अगर इसबार पाक आतंकी सगठनों पर कड़ी कार्यवाही नहीं किया तो उसे घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। जनवरी के अंत में सुरक्षा परिषद की एक टीम पाकिस्तान जाने वाली है। वह घोषित आतंकी समूहों की समीक्षा करेगी। ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से बचने के लिए उसे सुरक्षा परिषद की टीम को संतुष्ट करना पड़ेगा, यह तभी संभव है जब पाकिस्तान अपने रवैये में बदलाव लाते हुए वास्तव में आतंक के विरुद्ध कार्यवाही करेगा।
जब समूचा विश्व नए साल के जश्न में डूबा हुआ था, उसी वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को कड़ी फटकार लगाते हुए झूठा और कपटी देश बताया तथा अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही वित्तीय सहायता के उपयोग पर गंभीर प्रश्न खड़े किये। अमेरिका के राष्ट्रपति ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को जो मदद आतंक के खात्मे के लिए प्रदान की जा रही थी, उसे पाक आतंकियों की मदद में लगता रहा। ट्रंप के इस बयान के तुरंत बाद ही अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली 255 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद रोकने का भी ऐलान कर दिया गया।
गौरतलब है कि अमेरिका पाकिस्तान को विगत पंद्रह साल में 33 अरब डॉलर की भारी रकम इसलिए देता रहा, ताकि पाकिस्तान इससे आतंकियों से निपट सके। किन्तु, पाकिस्तान इस धन का उपयोग शुरू से ही आतंकियों की नस्ल को तैयार करने में, उन्हें आधुनिक हथियारों से लैस करने में करता रहा, जिससे कुकुरमुत्ते की भांति आतंकी संगठन तैयार हो गए और पाकिस्तान इन आतंकी संगठनों का सबसे बड़ा पनाहगाह देश बन गया। मुंबई हमले का मास्टरमाइंड और वैश्विक आतंकी घोषित हो चुके हाफ़िज़ सईद की रिहाई पाक की आतंक परस्ती का सबसे बड़ा प्रमाण है।
इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क, अफ़गान तालिबान समेत और भी ऐसे दर्जनों आतंकी समूहों को पाकिस्तान अपने यहाँ पनाह दिए हुए हैं। मुख्य रूप से ट्रंप की नाराजगी हाफिज सईद की रिहाई से ही शुरू हुई थी। उसवक्त भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के फ़ैसले की आलोचना करते हुए पाक को आतंक के विरोध में अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने की सलाह दी थी तथा उसे आतंकवादियों का सुरक्षित स्वर्ग बताया था। किन्तु, ट्रंप के बयान को पाकिस्तानी हुकुमत ने गंभीरता से नहीं लिया, उसी का परिणाम है कि आज ट्रंप को इतनी सख्ती के साथ पेश आना पड़ रहा है।
वैश्विक समुदाय में पाकिस्तान की छवि पहले से ही आतंक परस्त देश के रूप में बनी हुई है। भारत ने भी कुशल कूटनीति का परिचय देते हुए संयुक्त राष्ट्र तथा सार्क देशों की बैठक में पाक प्रायोजित आतंकी हमलों के साक्ष्यों को वैश्विक मंचों पर साझा किया और यह साबित किया कि आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में विश्व समुदाय के सामने पाकिस्तान ने केवल झूठ और फरेब का प्रदर्शन किया है।
पाक पोषित आतंकियों ने सबसे ज्यादा नुकसान भारत को पहुँचाया है। संसद, मुंबई, पठानकोट, उरी जैसे कई आतंकी हमले पाक प्रायोजित आंतकवाद की कारस्तानियों के प्रमाण हैं। अब अमेरिका, पाकिस्तान को दी जा रही वित्तीय मदद को रोकने पर विचार कर रहा है, यह एक अच्छा कदम है। अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में भी पाकिस्तान को आड़े हाथों लेते हुए स्पष्ट किया है कि अमेरिका पाकिस्तान पर आंतकवादी सगठनों को खत्म करने के लिए दबाव बनाएगा।
ट्रंप चुनाव के समय भी आंतक और पाक के गठजोड़ पर कड़ा बयान देते रहते थे, यह एक अच्छा संकेत है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी पाक से पनपते आतंक को लेकर उनका रुख कड़ा है। ट्रंप की इस लताड़ के बाद से पाकिस्तान में खलबली मची हुई है। किसी भी राष्ट्र के लिए यह शर्मनाक स्थिति है कि उसे हर बार आतंक के मसले पर वैश्विक समुदाय से खरी-खोटी सुननी पड़ती है। परन्तु, पाकिस्तान चिकना घड़ा है, जिसपर मिट्टी नहीं चढ़ सकती।
सवाल यह उठता है कि ट्रंप की इस सख्ती से पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा ? दूसरा अहम सवाल यह भी है कि अमेरिका की यह सख्ती भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ? आतंकवाद के मसले पर बेनकाब हो चुके पाकिस्तान को हर वैश्विक मंच पर फ़जीहत झेलनी पड़ रही है, लेकिन आतंक परस्त की उसकी नीति में बदलाव देखने को नहीं मिलता।
समय–समय पर छोटे–छोटे आतंकियों और उनके समूहों पर दिखावे की कार्यवाही कर पाकिस्तान यह साबित करने का स्वांग रचता है कि पाकिस्तान आतंकियों को लेकर सख्त है, लेकिन तमाम दबावों के बावजूद वह कभी भी आतंक की जड़ पर चोट करने का साहस नहीं जुटा पाता है। डोनाल्ड ट्रंप के ट्विट के बाद से पाक में खलबली मची हुई है। बौखलाए पकिस्तान के विदेश मंत्री ने तथ्य और कल्पना के अंतर को दुनिया को बताने की बात कही हैं।
यह हास्यास्पद है कि जब तमाम सुबूत भारत ने दुनिया के सामने रखें हैं, जिनसे यह प्रमाणित हुआ है कि पाक आतंकियों को पोषित करता है; और भी देशों ने इस तथ्य को स्वीकार किया है, लेकिन फिर भी पाकिस्तानी विदेश मंत्री मोहम्मद आसिफ़ के बयान से लगता है कि वह कल्पनाओं की दुनिया में रह रहें है, तभी तो एक वैश्विक आतंकी उनके देश की राजनीति में अपने पाँव जमाने की बात कर रहा है और पाकिस्तानी हुकुमत हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
अगर इसबार पाक आतंकी सगठनों पर कड़ी कार्यवाही नहीं करता है, तो उसे घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। जनवरी के अंत में सुरक्षा परिषद की एक टीम पाकिस्तान जाने वाली है। वह घोषित आतंकी समूहों की समीक्षा करेगी। ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से बचने के लिए उसे सुरक्षा परिषद की टीम को संतुष्ट करना पड़ेगा, यह तभी संभव है, जब पाकिस्तान अपने रवैये में बदलाव लाते हुए वास्तविकता में आतंक के विरुद्ध कार्यवाही करेगा।
अमेरिका द्वारा पाक को यह फटकार भारत की दृष्टि से भी काफ़ी अहम है। आतंकवाद ही एक ऐसा मसला है, जिसपर दोनों देशों के बीच वार्तालाप बंद है। भारत की आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई में पाक रोड़ा बनकर सामने खड़ा है, किन्तु अब यह उम्मीद जगने लगी है कि अमेरिका इस लड़ाई में उस रोड़े को पस्त करने का मन बना लिया है। आतंकी संगठनों पर कार्यवाही भारत ही नहीं, वरन विश्व की शांति और स्थिरता के लिए जरूरी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)