गुजरात में पहले से ही बदहाल कांग्रेस अब ‘सूपड़ा साफ’ होने की ओर बढ़ रही है !

राज्यसभा के गणित को समझें तो 182 सीट वाले गुजरात विधानसभा में इस वक़्त कांग्रेस के पास 51 विधायक हैं, लेकिन अगर बदल रहे समीकरणों में कांग्रेस के 35 से कम विधायक रह गए तो अहमद पटेल का राज्य सभा पहुँचने का सपना चकनाचूर हो जायेगा, क्योंकि जीत के लिए कम से कम 40 वोट तो चाहिए ही चाहिए। इस वक़्त बीजेपी के तीन उम्मदीवार राज्य सभा के लिए चुनावी मैदान में हैं – अमित शाह, स्मृति ईरानी और कांग्रेस से भाजपा में आये बलवंत सिंह राजपूत। वहीं बीजेपी के कुल 121 विधायक हैं, मतलब उसके तीनों उम्मीदवारों के लिए जरूरी 120 वोट आराम से मिल जाएंगे।

राहुल गांधी ने नीतीश के इस्तीफे के बाद कहा था कि उन्हें बिहार में घटित सियासी घटनाक्रम के बारे में पहले से अंदेशा था, तो सवाल उठा कि उन्होंने इसे रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं किया ? दूसरा सवाल अब ये उठ रहा है कि क्या राहुल गाँधी को गुजरात में घटित हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में भी पहले से पता था और अगर हाँ, तो वे हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे रहे ? खैर, राहुल गांधी की ऐसी ही बयानबाजियां न केवल उन्हें हास्यास्पद बनाती हैं, बल्कि उनकी छवि एक अपरिपक्व राजनेता के रूप में भी स्थापित कर चुकी हैं।

अब स्थिति यह है कि पार्टीगत असंतोष, जड़ता और दीर्घकालिक बीमारी से उबारने के लिए कांग्रेस को शायद गुजरात में नहीं, कहीं और सर्जरी की ज़रुरत पड़े। पार्टी में असंतोष की स्थिति काफी लम्बे समय से पनप रही थी, अगर समय रहते कदम उठाया जाता तो पार्टी के अन्दर हो रहे विघटन को रोका जा सकता था। मगर कांग्रेस तो को जैसे संगठन की कोई परवाह ही नहीं है। केन्द्रीय नेतृत्व इन सबसे बेखबर बैठा है। कांग्रेस अपने लोगों को संभाल पाने में एकदम नाकाम साबित हो रही है।

सांकेतिक चित्र

राज्य सभा चुनाव के बाद क्या होगा ?

जब शंकर सिंह वाघेला समेत आधे दर्जन से ज्यादा विधायक पार्टी छोड़कर निकल लिए तब कांग्रेस नेतृत्व को एहसास हुआ कि कहीं गुजरात में पार्टी का वजूद ही न ख़त्म हो जाए। गुजरात  में कांग्रेस पिछले 33 सालों से सत्ता से बाहर है, लेकिन पिछले स्थानीय चुनावों में पार्टी की स्थिति उतनी बुरी भी नहीं थी। वाघेला के जाने के बाद पार्टी में नेतृत्व की कमी साफ़ दिख रही है।

इस वक़्त जितने भी कांग्रेसी नेता गुजरात कांग्रेस की अगुवाई कर रहे हैं, वे या तो चुनाव हार चुके हैं या उनकी अपील पूरे राज्य में लोगों के बीच नहीं के बराबर है। पिछले एक हफ्ते में पार्टी के अन्दर राजनीतिक संकट काफी गहरा गया है। छह विधायक कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं और आधे दर्जन से अधिक वाघेला समर्थक पार्टी छोड़ने का मौका तलाश रहे हैं। ऐसे में, गुजरात कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है, अगर वहां से सालों तक राज्यसभा के सदस्य रह चुके अहमद पटेल अपनी सीट न बचा सके।

अहमद पटेल और सोनिया गाँधी (सांकेतिक चित्र)

अहमद पटेल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राजनीतिक सचिव भी हैं, इसलिए यह कांग्रेस आलाकमान के लिए निजी प्रतिष्ठा की जंग बन जाती है। अहमद पटेल अगर अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे तो यह बीजेपी के लिए बड़ी जीत होगी। राजनीतिक नज़रिए से गुजरात एक विशेष राज्य है, जहाँ से खुद प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह आते हैं।

अब राज्यसभा के गणित को समझें तो 182 सीट वाले गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के पास 57 विधायक थे, मगर वाघेला संग छः विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद इस वक़्त कांग्रेस के पास 51 विधायक रह गए हैं। माना जा रहा कि लगभग  26 विधायक और इस्तीफा देने का मन बना रहे।  ऐसे में, अगर बदल रहे समीकरणों में कांग्रेस के 35 से कम विधायक रह गए तो अहमद पटेल का राज्य सभा पहुँचने का सपना चकनाचूर हो जायेगा, क्योंकि जीत के लिए कम से कम 40 वोट तो चाहिए ही चाहिए। इस वक़्त बीजेपी के तीन उम्मदीवार राज्य सभा के लिए चुनावी मैदान में हैं- अमित शाह, स्मृति ईरानी और कांग्रेस से बीजेपी में आये बलवंत सिंह राजपूत। वहीं बीजेपी के कुल 121 विधायक हैं, मतलब उसके तीनों उम्मीदवारों के लिए जरूरी 120 वोट आराम से मिल जाएंगे।

अहमद पटेल को ज़मीनी हकीक़त पता थी, इसलिए वह खुद चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन, कांग्रेस ने इस चुनाव को नाक का सवाल बना लिया। पिछले कुछ महीनों से वाघेला, नेहरू-गाँधी परिवार पर हमला कर रहे थे; वह चाहते थे कि उन्हें चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाये, लेकिन पार्टी में बढ़ रहे अंतर्विरोध के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ। अब उनकी जीत को अपनी नाक की  लड़ाई  बना चुकी कांग्रेस के लिए नाक बचाना आसान  नहीं  रहेगा।

अब कांग्रेस छोड़ चुके वाघेला ने फिलहाल न तो कोई पार्टी बनाई है और न ही भाजपा या कोई अन्य दल ज्वाइन ही किया है। इसका मतलब है कि गुजरात कांग्रेस का संकट अभी ख़त्म नहीं हो हुआ है, बल्कि 8 अगस्त को होने वाले राज्य सभा चुनाव के बाद यह संकट दूसरे दौर में प्रवेश कर जाएगा। वाघेला अभी चुप हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वह राजनीति से सन्यास ले रहे हैं। वाघेला ने अपने जन्मदिन के बाद कहा था कि “बापू कभी सन्यास नहीं लेते।’

दिल्ली, गोवा, उत्तराखंड के बाद गुजरात कांग्रेस में संकट गहराया हुआ है। यहाँ कांग्रेस की हालत ठीक नहीं रही है, मगर मौजूदा हालत देखते हुए लगता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उसका सूपड़ा न साफ़ हो जाए। ऐसे में, राहुल गाँधी को दोबारा हॉलिडे पर जाने से पहले एक बार गुजरात पर अपना होमवर्क ज़रूर कर लेना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)