जनरक्षा यात्रा : केरल में जमीन पर मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ चुकी है भाजपा

प. बंगाल और केरल में भाजपा की कभी बहुत अच्छी स्थिति नहीं रही।  लेकिन, कई बार विधायक और जमीन की स्थिति अलग दिखाई देती है। प. बंगाल और केरल में आज यही नजारा है। यहां जमीन पर भाजपा मुख्य विपक्षी की भूमिका में आ चुकी है। इसके पहले भाजपा को उत्तर भारत की पार्टी माना जाता था। लेकिन अमित शाह ने इन दोनों प्रांतों में भाजपा को विकल्प बनाने की चुनौती स्वीकार की है।

देश में इस समय केवल अमित शाह ही ऐसे हैं, जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का सच्चे अर्थों में निर्वाह कर रहे हैं।  वह भाजपा को उन प्रदेशों में मजबूत बनाने के अभियान पर हैं, जो पहुंच से दूर समझे जाते थे।  केरल की जनरक्षा यात्रा यहां के समीकरण बदलने की दिशा में बढ़ रही है। शाह ने पहले दिन नौ किलो मीटर की यात्रा की थी।  दूसरे दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसे आगे बढ़ाया।  योगी आदित्यनाथ  करीब नौ किलो मीटर पैदल चले। इसके बाद उन्होंने जनसभा को संबोधित किया।

लम्बे समय के बाद केरल में किसी विपक्षी नेता को इतना जन समर्थन मिला। उनके साथ भारी भीड़ उमड़ी। उनके भाषण ने भाजपा के प्रति आमजन के रुझान को बढ़ाया है।  योगी ने केरल को शंकराचार्य नारायण गुरु जैसे महान सन्तो की भूमि बताया। आज वहाँ वामपंथियो का कुशासन और सांप्रदायिक शासन चल रहा है। केरल से पनपे लव जिहाद के मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ने गम्भीरता से लिया। इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी। क्योंकि, राज्य सरकार से सही जांच की उम्मीद नहीं थी।

संसदीय व्यवस्था संख्या बल से संचालित होती है। इसी के आधार पर सत्ता का निर्धारण होता है। यही किसी को मुख्य विपक्षी बनाता है। इस लिहाज से प. बंगाल और केरल में भाजपा की कभी बहुत अच्छी स्थिति नहीं रही। लेकिन, कई बार विधायक और जमीन की स्थिति अलग दिखाई देती है। प. बंगाल और केरल में आज यही नजारा है। यहां जमीन पर भाजपा मुख्य विपक्षी की भूमिका में आ चुकी है। इसके पहले भाजपा को उत्तर भारत की पार्टी माना जाता था। लेकिन अमित शाह ने इन दोनों प्रान्तों में भाजपा को विकल्प बनाने की चुनौती स्वीकार की है।

सांस्कृतिक सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पिछले कई दशकों से यहां राष्ट्रवादी विचारों की अलख जगा रहा है। वामपंथियो के हिंसक व्यवहार में यह कार्य आसान नही था। फिर भी संघ के प्रचारक और स्वयंसेवक समाजसेवा में आगे बढ़ते रहे। अब राजनीतिक समर में मुकाबले के लिए भाजपा अपने को तैयार कर रही है।

पहले इन प्रदेशों में वामपंथियो और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होता था। प. बंगाल में यह स्थिति तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बदली थी। उन्होने तीन दशक से कायम वामपंथियो के शासन का अंत किया था, लेकिन वह सियासत और शासन में कोई बदलाव नही कर सकी। तुष्टिकरण, साम्प्रदायिकता पहले की तरह जारी है।

इतना अवश्य हुआ कि संख्याबल के हिसाब से मुख्य विपक्षी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां  अपना औचित्य बनाये रखने में विफल हो रही है। इनकी रणनीति पर ममता ने कब्जा कर लिया । ये विरोध करने का साहस नही दिखा सकते, क्योकि मामला वोट बैंक का है। यही दशा केरल में है। अंतर यह है कि यहां वामपंथी गठबंधन सत्ता में है। इसलिए कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन खामोश है और विपक्ष की भूमिका में भाजपा अपने को प्रस्तुत कर रही है, उसने वामपंथी हिंसा के खिलाफ बिगुल फूंका है।

यहां पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ो संघ और भाजपा के कार्यकर्ता मारे गए। हत्यारों के तार वामपंथी संगठनों से जुड़े होने की बात सामने आती रही है, लेकिन अपराधियो को सरकार का संरक्षण मिलता है। यह उन लोगो के लिए भी सवाल है जो दादरी पर सम्मान लौटाते हैं। लेकिन, केरल में सैकड़ों लोगों की राजनीतिक दुर्भावना के आधार पर हुई हत्या पर खामोश रहते हैं।

योगी आदित्यनाथ की कन्नूर रैली को बहुत सफल माना जा रहा है। उन्होने कहा कि लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नही होनी चाहिए। लेकिन वामपंथी बन्दूक के बल पर वर्चस्व पर विश्वास करते है। उनका विश्व मे यही इतिहास रहा है। केरल में जनरक्षा यात्रा ने कम्युनिस्ट और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबन्धनों को परेशान कर दिया है। उन्हें यात्रा को इतना जनसमर्थनमिलने  की उम्मीद नही थी। यात्रा का समापन अठारह अक्टूबर को राजधानी तिरुवनन्तपुरम में होगा।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)