सवाल यह उठता है कि राबर्ट वाड्रा और उनके बच्चों को आखिर किस हैसियत से, किस आधार पर एक पार्टी के रोड शो का हिस्सा बनाया गया, वह भी प्रमुखता के साथ। प्रियंका तो पार्टी की महासचिव हैं, सोनिया पूर्व अध्यक्ष हैं, लेकिन आखिर राबर्ट पार्टी में किस पद पर हैं, उनके बच्चे पार्टी में कौन सी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं जो उन्हें रोडशो का हिस्सा बनाया गया। ये कृत्य कांग्रेस द्वारा राजनीति में परिवारवाद की सभी मर्यादाओं को पार कर जाने का ही सूचक है।
बीते सप्ताह लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अधिक देखी गई। 20 राज्यों की 91 सीटों के लिए पहले चरण का मतदान भी हुआ जिसमें 60 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई। इस सप्ताह राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने दौरे, रैली, सभाओं की सक्रियता बढ़ाई और नामांकन दाखिले का भी दौर चला।
इस क्रम में बताना होगा कि पिछले सप्ताह केरल की वायनाड सीट से नामांकन दाखिल करने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अब अमेठी से भी नामांकन भर दिया है। राहुल ने नामांकन के बाद हुए रोड शो में अपने साथ मां सोनिया गांधी, बहन प्रियंका गांधी, जीजा राबर्ट वाड्रा को भी उन्होंने साथ में ले लिया। इतना ही नहीं, वाड्रा दंपती की दोनों किशोरवय संतानें भी इसमें शामिल रहीं।
सवाल यह उठता है कि राबर्ट वाड्रा और उनके बच्चों को आखिर किस हैसियत से, किस आधार पर एक पार्टी के रोड शो का हिस्सा बनाया गया, वह भी प्रमुखता के साथ। प्रियंका तो पार्टी की महासचिव हैं, सोनिया पूर्व अध्यक्ष हैं, लेकिन आखिर राबर्ट पार्टी में किस पद पर हैं, उनके बच्चे पार्टी में कौन सी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं जो उन्हें रोडशो का हिस्सा बनाया गया। ये कृत्य कांग्रेस द्वारा राजनीति में परिवारवाद की सभी मर्यादाओं को पार कर जाने का ही सूचक है।
इससे यही साबित होता है कि कांग्रेस में वंशवाद और सामंतवाद कूट-कूटकर भरा है। यह कार्यकर्ताओं की नहीं, बल्कि एक परिवार तक सीमित, एक ही परिवार पर केंद्रित पार्टी है। अन्य दलों के नेता जब नामांकन भरने जाते हैं तो उनके साथ पार्टी के पदाधिकारी मौजूद रहते हैं क्योंकि संगठन स्वयं अपने आप में एक परिवार होता है और यह कार्यकर्ताओं से बनता है, व्यवस्था से बनता है, व्यक्ति से नहीं। लेकिन इसके उलट, कांग्रेस में तो सारी नैतिकताओं, मर्यादाओं को ताक पर रखकर परिवार-पूजन की परंपरा चली आ रही है।
आश्चर्य इस बात का भी है कि देश भर में बड़ी संख्या में फैले कांग्रेसी नेता, समर्थक अपनी चाटुकारिता में इतने आगे जा चुके हैं कि इस वंश परंपरा के अशोभनीय कृत्य को देखकर भी उनके जेहन में कोई सवाल नहीं उठता। यह सवाल किसी कांग्रेसी ने नहीं उठाया कि जमीन घोटालों के आरोपी राबर्ट वाड्रा आखिर किस हैसियत से कांग्रेस के रोड शो के नेतृत्व दल में शामिल हुए।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास अच्छे नेताओं की कमी है। सच तो यह है कि कांग्रेस में देश भर में ऐसे अनेकों कार्यकर्ता, नेता हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन, समस्त ऊर्जा इस पार्टी के लिए न्योछावर कर दी है लेकिन इसके बावजूद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कभी भी ऐसे मेहनती लोगों को उपकृत करना तो दूर, उनके आत्म-सम्मान तक का ध्यान रखना उचित नहीं समझा।
अमेठी में 6 मई को मतदान होना है। यहां से भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने भी अपना नामांकन दाखिल किया और रोड शो भी किया। उनके रोडशो में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ थे, न कि परिवार का कोई सदस्य। इसके नामांकन भरने से पहले उन्होंने पूर्ण विधि-विधान से हवन किया।
उनका हवन करना समझ में आता है क्योंकि उन्होंने कभी भी हिंदुत्व पर सवाल नहीं उठाए, ना ही हिंदू मान्यताओं को काल्पनिक बताया है, लेकिन सोनिया, प्रियंका, राहुल, राबर्ट जैसे दोहरे चरित्र के लोगों से यह सवाल सख्ती से पूछा जाना चाहिये कि यदि इन लोगों को हिंदू कर्मकांड और रीति-रिवाजों की इतनी ही परवाह है तो ये लोग अभी तक कहां थे? चुनावी बेला में ही इनके भीतर का हिंदू क्यों जागा।
आज हवन करने वाले ये वही राहुल गांधी हैं जो टिप्पणी कर चुके हैं कि मंदिर जाने वाले लोग लड़कियां छेड़ते हैं। उन्हें बताना चाहिए कि वे दोनों भाई-बहन क्या करने मंदिर जा रहे हैं। यहां हवन की नौटंकी करने वाले राहुल गांधी वही शख्स हैं जिन्होंने पिछले सप्ताह मुस्लिम बाहुल्य वायनाड में नामांकन भरा और उनके रोड शो में मुस्लिम लीग के झंडे लहराए गए जिस पर विवाद हुआ। इसके बाद उन्होंने उन समर्थकों को यूपी आने से मना किया क्योंकि ऐसा हो जाता तो यहां उनके ढोंग का प्रत्यक्ष भंडाफोड़ हो जाता, यहां उनके हिंदू वोट कट जाते।
गजब ये है कि इसके बाद भी राहुल खुद को जनेऊधारी हिन्दू कहने से बाज नहीं आएंगे। असल में राहुल गांधी हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों की भावनाओं से खिलवाड़ करके केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति कर रहे हैं और वोट जुटाने के लिए निम्न स्तर की राजनीति कर रहे हैं।
इसके लिए उनका अकेले का दोष नहीं है, ये राजनीतिक संस्कार उन्हें विरासत में मिले हैं। कांग्रेस रूपी दीमक ने देश को गत 70 सालों में कई मोर्चों पर खोखला किया और अब इसके वाहक नए दौर में, नए वेश-परिवेश में उसी दूषित मानसिकता को थोपने पर आमादा हैं। कांग्रेस देश के साथ तो विश्वासघात करने में माहिर है ही, अपने कार्यकर्ताओं के परिश्रम के प्रति भी कृतघ्न है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)