अपने विवादास्पद बयानों के लिए बदनाम फारूक अब्दुल्ला कह रहे हैं कि वे शर्मनाक बयान देने वाले अपने विधायक मोहम्मद अकबर लोन को बात करके समझाएंगे। आप ही बताएं कि अब समझाने के लिए बचा ही क्या है। विधानसभा के भीतर कोई विधायक शत्रु देश के पक्ष में नारेबाजी करे तो इसे आप क्या कहेंगे। क्या आपको लोन को पार्टी से अब तक निकाल नहीं देना चाहिए था? चलिए ये तो आपकी पार्टी का मसला है, इसलिए ये आपके ऊपर है कि आप लोन को लेकर क्या और कब कोई फैसला लेते हैं। देश तो अब आपसे ये जानना चाहता है कि आप अभीतक सुंजवान शिविर पर आतंकी हमले में घायल सैनिकों से मिलने का वक्त क्यों नहीं निकाल पाए?
फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के विधायक मोहम्मद अकबर लोन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 10 फरवरी को पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हैं। अब फारुक साहब कह रहे हैं कि “हमें ऐसे समय में नारेबाजी से बचना चाहिए जब पाकिस्तान हमारे लोगों पर निशाना साधने की कोशिश कर रहा है।” यानी अब्दुल्ला साहब के हिसाब से नारेबाजी गलत नहीं है, बस समय थोड़ा गलत है।
बांदीपोरा जिले के सोनावारी विधानसभा क्षेत्र के विधायक मोहम्मद अकबर लोन ने राज्य विधानसभा में उस वक्त पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए, जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के विधायक सुंजवान सैन्य शिविर पर आतंकी हमले के विरोध में पाकिस्तान-विरोधी नारे लगा रहे थे। फारूक साहब को अब अपने विधायक को सलाह या ज्ञान नहीं देनी चाहिए, बल्कि कर सकें तो कार्यवाही करनी चाहिए। पर वे कार्यवाही कैसे करेंगे, उन्होंने खुद देश के लिए क्या-क्या नहीं कहा है।
ये कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब फारूक अब्दुल्ला ने कुछ माह पूर्व चेनाब घाटी में एक कार्यक्रम के दौरान घोर भारत विरोधी बातें कहीं। उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर भारत के दावे को लेकर कहा: “क्या यह तुम्हारे बाप का है”? पीओके भारत की बपौती नहीं है जिसे वह हासिल कर ले”। उन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में बोलते हुए कहा- “नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान के कब्जे से पीओके को लेकर तो दिखाए।” फारूक अब्दुल्ला के मुताबिक पीओके हासिल करना भारत के लिए आसान नहीं है।
नई परिभाषाएं धर्मनिरपेक्षता की
पर, अब बड़ा सवाल ये है कि प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता की ऐसी कौन सी परिभाषाएँ हैं, जिनकी रक्षा के लिए नेशनल कांफ्रेंस का एक विधायक पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाता है? खासतौर पर यह घटना उस समय होती है जब जम्मू के सुंजवान में पाकिस्तानी आतंकवादियों का हमला होता है। धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का यह कौन सा पक्ष है, जिसकी रक्षा के लिए पाकिस्तानी आतंकवादियों के एके-47, एके-56 और बमों के प्रति नेशनल कांफ्रेंस के विधायक सम्मान जताने लगते हैं?
जरा देखिए तो वो विधायक बोलता है कि इंसानियत, कश्मीरियत और भारतीयता से ऊपर उसका धर्म है। धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की नई परिभाषाएँ ऐसे लोग ही लिखते हैं, जिनके अनुसार आप तभी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष होंगे अगर आप आतंकवादियों के हथियारों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। भारत के लोग यह सब देख रहे हैं और समझ भी रहे हैं इस कट्टरपंथी सोच को, जिसमें जीवों के प्रति प्रेम को पिछड़ापन और आतंकवादियों को पोषित करने वालों का समर्थन प्रगतिशीलता समझी जाती है। आतंकी पाकिस्तान प्रेम कैसी धर्म निरपेक्षता है, विधायक जी?
क्यों नहीं लताड़ा था तब
समझ नहीं आ रहा कि क्यों फारूक अब्दुल्ला की पार्टी के विधायक के सदन में पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी करने से कुछ लोगों को हैरानी हो रही है। वहां पर नेशनल कांफ्रेंस का सर्वोच्च नेता ही खुल्लम-खुल्ला भारत विरोधी बयानबाजी करने से पीछे नहीं हटता। क्या अब्दुल्ला को तब शर्म नहीं आई थी जब उन्होंने कहा था कि क्या पीओके भारत के बाप का है। तब किसी ने उनकी सड़कछाप बयानबाजी पर उन्हें लताड़ा नहीं था। तब किसी ने उन्हें ये नहीं बताया था कि यदि पीओके भारत का अभिन्न अंग नहीं है तो उनके बाप का है क्या?
वे यह भी कहते रहे हैं कि अलगाववादियों से वार्ता नहीं करना जम्मू-कश्मीर के लिए ‘घातक’ है। पिछले साल 29 अप्रैल को नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों से वार्ता नहीं करने के केंद्र के निर्णय पर कहा था कि राज्य के भविष्य के लिए यह नीति ‘विनाशकारी’ हो सकती है। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अब्दुल्ला ने कहा था, ‘उच्चतम न्यायालय में केंद्र का यह हलफनामा कि वह अलगाववादियों से वार्ता नहीं करेगा, जम्मू-कश्मीर के भविष्य के लिए विनाशकारी है। हम इस रुख पर चिंता और दुख जताते हैं’। क्या मतलब है अब्दुल्ला के इस तरह के बयान का? वे देश विरोधी और अलगावादियों से बातचीत के पक्ष में क्यों हैं?
जो तत्व कश्मीर घाटी में भारत से आजादी के नारे लगाते हैं, जो पाकिस्तान के झंडे फहराते हैं, जो सेना के जवानों पर पथराव करते हैं उनसे देश क्यों बात करे?. फारूक साहब मत भूलिए कि पूर्व में भी भारत में अलगाववादियों तत्वों से बात की गई है। हाँ, पर इससे पहले उन्होंने देश के संविधान में अपनी आस्था जता दी है। देश क्यों पाकिस्तान परस्त हुर्रियत के नेताओं से बात करे?
अपने विवादास्पद बयानों के लिए बदनाम फारूक अब्दुल्ला कह रहे हैं कि वे लोन को बात करके समझाएंगे। आप ही बताएं कि अब समझाने के लिए बचा ही क्या है। विधानसभा के भीतर कोई विधायक शत्रु देश के पक्ष में नारेबाजी करे तो इसे आप क्या कहेंगे। क्या आपको लोन को पार्टी से अब तक निकाल नहीं देना चाहिए था? चलिए ये तो आपकी पार्टी का मसला है, इसलिए ये आपके ऊपर है कि आप लोन को लेकर क्या और कब कोई फैसला लेते हैं। देश तो अब आपसे ये जानना चाहता है कि आप अभीतक सुंजवान शिविर पर आतंकी हमले में घायल सैनिकों से मिलने का वक्त क्यों नहीं निकाल पाए?
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सोमवार को सुंजवान शिविर पर आतंकी हमले में घायल सैनिकों से मिलने सेना के अस्पताल पहुंची थीं। आप जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं। अब भी राज्य से लोकसभा सदस्य हैं। क्या आपको घायलों का हाल-चाल जानने के लिए अस्पताल नहीं जाना चाहिए था? क्या आप सिर्फ गैर-जिम्मेदराना बयानबाजी ही करते रहेंगे?
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)