चीन में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में भारत ने वह कर दिखाया जिसकी सम्भावना कतई नहीं थी। भारत ने पाक-पोषित आतंक के खिलाफ बाकी देशों का समर्थन तो हासिल किया ही साथ साथ चीन को भी साझे घोषणापत्र पर दस्तख़त करने के लिए राज़ी कर लिया। ये भारत की कूटनीतिक सफलता के ही उदाहरण हैं कि भारत ने पहले डोकलाम में चीन को कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया और इसके बाद चीन में ही आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को अपने एजेंडे पर साथ खड़ा होने के लिए मजबूर कर दिया। चीन भारत के सामने चित होकर रह गया है।
ब्रिक्स सम्मेलन के साझे घोषणापत्र में आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ाई लड़ने की बात कही गई है। आतंकवाद का ज़िक्र इस घोषणापत्र में कम से कम 18 बार किया गया है। चीन ने भी जैश-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों के नामों को इसमें शामिल किए जाने पर ऐतराज न जताते हुए भारत के रुख का ही साथ दिया। ये आतंकी संगठन मूलतः पाकिस्तान की धरती पर मौजूद हैं और यहीं से इनका संचालन होता है।
महत्वपूर्ण यह है कि अब तक चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर इन आतंकी संगठनों का बचाव करता रहा था, लेकिन ब्रिक्स से आतंकवाद के खिलाफ उठी आवाज़ ने भारत के पक्ष को और मजबूत किया, जिसके परिणामस्वरूप चीन को भी भारत के साथ आना पड़ा है। यहाँ उल्लेखनीय होगा कि ब्रिक्स दुनिया की पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्था ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साऊथ अफ्रीका का समूह है। पहले यह ब्रिक था, लेकिन साउथ अफ्रीका के समूह से जुड़ जाने से इसका नाम बन गया ब्रिक्स।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने द्विपक्षीय मुलाकात में भी दुनिया को आतंकरहित बनाने का संकल्प दोहराया, दोनों देशों के लिए इसे एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। इसलिए भी क्योंकि दोनों देश एशिया में बहुत बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में देखे जा रहे हैं। समूची मानवता के लिए चीन और भारत का साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है।
ज़ाहिर है, पूरी दुनिया की नज़र चीन के शहर श्यामान में हो रहे ब्रिक्स सम्मलेन पर टिकी हुई थी, जहाँ पांच बड़े देश साझे वैश्विक मुद्दों को लेकर आपस में मिल रहे थे। खासकर यह सम्मलेन इसलिए भी अहम था, क्योंकि डोकलाम मुद्दे को लेकर चीन और भारत के बीच अभी हाल ही में खत्म हुई तनातनी से कहीं न कहीं सम्मलेन के खतरे में पड़ने की भी संभावना व्यक्त की जाने लगी थी।
ऐसे में सबको उम्मीद रही होगी कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे भी तो शायद विवादास्पद मुद्दों से दूरी बनाकर रखेंगे, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। भारत ने वह कर दिखाया जिसकी सम्भावना कतई नहीं थी। भारत ने पाक-पोषित आतंक के खिलाफ बाकी देशों का समर्थन तो हासिल किया ही साथ साथ चीन को भी साझे घोषणापत्र पर दस्तख़त करने के लिए राज़ी कर लिया। ये भारत की कूटनीतिक सफलता का ही उदाहरण है कि भारत ने पहले डोकलाम में चीन को कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया और फिर चीन में ही आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को अपने एजेंडे पर साथ खड़ा होने के लिए मजबूर कर दिया। चीन भारत के सामने चित होकर रह गया है।
पाकिस्तान से ऑपरेट करने वाले आतंकी संगठनो का घोषणापत्र में जिक्र है। ये वो संगठन हैं जो दक्षिण एशिया और खासकर भारत में आतंक फैलाने के लिए सीधे सीधे ज़िम्मेदार हैं। अब तक चीन मसूद अजहर का समर्थन करता रहा है, चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, इसलिए उसके पास वीटो का अधिकार है, जबकि बाकी देश मसूद अजहर पर बैन चाहते हैं। चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री की तरफ से कहा गया कि आतंकवाद के खिलाफ ग्लोबल कैंपेन में हम हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन देखना होगा कि भारत के खिलाफ चलाया जा रहा आतंकवाद इसमें शामिल है या नहीं।
आखिर भारत को क्यों चाहिए मसूद अजहर ?
वर्ष 2016 में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने पठानकोट एयरबेस पर बड़ा हमला किया था, जिसका मास्टरमाइंड मसूद अजहर को माना जाता है। मसूद अजहर ने पठानकोट पर हमले के बाद भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने की बात की थी। पठानकोट हमले में NIA ने मसूद अजहर के खिलाफ चार्जशीट भी जारी किया है।
मसूद अजहर ने 1999 में इंडियन एयरलाइन्स IC-814 को काठमांडू से हाईजैक किया था। जहाज़ पर 178 मुसाफिर थे, जिनको रिहा करवाने के बदले भारत सरकार को मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद ज़रगर और सईद शेख को रिहा करना पड़ा था। आगे मसूद अजहर ने जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन बनाया। पता होना चाहिए कि जैश-ए-मोहम्मद कश्मीर में आतंक की फैक्ट्री चला रहा है। मसूद अजहर पर बैन को लेकर भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस साथ-साथ है, लेकिन ब्रिक्स के बाद क्या चीन की कथनी और करनी में कोई फर्क नज़र आता है, यह देखना लाजमी होगा।
यहाँ इस बात का ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है कि जब अमेरिका ने जैश-ए-मुहम्मद पर पाबन्दी लगाने के लिए प्रस्ताव आगे बढ़ाया था तो चीन ने तकनिकी आधार पर इस फैसले को मुल्तवी करा दिया। अगर जैश-ए-मुहम्मद पर पाबन्दी लग गई तो भारत को सीधा सीधा फायदा होगा। पाकिस्तान जैसा देश जैश को न तो पनाह दे सकेगा और न ही किसी तरह की माली इमदाद।
अभी मसूद अजहर जिस तरह से पाकिस्तान में सियासी रैली करता है, वह बंद हो जाएगी। पाकिस्तान को न चाहते हुए भी मसूद अजहर के खिलाफ कदम उठाना पड़ेगा। भारत के लिए मसूद अजहर नासूर की तरह है जो पिछले दो दशकों से पाकिस्तान में बैठकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देता रहा है। बहरहाल, ब्रिक्स में चीन का आतंक के मुद्दे पर मजबूरी में ही सही भारत का समर्थन करना दिखाता है कि भारत की विदेशनीति और कूटनीति एकदम सही दिशा में बढ़ रही है। चीन, पाकिस्तान जैसे सभी विरोधियों को मोदी सरकार अपनी कूटनीति के जरिये साधने में सफल होती दिख रही है। हालांकि भारत को यह परखते रहना होगा कि चीन जैसा बोल रहा है, उस पर कितना अमल करता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)