सरकार कारोबारियों की समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ है। जीएसटी से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिये ही सरकार ने जीएसटी के प्रावधानों में राहत दी है। भविष्य में जीएसटी के संदर्भ में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिये भी सरकार कटिबद्ध है। किसी भी नई व्यवस्था में विसंगतियों के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे दूर किया जाना चाहिये। मोदी सरकार भी यही काम कर रही है। इसलिए इसे मुद्दा बनाने के विपक्ष के किसी भी कुतर्क को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से पैदा हुई समस्याओं को लेकर कुछ लोग देश भर में हो-हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन इसे अतार्किक ही माना जाना चाहिये। किसी भी नये कानून, नियमावली या व्यवस्था में हमेशा संशोधन की गुंजाइश होती है। अगर ऐसे कानून या व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है तो जरूर उसे गलत कहा जाना चाहिए, लेकिन सरकार यदि नई व्यवस्था में मौजूद कमियों को दूर करने का प्रयास कर रही है तो उसे लेकर वितंडा खड़ा नहीं किया जाना चाहिये।
विश्व बैंक ने भी जीएसटी का समर्थन किया है। विश्व बैंक का कहना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि में हाल में आई गिरावट अस्थायी है। विश्व बैंक को भरोसा है कि आने वाले दिनों में विकास दर में आई गिरावट सुधर जायेगी। विश्व बैंक यह भी दावा कर रहा है कि जीएसटी के कारण जल्द ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गुलाबीपन आ जायेगा। विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में जीएसटी का सकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। किम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनके प्रयासों से भारत के कारोबारी माहौल में सकारात्मक सुधार हुआ है।
इधर, 6 अक्टूबर को जीएसटी परिषद की बैठक में 27 वस्तुओं पर जीएसटी की दरों में कटौती की गई है। सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि जीएसटी के अनुपालन संबंधी नियमों एवं शर्तों में राहत दिये जाने की जरूरत है, ताकि छोटे, मझौले एवं निर्यात करने वाले कारोबारियों को होने वाली परेशानियों में कुछ कमी आ सके। जीएसटी परिषद ने 1.5 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली इकाइयों को प्रत्येक महीने की जगह तीन महीने में एक बार रिटर्न जमा करने की छूट दी है।
छोटे कारोबारियों के लिए कंपोजिशन योजना की सीमा भी 75 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये की गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक छोटे एवं मझोले कारोबारियों को राहत देना जरूरी था, क्योंकि इससे उन्हें नुकसान हो रहा था। अब तक जीएसटी के तहत पंजीकृत हर एक कारोबारी को मासिक आधार पर अपना रिटर्न जमा करना होता था, लेकिन ऑनलाइन रिटर्न जमा करने के लिए बनाई गई व्यवस्था की वजह से छोटे एवं मझौले कारोबारी हर महीने रिटर्न जमा नहीं कर पा रहे थे, जिसका एक बड़ा कारण ऐसे कारोबारियों का कम पढ़ा-लिखा होना या नये तकनीकों या कंप्यूटर से परिचित नहीं होना था। देखा जाये तो इसी वजह से जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में जीएसटी रिटर्न कम जमा हुए और जुलाई महीने में सरकार का कुल जीएसटी संग्रह करीब 95,000 करोड़ रुपये और अगस्त में 90,669 करोड़ रुपये रहा, जो पूर्व के कर संग्रह से कम है।
जीएसटी के कारण कार्यशील पूँजी फँस जाने से निर्यातकों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। निर्यात करने वाले कारोबारियों का कहना है कि 60,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की उनकी पूँजी अभी भी फंसी हुई है, जिसे उन्होंने एकीकृत जीएसटी के रूप में पहले जमा कर दिया था। उन्हें उन सामान पर कर के भुगतान की वापसी लेनी है, जिनका निर्यात किया जाना शेष है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
निर्यातकों को फंसी राशि की वापसी में आ रही समस्या से राहत मिल सके, इसके लिये सरकार जल्द ही इलेक्ट्रॉनिक रिफंड व्यवस्था को लागू करने जा रही है। इसके लिये ई-वॉलेट व्यवस्था को भी जल्द लागू किया जायेगा, ताकि कारोबारियों को रिफंड ई-वॉलेट के जरिये देना सुनिश्चित किया जा सके। निर्यातकों को जुलाई-अगस्त के लिए रिफंड प्रक्रिया 10 अक्टूबर से शुरू हो जायेगी।
कहा जा सकता है कि सरकार कारोबारियों की समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ है। जीएसटी से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिये ही सरकार ने जीएसटी के प्रावधानों में राहत दी है। भविष्य में जीएसटी के संदर्भ में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिये भी सरकार कटिबद्ध है। किसी भी नई व्यवस्था में विसंगतियों के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे दूर किया जाना चाहिये। मोदी सरकार भी यही काम कर रही है। इसलिए इसे मुद्दा बनाने के किसी भी कुतर्क को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)