जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे, उनके काल में यूपीए सरकार में दर्जनों बड़े-बड़े घोटाले हुए। मंत्रालय के मोर्चे पर वे भले विफल रहे हों लेकिन आर्थिक मोर्चे पर तो इस अर्थ में “सफल” ही माने जाएंगे कि सीबीआई के मुताबिक़, उनकी पत्नी ने फर्जीवाड़े के जरिये पैसा बनाया।
पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम पर सीबीआई जांच ने शिकंजा कसा है। हजारों करोड़ के सारधा चिटफंट घोटाले में शुक्रवार को उनके खिलाफ 24 परगना की एक जिला न्यायालय में चार्जशीट दायर हो चुकी है।
नलिनी पर उन कंपनियों से करीब डेढ़ करोड़ रुपए का धन हासिल करने का आरोप है जो घोटाले में लिप्त रही हैं। सवालों के दायरे में सारधा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन भी हैं। नलिनी चिदम्बरम की भूमिका इस घोटाले में बहुत अहम बताई जा रही है क्योंकि उन्हें आधिकारिक तौर पर वकील इसीलिए नियुक्त किया गया था ताकि वह कंपनी की रकम के गबन, धोखाधड़ी जैसी आपराधिक साजिशें रच सकें।
इतना ही नहीं, इस घोटाले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मतंग सिंह की पत्नी मनोरंजना सिंह भी शामिल थीं। कांग्रेस नेताओं की पत्नियों की ऐसी जुगलबंदी पहले शायद कम देखी गई होगी। यह भी आश्चर्य की बात है कि जिस समय चिदंबरम वित्त और प्रभारी रक्षा मंत्री के तौर पर बड़ी-बड़ी बातें कहते रहते थे, तब उनकी सरकार में तो घोटाले पर घोटाले हो ही रहे थे, उनकी पत्नी भी घोटालों के गुल खिला रही थीं। सारधा घोटाले का कालखंड ही 2010 से 2012 के बीच का है। इस मामले में यह सीबीआई की पहली नहीं, बल्कि छठी चार्जशीट है।
2014 में इस मामले की सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू हुई थी। सवाल है कि यूपीए की सरकार में ऐसा क्या अघोषित लाइसेंस मिला हुआ था कि कांग्रेस से संबंधित जिस व्यक्ति के मन में आए वह खुलेआम आर्थिक अनियमितता, घोटाले पर घोटाले करने को स्वतंत्र और सहज था। यदि सारधा मामले की जांच के आदेश नहीं जारी हुए होते तो आज चिदंबरम दंपती का यह चेहरा भी सामने नहीं आया होता।
आसान शब्दों में समझा जाए तो सारधा घोटाला वह घोटाला है जिसमें देश की जनता के सपनों का सौदा किया गया। बेहतर ब्याज का लालच देकर इस समूह ने अनेकों लोगों से रुपया ऐंठ लिया और कुल जमा राशि 2500 करोड़ रुपए से भी अधिक थी। बेचारी जनता के पैसे का ना तो मूल लौटाया गया, ना ब्याज। सारा पैसा डूब गया। साल दो साल कंपनी लोगों से पैसे ऐंठती रही, उसके बाद 2013 में कंपनी को बंद कर दिया गया।
इधर, एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में स्वयं चिदबंरम और उनके पुत्र कार्ति सीबीआई और ईडी के शिकंजे में हैं। हालांकि उन पर मुकदमा चलने का रास्ता साफ हो गया है लेकिन उनकी अंतरिम जमानत की अवधि भी बढ़ती रही है। गत 27 नवंबर को दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की थी और सीबीआई को केस चलाने की अनुमति दी थी। सवाल यह उठता है कि क्या यही कांग्रेस का मूल चरित्र है? क्या भ्रष्टाचार और कोर्ट-कचहरी ही कांग्रेस की उपलब्धि है।
ये वही चिदंबरम हैं जिन्होंने पिछले दिनों देश की अर्थव्यस्था और जीडीपी ग्रोथ रेट पर तंज कसते हुए कहा था कि इसके डिजिट कम हो रहे हैं, यह डबल में भी नहीं है। जिस प्रकार से चिदंबरम बोल रहे थे, उससे तो यही प्रतीत होता है कि (अपनी) पूंजी बढ़ाने का जो तरीका उन्होंने अपनाया, शायद इसे ही वे “अर्थ-कौशल” मानते हैं।
जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे, उनके काल में यूपीए सरकार में दर्जनों बड़े-बड़े घोटाले हुए। मंत्रालय के मोर्चे पर वे भले विफल रहे हों लेकिन आर्थिक मोर्चे पर तो इस अर्थ में “सफल” ही माने जाएंगे कि सीबीआई के मुताबिक़, उनकी पत्नी ने देश की जनता को ठगकर पैसा बनाया।
वित्त मंत्री रहते हुए चिदंबरम ने अवैधानिक तरीक से विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी। 600 करोड़ रुपए तक की निवेश की मंजूरी की पात्रता के विपरीत उन्होंने 3500 करोड़ रुपए के निवेश को मंजूर किया। उनके बेटे कार्ति से बरामद कई डिवाइस में जो ई-मेल मिले हैं, उनमें इस अवैध सौदे का उल्लेख पाया गया है।
दूसरी तरफ, आईएनएक्स मीडिया मामले में भी चिदंबरम आरोपी हैं। उन पर उक्त मामले में एफआईबी क्लीयरेंस देने का आरोप है। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) इस मामले की जांच कर रहा है। ईडी के अनुसार कार्ति चिदंबरम से जुड़ी कंपनियों के निवेश के नाम पर घूस दी गई थी। इस मामले में कार्ति की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। चिदंबरम की गिरफ्तारी पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 15 जनवरी तक हालांकि रोक लगा रखी है लेकिन 15 जनवरी भी अब निकट आ गई है। जल्द ही इस बारे में भी नया घटनाक्रम सामने आने को है। जाहिर है, घोटालों में घिरे चिदंबरम परिवार पर क़ानून का शिकंजा बढ़ता जा रहा है।
ऐसा मालूम होता है जैसे चिदंबरम ने घोटालों की इस परंपरा को अपने परिवार को हस्तांतरित किया है।अब वे तो खुद कठघरे में हैं ही, पूरा परिवार भी भरष्टाचार के आरोपों से घिरा खड़ा है। असल में, यह कांग्रेस का मूल चरित्र है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी तो यही करते हैं। राहुल और सोनिया स्वयं नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर छूटे हुए आरोपी हैं और अपनी फजीहत से ध्यान हटाने के लिए अनावश्यक रूप से राफेल-राफेल का राग अलाप रहे हैं, जिस पर उन्हें हर मोर्चे पर मुंह की खानी पड़ी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)