एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी के अधिकृत ट्विटर अकाउंट ‘ऑफिस ऑफ़ आरजी’ (OfficeofRG) में हाल ही में यह पाया गया कि राहुल गांधी के एक ट्वीट को हजारों की संख्या में एक साथ रीट्वीट किया जा रहा है। गौर से इन रीट्वीट करने वालों के ट्विटर अकाउंट पर नजर डालने पर स्पष्ट होता है कि ये अलग-अलग देशों से सम्बंधित लोगों के अकाउंट हैं, जिनमें से अधिकतर अकाउंट में न तो किसी व्यक्ति-विशेष के होने की पुष्टि होती है और न ही खाताधारी के विषय में थोड़ी-बहुत भी जानकारी दिखाई देती है। भारत में ये एकाउंट्स राहुल गांधी के अलावा न किसी से जुड़े हैं और न ही किसी और के ट्वीट पर कोई प्रतिक्रिया करते हैं। कुछ ही सेकंड्स के अन्तराल पर बड़ी-बड़ी संख्या में राहुल गांधी के एक ट्वीट का रीट्वीट हो जाना भी संदेहास्पद है।
हो सकता है कि कांग्रेस समर्थक इस बात से खुश हो गये हों कि राहुल गांधी की लोकप्रियता कम से कम ट्विटर पर तो बढ़ रही है; मगर, राहुल गांधी के लोकप्रिय होने की यह गलतफ़हमी आने वाले चुनावों में उनका कितना साथ देगी, ये सोचने वाली बात है। क्योंकि, कांग्रेस के अधिकाधिक कारनामों की तरह इस अचानक बढ़ी लोकप्रियता पीछे भी फर्जीवाड़ा होने की बात सामने आ रही है।
इन दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने हास्यास्पद बयानों के अलावा कथित रूप से उनकी ट्विटर पर लगातार बढ़ रही लोकप्रियता के लिए भी चर्चा में हैं। हालाँकि यह भी अपने आप में बेहद विचित्र है कि राहुल गांधी की ये लोकप्रियता ज्यादातर विदेशी ट्विटर एकाउंट्स के बीच बढ़ रही है, जिनमें से अधिकतर ट्विटर खाते रूस, इंडोनेशिया जैसे देशों से सम्बंधित पाए गये है। राहुल गांधी के उस बयान के मायने शायद अब और बेहतर समझे जा सकते हैं, जिसमे कि उन्होंने कांग्रेस को ‘एनआरआई की पार्टी’ कहा था।
एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी के अधिकृत ट्विटर अकाउंट ‘ऑफिस ऑफ़ आरजी’ (OfficeofRG) में हाल ही में यह पाया गया कि राहुल गांधी के एक ट्वीट को हजारों की संख्या में एक साथ रीट्वीट किया जा रहा है। गौर से इन रीट्वीट करने वालों के ट्विटर अकाउंट पर नजर डालने पर स्पष्ट होता है कि ये अलग-अलग देशों से सम्बंधित लोगों के अकाउंट हैं, जिनमें से अधिकतर अकाउंट में न तो किसी व्यक्ति-विशेष के होने की पुष्टि होती है और न ही खाताधारी के विषय में थोड़ी-बहुत भी जानकारी दिखाई देती है। सभी एकाउंट्स से अलग-अलग विषयों पर केवल रीट्वीट किये गये हैं, कोई भी ऑरिजीनल ट्वीट इन एकाउंट्स से नही किया गया। भारत में ये एकाउंट्स राहुल गांधी के अलावा न किसी से जुड़े हैं और न ही किसी और के ट्वीट पर कोई प्रतिक्रिया करते हैं। कुछ ही सेकंड्स के अन्तराल पर इतनी बड़ी संख्या में राहुल गांधी के एक ट्वीट का रीट्वीट हो जाना भी संदेहास्पद है।
जाहिर है, पिछले कुछ समय से राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के अलावा यह चर्चा भी मीडिया में छाई हुई थी कि कांग्रेस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के चुनावी कैम्पेन में अहम भूमिका निभाने वाली डेटा एनालिटिक्स कंपनी ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ को आने वाले चुनावों में डिजिटल माध्यम से प्रचार-प्रसार में सहयोग हेतु भारत बुलाया था। अब इस बात का राहुल गांधी की इस बढ़ी लोकप्रियता से कितना लेना-देना है, ये तो कांग्रेस ही बेहतर बता पाएगी।
दरअसल हाल के दिनों में राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की जद्दोजहद जितनी तेज हुई है, उतनी ही तेज उन्हें एक बड़े नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिशें भी नजर ही आई हैं। फिर चाहें वो बर्कले वगैरह विदेशी स्थानों पर जाकर उनका भाषण देना हो या फ़िल्मी अंदाज में लिखे गए भाषणों से देश में भी सरकार पर निशाना साधना हो, ये तमाम चीजें उनकी अपरिपक्व राजनीतिक समझ और असफल नेतृत्व को ढंककर उन्हें एक बड़े नेता के रूप में स्थापित के लिए की जा रही हैं। मगर, राहुल गांधी को अब गंभीर रूप से अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए। इस तरह से वे भले ही सुर्ख़ियों का हिस्सा रहें, मगर ये सब जनता की नजर में कांग्रेस को और नाकामयाब सिद्ध करने वाली चीजें ही हैं।
ऐसे में, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में विपक्ष में बैठे राहुल गांधी को अब थोड़ा जिम्मेदाराना रवैय्या अपनाना होगा। उन्हें समझना चाहिए कि नेता फ़िल्मी भाषणों या सोशल मीडिया के असली-नकली अनुयायियों के दम पर नहीं बना जाता, नेता बनने के लिए जमीन पर ‘परफॉर्म’ करना पड़ता है, जिस मामले में वे अबतक फिसड्डी ही साबित हुए हैं।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)