एक समय था, जब कांग्रेस पार्टी को अपनी सांगठनिक शक्ति पर गर्व था, लोग फख्र के साथ कहते थे कि उनका परिवार कांग्रेसी है। लेकिन अब भारत के गावों में भी इक्के-दुक्के ही कांग्रेसी परिवार बचे नजर आते हैं। जो कांग्रेस के साथ रह गए हैं, वह भी धीरे-धीरे पार्टी से किनारा कर रहे हैं। हाल में ही एक चौंकाने वाला नाम आया आशीष कुलकर्णी का जो कांग्रेस के वार रूम का अहम हिस्सा हुआ करते थे। उन्होंने पार्टी को इसलिए छोड़ा क्योंकि उनको कांग्रेस पार्टी की नीतियां बहुसंख्यक हिन्दुओं की विरोधी लगीं।
राजा के सिपहसालारों का काम होता है, वह राजा को हमेशा सच बताएं। अब राजा सच सुने या नहीं, यह उसपर निर्भर करता है। राजहित में यह ज़रूरी है कि राजा अपने सलाहकारों की बात सुने और उस पर अमल भी करे। जो ऐसा नहीं करता उसका पतन अवश्यम्भावी हो जाता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी है इंडियन नेशनल कांग्रेस, फ़िलहाल इसी तरह के संकट से गुजर रही है।
यहाँ कोई सच बोलना नहीं चाहता क्योंकि जो सच बोलता है उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। आज कांग्रेस में सच बोलने वाले सिपहसलारों की संख्या कम, चाटुकारों और चरण वंदना करने वालों की तादाद बहुत ज्यादा हो गई है। इन चाटुकारों से घिरा पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सल्तनत जाने के बाद भी हकीकत से आँख मूंदे सुल्तानी अकड़ में जी रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी यही बात कही है। उनका कहना है कि कांग्रेस की सल्तनत समाप्त हो गयी है, मगर सत्ता का नशा अभीतक नहीं उतरा है। हालांकि ऐसा कहने के लिए पार्टी में उनकी क्लास जरूर लगी होगी।
कांग्रेस पार्टी में पिछले 70 सालों से नेहरू और गाँधी परिवार का ही राज रहा है। यहाँ गाँधी परिवार के वरदहस्त के बिना कोई भी 10 जनपथ में अपनी पैठ नहीं बना सकता है। 10 जनपथ की अगर कृपा नहीं हुई तो आप बाहर नारे लगाते रहिए, दरवाजे के पीछे आपकी आवाज नहीं पहुंचेगी।
एक समय था, जब कांग्रेस पार्टी को अपनी सांगठनिक शक्ति पर गर्व था, लोग फख्र के साथ कहते थे कि उनका परिवार कांग्रेसी है। लेकिन अब भारत के गावों में भी इक्के-दुक्के ही कांग्रेसी परिवार बचे नजर आते हैं। जो कांग्रेस के साथ रह गए हैं, वह भी धीरे-धीरे पार्टी से किनारा कर रहे हैं। हाल में ही एक चौंकाने वाला नाम आया आशीष कुलकर्णी का जो कांग्रेस के वार रूम का अहम हिस्सा हुआ करते थे। उन्होंने पार्टी को इसलिए छोड़ा क्योंकि उनको कांग्रेस पार्टी की नीतियां बहुसंख्यक हिन्दुओं की विरोधी लगीं।
कांग्रेस पार्टी अभी विचारधारा के स्तर पर हिचकौले खा रही है। आशीष ने सबसे बड़ी खामी जो बताई वह ये है कि पार्टी ने राष्ट्रवादी नीतियों से किनारा कर लिया और आज वो जेएनयू में कश्मीर को लेकर भारत का विरोध करने वाली शक्तियों के साथ खड़ी नजर आती है। कांग्रेस के अलग-थलग पड़ने का यह एक बड़ा कारण है। ऐसा करके कांग्रेस भारत की मुख्यधारा की राजनीति से खुद को अलग करती नजर आ रही है। कांग्रेस देश में आ रहे राजनीतिक बदलावों को स्वीकार नहीं कर पा रही है।
भारत में इतना सामाजिक और आर्थिक बदलाव हो रहा है, लेकिन कांग्रेस के अन्दर सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर बहस ही नहीं होती। एक समय था जब राहुल गाँधी ने कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने के बाद ज़मीनी स्तर पर नेतृत्व के विकास की ज़रुरत पर जोर दिया था, लेकिन हुआ क्या? सब सिर्फ कही-सुनी बातें ही साबित हुईं।
कुछ सालों के बाद नेता पुत्र फिर आगे आ गए और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को फिर नेपथ्य में धकेल दिया गया। कांग्रेस की सच्चाई यह है कि जिनके पास पैसा है, ताक़त है वह सब कुछ हासिल कर सकते हैं, बीजेपी या अन्य काडर-बेस्ड पार्टियों में ऐसा नहीं होता है। लीडरशिप की कमी की वजह से कांग्रेस के हाथ से महाराष्ट्र, असम, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड फिसल गया, वही गलती गुजरात में भी दोहराई गई। चीन को लेकर भी राहुल गाँधी ने परिपक्वता नहीं दिखलाई, बात जब राष्ट्रहित की हों तो आप विदेशी ताकतों के साथ खड़े नहीं दिख सकते, भले ही सियासी तौर पर विपरीत ध्रुव पर खड़े हों।
दरअसल कांग्रेस जितना बदलने की कोशिश करती है, वापस उसी मोड़ पर पहुँच जाती है, यही उसकी सबसे बड़ी विडम्बना है। अभी तक कांग्रेस ने आशीष कुलकर्णी द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना ठीक नहीं समझा है। गुजरात में शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया साथ में उन्होंने पार्टी की ताबूत में कील भी ठोंक दी। इस वजह से कम से कम गुजरात में पार्टी की रही सही उम्मीदों पर पानी फिर गया। यह सब तब हुआ जब राहुल गाँधी ने खुद कहा कि उन्हें गुजरात में क्या होने वाला है, इसका पता था।
बीते दिनों सोशल मीडिया पर यह भी सुगबुगाहट रही कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल पार्टी छोड़ने वाले हैं। इस अफवाह को इसलिए जोर मिल गया क्योंकि कपिल सिब्बल ने ट्विटर पर पार्टी के ऑफिशियल अकाउंट और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अनफॉलो कर दिया। इस बात का खुलासा कांग्रेस समर्थकों ने किया।
जाहिर है, पुराने मंत्र, पुराने स्लोगन अब नहीं चलेंगे, ये बात कांग्रेस के अंदर उठने लगी है। नेतृत्व से खुश कोई नहीं है, मगर खुलकर विरोध नहीं जता सकता। कांग्रेस को सुल्तानी अकड़ से बाहर आना होगा और अपनी जा चुकी सल्तनत की हकीकत को स्वीकारना होगा। कांग्रेस के लिए यह समझना जरूरी है कि वो अब सत्ता में नहीं, विपक्ष में है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)