कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बिना किसी आधार के सीबीआई विवाद के राफेल से संबंध की कहानी गढ़ ली। पूरी पटकथा लिख दी। आलोक वर्मा को हटाए जाने को राफेल सौदे से जोड़ दिया। कहा कि आलोक वर्मा राफेल सौदे से जुड़े कागजात इकट्ठा कर रहे थे। उन्हें जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया। ये एकदम कोई फ़िल्मी कहानी लगती है, जिसका वजूद राहुल के दिमाग के अलावा और कहीं नहीं है।
सीबीआई में दो शीर्ष अधिकारियों के बीच विवाद हुआ। दोनों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए। इस विवाद की सच्चाई जानने के लिए जांच की आवश्यकता थी। ये अपने पदों पर कार्य करते रहे और वही संस्था जांच करे, यह हास्यास्पद होता। इसलिए सरकार ने सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना। दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा। नए निदेशक की नियुक्ति की। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गलत नहीं माना। उसने जांच होने तक नवनियुक्त निदेशक को कार्य करने की अनुमति प्रदान की। एक प्रकार से सरकार के निर्णय को क्रियान्वयन की दृष्टि से सही माना गया।
इस पूरे प्रकरण में दूर-दूर तक कहीं भी राफेल विमान नहीं था। सीबीआई इसकी जांच भी नहीं कर रही थी। न सरकार ने इसके लिए कहा था, न सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्देश था। विवाद की वजह कसाई व्यवसायी था। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस कदर मुद्दहीन हो गयी है कि उसे हर दूसरे मसले में राफेल ही दिखाई देने लगा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मसले को भी राफेल से जोड़ दिया। एक तो राफेल पर राहुल के पास कोई तथ्य नहीं हैं, तिसपर हर मामले से उसे जोड़ देना, राहुल की बौद्धिक अपरिपक्वता का ही सूचक है।
वह पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं को लेकर सड़क पर उतर गए। सीबीआई के दफ्तर पर प्रदर्शन होने लगा। वह सरकार पर संस्थाओं को नष्ट करने का आरोप लगा रहे थे। लेकिन सच्चाई यह थी कि वह स्वयं सुप्रीम कोर्ट का सम्मान नहीं कर रहे थे। जब यह विषय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है, तब राहुल द्वारा झूठ का सहारा लेकर इस प्रकार का प्रदर्शन आयोजित करने को ठीक नहीं कहा जा सकता।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बिना किसी आधार के कहानी गढ़ ली। पूरी पटकथा लिख दी। आलोक वर्मा को हटाए जाने को राफेल सौदे से जोड़ दिया। कहा कि आलोक वर्मा राफेल सौदे से जुड़े कागजात इकट्ठा कर रहे थे। उन्हें जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया। ये एकदम कोई फ़िल्मी कहानी लगती है जिसका वजूद राहुल के दिमाग के अलावा और कहीं नहीं है।
इस पूरे मामले पर नजर डालें तो अस्थाना पर आरोप है कि मीट निर्यातक मोइन कुरैशी की संलिप्तता वाले एक मामले की जांच में एक कारोबारी को राहत देने के लिए उन्होंने कथित तौर पर घूस ली थी। राकेश अस्थाना के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर में हैदराबाद के व्यापारी सतीश बाबू सना ने दावा किया है कि उसने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को पिछले साल तीन करोड़ रुपये दिए थे। सीबीआई ने सतीश सना की शिकायत के आधार पर अपने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ मामला दर्ज किया है। अस्थाना ने पलटवार करते हुए सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा पर ही रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया।
सीबीआई ऐक्ट के तहत ऐसे मामले में सीवीसी के पास जांच का अधिकार है। भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच सीवीसी कर सकती है। दोनों अधिकारियों ने भी अपनी शिकायत सीवीसी को भेजी थी। सीवीसी के पास पूरा विवरण है जो अधिकारियों ने एक-दूसरे के खिलाफ दिए हैं। उसने सेक्शन आठ और सेक्शन इकतालीस के तहत सिफारिश की कि इन आरोपों की जांच इन दोनों अधिकारीयों के रहते नहीं हो सकती, क्योंकि इन्हीं दोनों पर आरोप हैं। अतः जबतक इसकी जांच होगी सीबीआई की निष्पक्षता के लिए उन्हें छुट्टी पर भेज दिया जाए। इसलिए इन्हें छुट्टी पर भेजना उचित निर्णय है।
जाहिर है कि इस प्रकरण पर सरकार ने उचित करवाई की है। ऐसी स्थिति में यही एकमात्र बेहतर विकल्प था। राहुल गांधी भी अपने को इस विषय तक सीमित रखते और अगर आलोचना ही करनी थी, तो मामले से सम्बंधित कुछ तथ्य और तर्क जुटाकर आलोचना करते। लेकिन इसमें भी राफेल लेकर आ जाने से राहुल ने अपनी गंभीरता कम की है। तिसपर उन्होंने जिस भाषा में आरोप लगाए हैं, वो बेहद अशोभनीय और आपत्तिजनक है। तथ्य-तर्क से लेकर भाषा तक हर मामले में राहुल ने अपनी छवि और खराब करने का ही काम किया है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)