नेतन्याहू अपनी चुनावी सभा में कहते थे कि उन्होंने देश के चौकीदार के रूप में शासन किया है, मतदाताओं ने जनादेश दिया तो पुनः इस भूमिका का निर्वाह करेंगे। नेतन्याहू ने नरेन्द्र मोदी की तरह चौकीदार शब्द को व्यापक सन्दर्भो में प्रस्तुत किया। उनका कहना था कि वह देश की आर्थिक ही नहीं सुरक्षा संबन्धी चौकीदारी भी करेंगे। फलस्तीनी आतंकी संगठन से उन्होंने पहले भी इजरायल को सुरक्षित रखा है, दुबारा अवसर मिलने पर वह इजरायल के हितों पर आंच नहीं आने देंगे। जनता ने नेतन्याहू के वादे पर यकीन दिखाया और वे अब पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
यह संयोग था कि इजरायल के आम चुनाव में भी चौकीदार पर खूब चर्चा हुई। इतना ही नहीं, यह मुद्दा कारगर भी हुआ। इसे उठाने वाले नेतन्याहू की सत्ता में वापसी सुनिश्चित हो गयी है। सत्तारूढ़ लिकुड पार्टी ने प्रधानमंत्री वेन्जामीन नेतन्याहू को ‘मिस्टर सिक्यूरिटी’ यानी चौकीदार के रूप में पेश किया था। देखते ही देखते यह चुनाव का सर्वाधिक चर्चित मुद्दा बन गया। विपक्षी पार्टियों की तरफ से उन पर हमले हुए, आरोप लगाए गए, हालांकि किसी ने चौकीदार को चोर बताने का अमर्यादित व असभ्य नारा नहीं लगवाया।
नेतन्याहू अपनी चुनावी सभा में कहते थे कि उन्होंने देश के चौकीदार के रूप में शासन किया है, मतदाताओं ने जनादेश दिया तो पुनः इस भूमिका का निर्वाह करेंगे। नेतन्याहू ने नरेन्द्र मोदी की तरह चौकीदार शब्द को व्यापक सन्दर्भो में प्रस्तुत किया। उनका कहना था कि वह देश की आर्थिक ही नहीं सुरक्षा संबन्धी चौकीदारी भी करेंगे। फलस्तीनी आतंकी संगठन से उन्होंने पहले भी इजरायल को सुरक्षित रखा है, दुबारा अवसर मिलने पर वह इजरायल के हितों पर आंच नहीं आने देंगे।
जनता ने नेतन्याहू के वादे पर यकीन दिखाया और वे अब पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। पहली बार उन्नीस सौ छियानवे से उन्नीस सौ निन्यानवे तक प्रधानमंत्री रहे थे। इसके बाद वह वह दो हजार नौ में पुनः प्रधानमंत्री बने। इसके बाद से उन्हें जनादेश मिलता रहा है। यह क्रम इस बार भी जारी रहा। से इजरायल के प्रधानमंत्री हैं।
वैसे किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है, लेकिन नेतन्याहू अन्य राष्ट्रवादी और धार्मिक दलों के सहयोग से गठबंधन सरकार बनायेगे। गठबंधन सरकार बनाने के लिए दक्षिणपंथी और धार्मिक पार्टियों का समर्थन नेतन्याहू को मिलेगा। इनके साथ मिलकर वह पुनः प्रधानमंत्री बनेंगे।
पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेक देशों में दक्षिणपंथी पार्टियों को सरकार बनाने का अवसर मिला है। इजरायल में भी ऐसा ही हुआ है। नेतन्याहू की लिकुड पार्टी और उसके गठबन्धन में शामिल दलों को एक सौ बीस सदस्यीय संसद में पैसठ सीटें मिली हैं। वामपंथी दलों को पचपन सीटें मिली है। राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी गठबंधन फिलस्तीन के साथ किसी प्रकार की रियायत के विरुद्ध रहा है।
इजरायल के पूर्व जनरल बेनी गैंट्ज को वामपंथी पार्टियों ने पीएम इन वेटिंग के रूप में पेश किया था। लेकिन वह इंतजार ही करते रहे। उन्होंने आम चुनाव में अपनी पराजय स्वीकार कर ली है। वह ब्ल्यू ऐंड वाइट गठबंधन के प्रमुख थे। उन्होंने सुरक्षा के मुद्दे को प्राथमिकता से उठाया। लेकिन इस मुद्दे पर भी नेतन्याहू का चौकीदार मुद्दा भारी पड़ा।
बेंजामिन नेतन्याहू की जीत पर प्रधानमंत्री मोदी ने उनको बधाई दी है। अपने ट्वीट संदेश में प्रधानमंत्री मोदी ने नेतन्याहू को टैग करते हुए लिखा है कि आप भारत के सबसे बड़े मित्र हैं और दोनो देशों के संबधों को नई ऊंचाई तक आपके साथ मिलकर भविष्य में काम करेंगे। नेतन्याहू इस वर्ष के अंत तक इजरायल में सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड कायम करेंगे, फिलहाल इस देश के संस्थापक डेविड बेन गुरियन सर्वाधिक समय तक सत्ता में रहे थे।
भारत और इजरायल के चुनाव में दिलचस्प समानताएं देखने को मिली। नरेंद्र मोदी ने अपने को चौकीदार बताया था। इस बार इसे चुनावी मुद्दा बनाने का मौका कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिया। उन्होंने चौकीदार को चोर बताना शुरू किया, मोदी ने इसी को मुद्दा बना दिया। इजरायल में नेतन्याहू अपने आप को मिस्टर सिक्यॉरिटी के रूप में सामने किया। उनका यह प्रयोग सफल रहा।
इतना तय है कि नेतन्याहू के पुनः प्रधानमंत्री बनने से भारत और इजरायल के संबन्ध मजबूत होंगे। कुछ समय पहले नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन किया था। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि कश्मीर भारत का हिस्सा है। इतना ही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा की थी। इस प्रकरण से यह भी प्रमाणित हुआ कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की विश्व में सराहना हो रही है। इजरायल बड़ा सहयोगी बनकर उभरा है, इसी के साथ अरब देश भी नरेंद्र मोदी की नीतियों के मुरीद हुए हैं।
यही कारण है कि संयुक्त अरब अमीरात ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘जाएद मेडल’ से नरेंद्र मोदी को अलंकृत करने का निर्णय लिया है। उन्हें यह सम्मान भारत और यूएई के आपसी संबंधों को मजबूत करने कि लिए दिया जाएगा। यह सम्मान हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय नेता हैं। अब तक विश्व के चुनिंदा नेताओं को ही यह सम्मान मिला है। देखना होगा कि यह मुद्दे भारत में कितने कारगर होते हैं।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)