च करने पड़े। इस दौरान किसानों को जो नुकसान हुआ उसकी गणना की जाए तो यह लेट-लतीफी और भी महंगी पड़ेगी।
बाणसागर परियोजना मध्य प्रदेश राज्य वाला हिस्सा 2006 में ही बनकर तैयार हुआ जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था लेकिन उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस दौरान उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति चरम पर रही। विकास पर राजनीति के भारी पड़ने का नतीजा यह हुआ कि सिंचाई, बिजली आपूर्ति, ग्रामीण सड़क, बीज विकास, भंडारण, विपणन, सहकारिता जैसी किसान उपयोगी गतिविधियां ठप पड़ गईं।
2017 में योगी सरकार के आने के बाद वर्षों पुरानी लंबित परियोजनाओं को रफ्तार मिली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सचिवालय से इन परियोजनाओं की दैनिक प्रगति की मॉनिटरिंग शुरू कराई। इसका नतीजा यह हुआ कि एक साल में बुंदेलखंड की छह सिंचाई परियोजनाएं पूरी हुईं और अब बाणसागर परियोजना का उद्घाटन हुआ। बाणसागर परियोजना से डेढ़ लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होगी और 1.7 लाख किसानों को फायदा होगा।
देखा जाए तो यह खुशी का नहीं गहरे क्षोभ का विषय है कि बढ़ती लागत, सूखा-बाढ़ का प्रकोप किसानों की बदहाली के बावजूद सैकड़ों सिंचाई परियोजनाएं वर्षों से लंबित हैं। पिछले सत्तर वर्षों में सिंचित क्षेत्र के विस्तार के लिए बड़े-बड़े बांध व सिंचाई परियोजनाएं शुरू की गईं लेकिन उनके समय से पूरा न होने के कारण नहरी सिंचित रकबा बढ़ने के बजाए घटता चला गया। उदाहरण के लिए 1990-91 में सभी स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र 4.8 करोड़ हेक्टेयर था जो कि 2006-07 में बढ़कर 6.08 करोड़ हेक्टेयर हो गया। लेकिन इस दौरान नहर से सिंचित क्षेत्र 1.77 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 1.65 करोड़ हेक्टेयर रह गया।
यदि सिंचाई परियोजनाओं की लेट-लतीफी की पड़ताल की जाए तो उसकी जड़ में राजनीतिक-प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार ही नजर आएगा। इसी को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही वर्षों से लंबित पड़ी 108 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम तय कर दिया। इन परियोजनाओं को नाबार्ड के जरिए 9020 करोड़ रूपये का वित्त उपलब्ध कराया गया। इन परियोजनाओं के पूरी हो जाने पर 1.18 करोड़ हेक्टेयर भूमि सिंचित हो सकेगी। इनमें से 18 परियोजनाएं 2016 में तो 36 परियोजनाएं 2017 में पूरी हो चुकी हैं। अन्य परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 2019 तक का लक्ष्य रखा गया है।
इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ने हर खेत को पानी पहुंचाने के मिशन को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) लागू की है। इसमें 2015-16 से 2019-20 के लिए पचास हजार करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। इसके तहत सिंचाई में निवेश में एकरूपता लाना, हर खेत तक पानी पहुंचाना, खेतों में पानी के इस्तेमाल में अपव्यय कम करना, सही सिंचाई और पानी को बचाने की तकनीक आदि को शामिल किया गया है।
पीएमकेएसवाई में उन उपकरणों और योजनाओं पर सरकार भारी सब्सिडी दे रही है जिनमें पानी, खर्च और मेहनत सबकी बचत होती है। उदाहरण के लिए योजना के अंतर्गत ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस पद्धति को अपनाकर 40-50 फीसद पानी की बचत के साथ ही 35 फीसद उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
समग्रत: बदलते मौसम चक्र, सूखा-बाढ़ के प्रकोप, बढ़ता भूजल संकट आदि को देखते हुए लंबित सिंचाई परियोजनाओं के पूरा होने से न सिर्फ किसानों के जीवन में खुशहाली आएगी बल्कि परियोजनाओं की लागत भी घटेगी। सबसे बढ़कर इसका सकारात्मक असर दूसरी लंबित परियोजनाओं पर भी पड़ेगा जिसका लाभ अंतत: समूची अर्थव्यवस्था को मिलेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)