मोदी सरकार का यह अभूतपूर्व कदम है, जिससे उसकी मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की मंशा साफ झलकती है। यह वर्तमान युग के सबसे बड़े सामाजिक सुधारों में से एक है। तीन तलाक विरोधी बिल लोकसभा में बहुमत से पारित हो गया लेकिन अभी राज्यसभा में इसकी अग्निपरीक्षा होना शेष है। राज्यसभा में इसके पारित होने के लिए विपक्ष का सहयोग जरूरी है, ऐसे में देखना होगा कि वहाँ कांग्रेस आदि दल क्या रुख अपनाते हैं।
गत 27 दिसंबर की तारीख देश के लिए ऐतिहासिक महत्व की रही। केंद्र सरकार ने तीन तलाक विधेयक को एकबार फिर लोकसभा में पारित करवा लिया। इसके साथ ही देश में मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय का एक अभिनव अध्याय रचने की दिशा में हम आगे बढ़ गए हैं। तीन तलाक कुप्रथा अब किसी से छुपी नहीं है। इस कुप्रथा के चलते दश में हर साल अनगिनत मुस्लिम महिलाओं का जीवन बरबाद हो जाता है।
इस्लाम की यह कुप्रथा यहीं पर खत्म नहीं होती, तीन तलाक के बाद बेसहारा हुई महिला को हलाला नामक एक और अमानवीय रिवाज के जरिये परिवार में वापस लाया जाता है जो कि मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न का क्रूरतम उदाहरण है। निश्चित ही मौजूदा केंद्र सरकार इस पहल के लिए स्वागत की पात्र है कि इस बुरे रिवाज को अब कानून के दायरे में लाकर इसके लिए दंड का प्रावधान किया गया है।
यह आश्चर्य की बात है कि बरसों से चली आ रही इस कुप्रथा को रोकने की दिशा में पूर्ववर्ती सरकार द्वारा कभी कोई कोशिश नहीं की गई। वर्ष 2014 के पहले तीन तलाक, हलाला जैसी कुप्रथाओं का नाम भी सुनने में नहीं आता था। देश के छोटे शहरों, गांवों, कस्बों में मुस्लिम परिवारों में बात-बात पर तुनकमिजाज पति अपनी पत्नियों को झट से तीन बार तलाक बोलकर बेसहारा कर दिया करते थे।
हैरत है कि कांग्रेस की सरकार ने इस दिशा में कभी कदम नहीं उठाए, जबकि कांग्रेस घोषित रूप से स्वयं को मुस्लिमों का तथाकथित हितैषी बताती है। सवाल यह उठता है कि यदि कांग्रेस मुस्लिमों को वोटबैंक नहीं मानती है और वास्तव में मुस्लिमों की हितैषी है तो तीन तलाक, हलाला जैसी घिनौनी इस्लामिक कुप्रथाएं अभी तक कैसे चलती आईं?
यहां इस तथ्य का उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है, तभीसे इस दिशा में कोशिश शुरू हुई है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा को संवेदनशीलता के साथ अनुभव करते हुए उनके पक्ष में कदम उठाए और इंसाफ की इस मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया। ऐसे में कांग्रेस सहित अन्य सभी विपक्ष दलों का प्रधानमंत्री मोदी पर कट्टरवादी होने एवं मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों का स्वत: ही खंडन हो जाता है।
तीन तलाक विधेयक का लोकसभा में पुरजोर बहुमत से पारित होना उन सभी मुस्लिम महिलाओं की जीत है जिन्होंने परिवार, समाज का विरोध, धमकियां झेलकर भी न्याय के लिए अपनी आवाज़ बुलंद बनाए रखी। अब चूंकि उनके हक में हालात बने हैं, ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि तुरंत तलाक के चंगुल में फंसी मुस्लिम महिलाएं घुटन से बाहर निकलकर स्वतंत्र और सम्मानपूर्ण जीवन जी पाएंगी। इस बिल के मंजूर किए जाने को लेकर कितना उत्साह था, यह इसी बात से पता चलता है कि लोकसभा में विपक्ष के वॉक आउट किए जाने के बाद हुई वोटिंग में बिल के पक्ष में 245 वोट आए जबकि विपक्ष में महज 11 ही वोट आए।
सांसद असदुद्दीन औवेसी वोटिंग पर प्रस्ताव लेकर आए जो कि पक्ष में महज 15 वोट एवं विपक्ष में 236 वोटों के साथ औंधे मुंह गिरा। मल्लिकार्जुन खड़गे ने धार्मिक मामले की दुहाई देते हुए इसमें हस्तक्षेप ना करने की गुहार लगाई लेकिन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद स्पष्ट कर चुके थे कि इस संवेदनशील मसले को राजनीतिक जामा न पहनाते हुए केवल मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिये।
उन्होंने जब तथ्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि पिछले 11 महीने में तीन तलाक के 177 मामले सामने आ चुके हैं तो विपक्ष की बोलती बंद हो गई। रही सही कसर सांसद मीनाक्षी लेखी ने पूरी कर दी। उन्होंने तार्किक सवाल पूछा कि धार्मिक मामले की दुहाई देने वाले ज़रा यह प्रमाणित करके बताएं कि कुरान की किस सूरा, आयत में तीन तलाक का उल्लेख है। आखिर जब कांग्रेस से जवाब देते न बना तो वो बचकानेपन पर उतर आई और बहिष्कार कर गई।
कांग्रेस को इतना तो सोचना चाहिये कि यदि तीन तलाक से मुस्लिम महिलाएं परेशान ना होतीं तो वे स्वयं इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने क्यों उतरतीं? जैसे ही लोकसभा में यह बिल पास हुआ, उधर पीड़ित महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने मिठाई बांटकर अपनी खुशी प्रकट की। तीन तलाक के खिलाफ बरेली से आला हजरत खानदान की बहू निदा खान ने पुरज़ोर आवाज़ उठाई थी।
निदा ने परिवार एवं समाज का काफी विरोध झेला, बावजूद उनका हौसला नहीं डिगा। सायरा बानो ने सर्वप्रथम सुप्रीम कोर्ट में इसकी लड़ाई लड़ी थी। निश्चित ही मुस्लिम समाज को ऐसी साहसी महिलाओं की दरकार होना चाहिये। समाजसेवी संस्थाओं ने लोकसभा में बिल पारित होने का स्वागत किया है।
एक्टिविस्ट फरहत नकवी ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताते हुए इसके राज्यसभा से भी पास होने की आशा की है। आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान ने इससे सीधे बच्चों की शिक्षा व भविष्य सुधरने को जोड़कर देखा है। महिला नेत्री डॉ. नाजिया आलम ने पक्ष में वोट करने वाले सभी सांसदों का शुक्रिया अदा किया है।
निश्चित ही मोदी सरकार का यह अभूतपूर्व कदम है, जिससे उनकी मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की मंशा साफ झलकती है। यह वर्तमान युग के सबसे बड़े सामाजिक सुधारों में से एक है। तीन तलाक विरोधी बिल लोकसभा में बहुमत से पारित हो गया लेकिन अभी राज्यसभा में इसकी अग्निपरीक्षा होना शेष है। राज्यसभा में इसके पारित होने के लिए विपक्ष का सहयोग जरूरी है, ऐसे में देखना होगा कि वहाँ कांग्रेस आदि दल क्या रुख अपनाते हैं।
हैरत है कि ऐसे संवेदनशील मसले पर भी कांग्रेस वोटबैंक की राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है और मुस्लिम कट्टरपंथियों को रिझाने के लिए एक गलत परंपरा का पक्ष ले रही है, जो कि बेहद शर्मनाक है। उम्मीद की जानी चाहिये कि यह राज्यसभा से भी पारित होकर दंडात्मक कानून के रूप में समाज में लागू हो और धार्मिक प्रथाओं के नाम पर होने वाले महिलाओं के उत्पीड़न पर अंकुश लग सके।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)