सीबीआई ने उन विभागों को छापेमारी के दायरे में अधिक रखा जिनका आम जनता से सीधा सरोकार रहता है। असल में, इन विभागों में ही भ्रष्टाचार और ऊपरी आय की संभावना अधिक रहती है। जिन महकमों में यह अचानक दबिश दी गई, उनमें नगर निगम, बिजली कंपनी, बीएसएनएल, परिवहन विभाग, डीजीसीए, कोल माइन्स, एफसीआई, कस्टम विभाग, रेलवे, पीडब्ल्यूडी जैसे विभाग शामिल थे। इसके अलावा शासकीय बैंकों में भी छापेमारी की गई।
बीते शुक्रवार को सीबीआई ने एक अनपेक्षित और बड़ी कार्यवाही की। ब्यूरो ने पूरे देश भर में करीब डेढ़ सौ शासकीय कार्यालयों पर छापेमार कार्यवाही की जो कि पूरी तरह से औचक थी। इस अचानक हुई छापेमारी से वहां मौजूद कर्मचारियों में खलबली सी मच गई। किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। इस कवायद का मुख्य ध्येय सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार पर रोकथाम था।
ब्यूरो ने राजधानी दिल्ली से शुरुआत करते हुए जयपुर, गोवाहाटी, श्रीनगर, शिमला, कोलकाता, जोधपुर, भोपाल, गोवा, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे, नागपुर, चेन्नई, गाजि़याबाद, देहरादून, जबलपुर, पटना, रांची, मदुरै और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में एक साथ समानांतर छापेमारी की। इस छापेमारी को मूर्त रूप देकर एक तरह से केंद्र सरकार ने यह साफ संदेश दे दिया है कि सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति को केवल कागजों या भाषणों तक ही सीमित नहीं रखना चाहती, वरन धरातल पर उसका क्रियान्वयन भी करना जानती है। यही कारण है कि अपने आप में इस तरह की बड़ी औचक छापेमारी की गई।
केंद्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों का कहना था कि घूसखोरी के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। अक्सर ऐसी शिकायतें आती हैं कि छोटे-मोटे काम के लिए भी सरकारी अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत लेने से बाज नहीं आते। ऐसे में निर्धन और साधारण पृष्ठभूमि के नागरिकों को बहुत मुसीबतें झेलना पड़ती हैं। ना जाने क्यों ऐसा मानस बन गया है कि बिना लेन-देन के कहीं पर भी, कोई भी काम नहीं हो सकता, लिहाजा उस व्यक्ति को, जिसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, अतिरिक्त धन जुटाने के लिए मशक्कत करनी होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पिछले कार्यकाल से भ्रष्टाचार के संबंध में लगातार मंचों पर बोलते आ रहे हैं। उनका हमेशा से कहना रहा है कि समाज में भ्रष्टाचार एक दीमक की तरह है जो सरकारी तंत्र को खोखला कर रहा है। यह एक सामाजिक बुराई है और इसका यथासंभव निराकरण होना ही चाहिये। उन्होंने स्वयं भी ना खाउंगा, ना खाने दूंगा, नाम का एक जुमला प्रयुक्त किया था। भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने इस कथन को वे पूरी तरह से निभाते भी आए हैं।
हालांकि सीबीआई की इस कार्यवाही का निष्कर्ष क्या निकला, यह तो अभी बताना संभव नहीं है, लेकिन इस छापेमारी से सरकारी महकमे सहम जरूर गए। सीबीआई ने उन विभागों को छापेमारी के दायरे में अधिक रखा जिनका आम जनता से सीधा सरोकार रहता है। असल में, इन विभागों में ही भ्रष्टाचार और ऊपरी आय की संभावना अधिक रहती है।
जिन महकमों में यह अचानक दबिश दी गई, उनमें नगर निगम, बिजली कंपनी, बीएसएनएल, परिवहन विभाग, डीजीसीए, कोल माइन्स, एफसीआई, कस्टम विभाग, रेलवे, पीडब्ल्यूडी जैसे विभाग शामिल थे। इसके अलावा शासकीय बैंकों में भी छापेमारी की गई। असल में, केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई के माध्यम से यह छापेमारी भ्रष्टाचारियों के मन में भय पैदा करने का एक नया तरीका है जिसके कारगर साबित होने की पूरी संभावना है।
2014 के पहले जो कांग्रेस की सरकार थी, उसमें एक के बाद एक कई घोटाले हुए और इन घोटालों के आरोपियों पर आंच तक नहीं आई। उस समय भाजपा विपक्ष में थी लेकिन सत्ता पक्ष के इस दागदार चेहरे को बताकर ही भाजपा ने जनता का विश्वास जीता था और जनता ने उन्हें सत्ता की कमान सौंपी थी। इसके बाद 2014 में भाजपा सत्ता में आई। तब से लेकर 2019 तक पूरे पांच साल के कार्यकाल में एक भी घोटाले की खबर सामने नहीं आई। मोदी सरकार ने अपने कहे को निभाने का कार्य पूरा किया। लेकिन निभाते रहना भी एक सतत दायित्व होता है।
वास्तव में, मोदी सरकार एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण चाहती है, इसके चलते किसी आम या खास को ना बख्शे जाने की एक गहरी प्रतिबद्धता है, जो काम करती नज़र आ रही है। उम्मीद है कि इसी तरह सरकार समय-समय पर औचक निरीक्षण करके एक प्रकार का निगरानी का माहौल बनाए रखेगी ताकि भ्रष्टाचार आकार ही ना ले सके।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)