चीन के चश्मे से भारत को देखने वालों को जनता नकार रही है। कांग्रेस के हाथ से भी राज्यों का निकलना जारी है। कहा जा रहा था कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी अधिक तेजी से आगे बढ़ेगी। बढ़ तो रही है, लेकिन यह दिशा उल्टी है। त्रिपुरा में भाजपा को भारी बहुमत मिला है और नागालैंड में भी उसकी सरकार होगी। मेघालय में कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए संभावनाओं के द्वारा खुले हुए हैं, जो अन्य दलों से समन्वय स्थापित कर लिया सत्ता में वही होगा।
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका वैचारिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्व है। जिन गिने-चुने प्रदेशों से ऊर्जा लेकर वामपंथी देश की राजधानी नई दिल्ली और केंद्रीय विश्विद्यालयों में धमक दिखाने का प्रयास करते रहे हैं, वहाँ भी अब वे निस्तेज हो गए हैं। इसके सकारात्मक वैचारिक परिणाम सामने आएँगे।
चीन के चश्मे से भारत को देखने वालों को जनता नकार रही है। कांग्रेस के हाथ से भी राज्यों का निकलना जारी है। कहा जा रहा था कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी अधिक तेजी से आगे बढ़ेगी। बढ़ तो रही है, लेकिन यह दिशा उल्टी है। त्रिपुरा में भाजपा को भारी बहुमत मिला है और नागालैंड में भी उसकी सरकार होगी। मेघालय में कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए संभावनाओं के द्वारा खुले हुए हैं, जो अन्य दलों से समन्वय स्थापित कर लिया, सत्ता में वही होगा।
इन चुनाव परिणामों के निहितार्थ बिल्कुल साफ हैं। पूर्वोत्तर में भी मोदी-शाह की जोड़ी का जादू चल गया है। इस जोड़ी के आगे पूर्वोत्तर में भी सभी सूरमा ढेर हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा कायम है। दूसरी बात कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की हैसियत का विस्तार हुआ है। कुछ वर्ष पहले उसे हिंदी प्रदेशों तक सीमित माना जाता था। पूर्वोत्तर के राज्यों में तो उसका नाम भी नहीं लिया जाता था। लेकिन समय बदला और पहले भाजपा ने असम में सरकार बनाई और अब उससे काफी आगे बढ़ गई है।
यह सही है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दशकों से इन क्षेत्रों में सेवा कार्य में लगा है। विदेशी ईसाई मिशनरी की गतिविधियों और धर्मांतरण के प्रयासों का उसने जमकर मुकाबला किया है। इसके चलते राष्ट्रवादी जनमानस का यहाँ मनोबल बढ़ा। इस माहौल का भी भाजपा को लाभ मिला। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी प्रबंधन और परिश्रम ने भी कमाल दिखाया। गुजरात चुनाव के बाद उन्होंने कुछ घण्टे भी विश्राम नहीं किया था। वह सीधे पूर्वोत्तर राज्यों के प्रवास पर निकल गए थे।
इन चुनाव परिणामो का एक निहितार्थ यह है कि विपक्षियों के गढ़ में भाजपा विकल्प के रूप में उभर रही है, जो परिवर्तन पूर्वोत्तर में दिखाई दिया, वह प. बंगाल, केरल, तमिलनाडु और उड़ीसा में भी दिखाई दे सकता है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की बी-टीम बन गई हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वोटबैंक की जो सियासत शुरू की है, उसके विरोध का इनमें साहस नहीं है। जमीनी स्तर पर भाजपा ही मुख्य विपक्षी पार्टी के किरदार में है। केरल की स्थिति भी बंगाल जैसी ही है। वहाँ सत्ता पक्ष का जमीन पर मुकाबला केवल भाजपा कर रही है। उड़ीसा में तो भाजपा वैसे भी नम्बर दो पर पहुंच चुकी है। तमिलनाडु में जयललिता के न रहने से जो राजनीति में रिक्तता आई है, भाजपा उसे भर सकती है।
बहरहाल, पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों के चुनावों ने वामपंथियो के वैचारिक आधार को हिला दिया है। एक समय था, जब वामपंथी विचारक राष्ट्रीय स्तर पर वर्चस्व बनाये हुए थे। कांग्रेस ने भी इन्हें खूब छूट दी थी। इनके द्वारा लिखा गया इतिहास पढ़ाया जाने लगा, जिसमें विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन था। यह बताया गया कि भारत मे कुछ नहीं था जो आया विदेशियों की कृपा से आया।
इतिहास ही नहीं, प्रशासनिक सेवाओं का सिलेबस भी इनकी किताबो से बनता था। अल्पमत केंद्र सरकारों पर भी कई बार वामपंथी हावी रहे थे। लेकिन, जैसे-जैस जनता को इनकी हकीकत मालूम चलती गयी, वैसे-वैसे इनके पांव उखड़ने लगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार से भी भाजपा को लाभ मिला। इन राज्यों में नाथ सम्प्रदाय को मानने वालों की भी अच्छी तादाद है।
यह भी गौरतलब है कि राहुल गांधी, नीरव मोदी का प्रकरण यहां जोर-शोर से उठा रहे थे। इसके लिए वह नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा रहे थे। उनका कहना था कि जनधन, नोटबन्दी आदि से नरेंद्र मोदी ने जो धन जुटाया, उसे नीरव मोदी लेकर भाग गया। राहुल के आरोप को पूर्वोत्तर के लोगों ने किस रूप में लिया, यह चुनाव परिणामों से जाहिर है।
त्रिपुरा के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र डेढ़ प्रतिशत वोट मिले थे। एक को छोड़ कर भाजपा के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। ऑन लाइन सदस्यता अभियान भाजपा के लिए वरदान बना। पूरे पूर्वोत्तर में आमजन भाजपा से जुड़े। यह उन लोगों को भी जवाब है जो भाजपा को साम्प्रदायिक बताते है। वस्तुतः धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोटबैंक की सियासत करने वालों को आमजन नकार रहे है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कम्युनिस्ट और कांग्रेस की ऐसी दुर्गति पहले कभी नहीं हुई थी। त्रिपुरा और नागालैंड से भी इनका सफाया हो गया।
कभी पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में कांग्रेस का शासन हुआ करता था। नागालैंड के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को छत्तीस प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। इस बार वह करीब डेढ़ प्रतिशत वोट पर सिमट गई। यहाँ उसका खाता भी नहीं खुला। मेघालय में अवश्य गठबंधन सरकार बनती रही है, क्योकि यह प्रान्त गारो, खासी और जयन्तिया पहाड़ियों में बंटा है। इसका प्रभाव मतदान में होता है।
नागालैंड में भाजपा ‘नगा पीपुल्स फ्रंट’ के साथ सरकार बनाएगी। यही जनादेश का सम्मान होगा। मेघालय में भी जनादेश कांग्रेस के पक्ष में नहीं है। नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि कांग्रेस का इतना छोटा कद पहले कभी नहीं रहा था। देश की करीब सड़सठ प्रतिशत आबादी पर एनडीए और साढ़े सात प्रतिशत पर यूपीए का शासन है। जेएनयू में हुड़दंग के अलावा कम्युनिस्ट पार्टियों के पास कुछ नहीं है। सत्ता के नाम पर त्रिपुरा था, वह भी निकल गया। मतदाताओं ने भाजपा को त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड में जो स्वीकार्यता प्रदान की है, उसकी गूंज पूरे देश मे सुनाई दे रही।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)