प्रधानमंत्री द्वारा खाड़ी देशों, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को कम करने और पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति की दिशा में एक अहम पड़ाव है ईरान का चाबहार बंदरगाह जिसके पहले चरण की शुरूआत हो चुकी है। इस बंदरगाह के परिचालन का उद्धाटन खुद ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी द्वारा किए जाने से इसका महत्व प्रमाणित होता है। यह बंदरगाह महज एक रास्ता न होकर कारोबारी और कूटनीतिक दृष्टि से भारत की एक बड़ी कामयाबी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर ओर अपनी कूटनीति का डंका मनवा रहे हैं। वर्षों से चीन भारत को चारों तरफ से घेरने की रणनीति के तहत पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बढ़ा रहा है। अब प्रधानमंत्री चीन व पाकिस्तान जैसे देशों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं। चीन के बढ़ते प्रभुत्व को कम करने के लिए प्रधानमंत्री ने सबसे पहले “लुक ईस्ट पॉलिसी” को “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” में बदला। आसियान और शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी इसका प्रमाण है।
चीन के भारत विरोधी रूख के उत्तर में भारत ने जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, फिलीपींस, थाइलैंड, इंडोनेशिया, म्यांमार, भूटान के साथ संबंध सुधार को प्राथमिकता दी। इसका परिणाम यह है कि चीन अब इन देशों पर धौंस नहीं जमा पा रहा है। यह मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट नीति की कामयाबी का ज्वलंत प्रमाण है।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी के बाद प्रधानमंत्री ने खाड़ी देशों, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों में चीनी के बढ़ते प्रभुत्व को कम करने और पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम करना शुरू किया। इस दिशा में एक अहम पड़ाव है ईरान का चाबहार बंदरगाह जिसके पहले चरण की शुरूआत हो चुकी है। इस बंदरगाह के परिचालन का उद्धाटन खुद ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी द्वारा किए जाने से इसका महत्व प्रमाणित होता है। यह बंदरगाह महज एक रास्ता न होकर कारोबारी और कूटनीतिक दृष्टि से भारत की एक बड़ी कामयाबी है।
गौरतलब है कि चाबहार ईरान के दक्षिण पूर्व सिस्तान-बलूचिस्तान में है जो चीन द्वारा बनाए जा रहे ग्वादर बंदरगाह के काफी नजदीक है। ग्वादर परियोजना में जैसी भूमिका चीन की रही है, वैसी ही रणनीतिक भूमिका भारत की चाबहार बंदरगाह के विकास में है। भारत न केवल चाबहार बंदरगाह का विकास कर रहा है, बल्कि दस साल तक इसका प्रबंधन भी भारत के पास रहेगा। यह विदेश में स्थित भारत का पहला बंदरगाह है जो भारत के मुद्रा बंदरगाह से महज 940 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चाबहार कई मामलों में ग्वादर से बेहतर है। यह गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यहां कुशल कामगारों की भी कमी नहीं है। सबसे बढ़कर यहां वर्ष भर सामान्य मौसम रहता है और हिंद महासागर से गुजरने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहां से पहुंच बहुत आसान है।
यह परियोजना 20 अरब डालर अर्थात 1363 अरब रूपये की है। इसके तहत भारत को सिर्फ बंदरगाह का विकास ही नहीं, इसके आसपास के क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना भी करनी है। इतना ही नहीं, भारत चाबहार बंदरगाह को रेल तथा सड़क के जरिए अफगानिस्तान से जोड़ने का काम कर रहा है। इस बंदरगाह के जरिए परिवहन लागत और समय में एक-तिहाई की कमी आएगी।
ईरान चाबहार बंदरगाह को ट्रांजिट हब के रूप में विकसित करना चाहता है ताकि हिंद महासागर के तटीय देशों और मध्य एशियाई देशों के बीच होने वाले व्यापार का लाभ उठा सके। विश्व के तेल आपूर्ति का पांचवां हिस्सा फारस की खाड़ी के जरिए होता है। इस दृष्टि से चाबहार को महत्वपूर्ण स्थान है।
अब तक भारतीय वस्तुएं पाकिस्तान के रास्ते सड़क मार्ग से अफगानिस्तान तक पहुंचती रही हैं, लेकिन अब अफगानिस्तान ही नहीं मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप तक पहुंचने का नया रास्ता मिल गया है। यहां तेल, प्राकृतिक गैस और अन्य खनिज प्रचुरता से पाए जाते हैं। भारत-ईरान-अफगानिस्तान में बढ़ते कारोबारी रिश्तों का सकारात्मक असर अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा जिससे पाकिस्तान की परेशानी बढ़ेगी।
दरअसल पाकिस्तान लंबे अरसे से अफगानिस्तान को अपना उपनिवेश बनाने की रणनीति पर काम कर रहा था, लेकिन चाबहार परियोजना की शुरूआत से उसकी मुहिम को तगड़ा झटका लगा है। सबसे बढ़कर इस्लामिक जगत में पाकिस्तान की धाक कम हो जाएगी। आगे चलकर यह परियोजना एक गेम चेंजर साबित होगी, क्योंकि यह दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के आर्थिक विकास में मदद करेगी।
चीन की आक्रामक नीति से भारत की तरह जापान भी चिंतित रहा है। इसी को देखते हुए भारत ने चाबहार परियोजना में जापान को भी अपने साथ ले लिया है। भारत सरकार चाबहार से जाहेदान के बीच रेलवे ट्रैक बिछाना चाहती है। योजना के दूरगामी महत्व को देखते हुए जापान इस परियोजना में निवेश के लिए तैयार हो गया है। दरअसल जापान के लिए भी चाबहार का रणनीतिक महत्व है ताकि स्थलाबद्ध मध्य एशियाई देशों तक उसकी पहुंच बन सके। फिर इसे जापान की चीनी आक्रामकता के जवाब के रूप में भी देखना होगा।
हिंद महासागर में भारत को घेरने के लिए चीन स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नामक परियोजना के तहत पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर श्रीलंका के हम्बनटोटा तक बंदरगाह विकसित कर रहा है। चाबहार परियोजना चालू कर भारत ने पाकिस्तान के साथ-साथ चीन की विस्तारवादी नीति को भी माकूल जवाब दिया है।
चाबहार की रणनीतिक स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि यहां भारत के बढ़ते हस्तक्षेप से चीन अत्यंत असहज है। चीन चाबहार में भारतीय भागीदारी को कम करने का हर संभव उपाय किया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति के आगे उसकी एक न चली। स्पष्ट है, चाबहार परियोजना भारतीय कूटनीति की दिशा में एक मील का पत्थर है और इसके क्रियान्वयन का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)