राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का मसला कोई आज का नहीं है। सर्वप्रथम इसके संबंध में 1953 में काका कालेलकर कमीशन, फिर 1978 में मंडल कमीशन ने तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों को इसके संबंध में रिपोर्ट सौंपी थी। लेकिन चाहे वो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहे हों, इंदिरा गांधी रही हों, राजीव गांधी रहे हों या फिर 2014 से पहले यूपीए के 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी रहे हों, इस एक परिवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग आयोग के संबंध में कोई फैसला नहीं लिया बल्कि इसमें अड़ंगा ही डालती रही। कांग्रेस का यह इतिहास बताता है कि वो पिछड़े वर्ग की कितनी हितैषी है!
देश की राजनीति में आज़ादी के बाद से ही निरंतर पिछड़े समाज व वर्ग के उत्थान की बातें तो बहुत की गईं। लेकिन इसको लेकर कभी कोई नीतिगत फैसला पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा नहीं लिया गया। इसके उलट मोदी सरकार ने सत्ता में आने के उपरांत ही गरीब, वंचित, शोषित, पिछड़े वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में अनेक हितकारी निर्णय लिए हैं, जिसमें हाल ही में लोकसभा पारित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने सम्बन्धी विधेयक शामिल है। वर्तमान केंद्र सरकार ने प्रवर समिति की सिफारिशों के आधार पर इसमें संशोधन किए हैं।
इस संशोधन विधेयक के बाद आयोग के चार सदस्यों में से एक महिला सदस्य की अनिवार्य नियुक्ति होने, ओबीसी से जुड़ी योजनाओं में आयोग सलाहकार की जगह भागीदार की भूमिका में कार्य करने, अन्य पिछड़े वर्ग में जातियों को शामिल करने या हटाने के लिए अब राज्यपाल की बजाय राज्य सरकारों से ही परामर्श लेने जैसे अन्य कई प्रावधान प्रभाव में आ जाएंगे।
यह संशोधन विधेयक लोकसभा में मौजूद सभी 406 सांसदों की सर्वसम्मति के बाद दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ पारित किया गया। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना कार्यभार संभालने के साथ ही यह स्पष्ट करते हुए कहा था कि मेरी सरकार पिछड़े और गरीब वर्ग के प्रति समर्पित भाव से कार्य करेगी। दशकों से अटका यह कदम पिछड़े वर्ग के विकास की दिशा में महती भूमिका निभाएगा।
इस संशोधन विधेयक के राज्यसभा में भी पारित हो जाने के बाद ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ सामाजिक तथा शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों से जुड़े तमाम हितैषी निर्णय लेगा। गौरतलब है कि इससे पहले भी सरकार इस विधेयक को लेकर आई थी, लेकिन उस समय कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों द्वारा इसको लटकाने व भटकाने का काम किया गया जो यह स्पष्ट करता है कि किसकी नीयत में पिछड़े वर्ग के हितों को लेकर प्रतिबद्धता है और किसकी नीयत जाति के नाम पर बांटकर वोट बटोरने की है।
पिछले वर्ष 2017 में जब उच्च सदन में यह विधेयक सरकार द्वारा लाया गया था, उस समय विपक्ष का इसको लेकर नकारात्मक रवैया रहा था। कांग्रेस ने तब जिस संशोधन के नाम पर राज्यसभा में इस विधेयक को अटका दिया था, अब दुबारा यह विधेयक आने पर लोकसभा में उस संशोधन को उसने खुद ही खारिज कर दिया। दरअसल 2017 में कांग्रेस ने इस विधेयक का विरोध तो कर दिया, लेकिन बाद में उसे आभास हुआ कि इससे नुकसान हो सकता है तो राजनीतिक मजबूरी में वो अब इसके समर्थन में दिखने की कोशिश कर रही है। हालांकि राज्यसभा में कांग्रेस का क्या रुख होगा, यह अब भी स्पष्ट नहीं है।
देखा जाए तो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का मसला कोई आज का नहीं है। सर्वप्रथम इसके संबंध में 1953 में काका कालेलकर कमीशन, फिर 1978 में मंडल कमीशन ने तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों को इसके संबंध में रिपोर्ट सौंपी थी। लेकिन चाहे वो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहे हों, इंदिरा गांधी हों या राजीव गांधी हों अथवा 2014 से पहले यूपीए के 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी हों, इस एक परिवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग आयोग के संबंध में कोई फैसला नहीं लिया बल्कि इसमें अड़ंगा ही डालती रही। कांग्रेस का यह इतिहास बताता है कि वो पिछड़े वर्ग की कितनी हितैषी है!
ऐसा इसलिए क्योंकि जब-जब कांग्रेस के अतिरिक्त किसी और दल की सरकार केंद्र में रही, हमेशा इस बाबत कुछ नीतिगत निर्णय लिए गए, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इस विषय में कभी हाथ नहीं लगाया। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस पार्टी ने सिर्फ अपने हितों को सर्वोपरि रखा और जनता के हितों को दरकिनार करते हुए बस अपने वोट बैंक की चिंता की।
पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए सरकार की कोशिशों से यह स्पष्ट है कि गरीबों के सम्मान और स्वाभिमान के लिए केंद्र की मोदी सरकार तत्पर है तथा ‘सबका साथ, सबका विकास’ के ध्येय के साथ निरंतर प्रगतिशील है। भारतीय जनता पार्टी प्रारंभ से ही समतामूलक समाज की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध रही है। कहना न होगा कि 2014 में देश की जनता ने जिस विश्वास के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना अपार जनसमर्थन दिया था, आज चार वर्षों के कार्यकाल के बाद भी सरकार ने उस विश्वास को बनाए रखा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)