कांग्रेस ने पिछले एक साल में गुजरात की फिजा को ख़राब करने के लिए हर वह यत्न किया, जिससे गुजरात को बदनाम किया जा सके। कांग्रेस ने यह आरोप लगाया था कि गुजरात में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं, यह भी कहा कि गुजरात में विकास हुआ ही नहीं। गुजरात की जनता ने इन बेबुनियाद आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। जनता सच और झूठ का फर्क करना जानती है और अपनी वोट की ताकत का सही इस्तेमाल भी उसे आता है। ये गुजरात के मतदाताओं ने साबित कर दिया।
गुजरात के नतीजे ऐतिहासिक रहे हैं। भाजपा का विकास पागल नहीं हुआ है, अव्वल आया है। गुजरात की जनता ने एक बार फिर जातिवाद की राजनीति के विष–बेल को उखाड़कर फेंक दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही देश के सबसे बड़े नेता हैं, यह गुजरात की जनता ने साबित करके दिखाया है। अब 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यह नतीजे कांग्रेस को नासूर की तरह चुभते रहेंगे।
कांग्रेस ने पिछले एक साल में गुजरात की फिजा को ख़राब करने के लिए हर वह यत्न किया, जिससे गुजरात को बदनाम किया जा सके। कांग्रेस ने यह आरोप लगाया था कि गुजरात में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं, यह भी कहा कि गुजरात में विकास हुआ ही नहीं। गुजरात की जनता ने इन बेबुनियाद आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। अगर कांग्रेस की यही राजनीती है, तो उसे अब एकबार फिर बड़े झूठ का सहारा लेना होगा ताकि मोदी को गलत साबित किया जा सके। लेकिन, जनता सच और झूठ का फर्क करना जानती है और अपनी वोट की ताकत का सही इस्तेमाल भी उसे आता है।
यह भी स्पष्ट है कि राहुल गाँधी को अभी और मेहनत करने की दरकार है। राहुल को सकारात्मक सोच के साथ सामने आना होगा, झूठ का त्याग करना होगा ताकि वह देश की नई पीढ़ी को साथ ले सकें। कांग्रेस के राजकुमार को गुजरात चुनाव के नतीजे घोषित होने के ठीक पहले गद्दी पर बड़ी धूमधाम से बिठाया गया था, अब इसके लिए तो यही कह सकते हैं कि शायद यह मौका ठीक था और ठीक नहीं भी था।
वैसे, इस हार में सिर्फ राहुल का ही कसूर नहीं है, कसूर उन कांग्रेसी नेताओं का भी है, जिन्होंने मिलकर कांग्रेस को गलत पटरी पर दौड़ा दिया। जो भी गुजरात चुनाव के नतीजे को अब तक बड़ी उम्मीदों के साथ देख रहे थे, उन्हें इस बात का इल्म था कि राहुल एक बार फिर हारने जा रहे हैं। वैसे राहुल गाँधी के लिए हारने का इतिहास कोई नया नहीं है। हार के बाद फिर वापस मैदान में आना और अपने सियासी हरीफ को चुनौती देना उनकी आदत बन गई है।
कांग्रेस को हिमाचल में भी बहुत बड़ा धक्का लगा है। क्या हार का तमगा लेकर राहुल 2019 के लोकसभा चुनाव में जाएंगे? सोनिया गांधी का कहना है कि वे सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगी, जिसका उन्होंने फैसला कर ही लिया है, तो आगे कांग्रेस की दिशा और दशा क्या होगी? यह बात भी स्पष्ट है कि जनता को कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व का मुद्दा पसंद नहीं आया है। जब मोदी और योगी जैसे नेताओं में पहले से ही लोगों को हिन्दुत्ववादी चेहरे दिखते हैं, तो ऐसे में कांग्रेस की हिंदुत्व की राजनीति सफल कैसे होती।
जनता को पता है कि राहुल गाँधी कितने हिन्दू हैं, कितने मुसलमान हैं, कितने ईसाई हैं! कांग्रेस को यह ढोल पीटने की जरूरत नहीं थी कि राहुल गाँधी जनेऊधरी हिन्दू हैं। लोग यह भी जानते थे कि इंदिरा गाँधी शिव की भक्त थीं। हो सकता है कि सोनिया गाँधी भी हिन्दुओं वाले व्रत रखती हों। लेकिन, क्या यही मुद्दा था? दरअसल अनाप शनाप के मुद्दों की राजनीति कर कांग्रेस ने खुद का बंटाधार कर लिए।
कांग्रेस को उन रास्तों को अपनाना होगा, जहाँ दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों को साथ लेकर आगे बढ़ने का समग्र दर्शन और विकास की मौलिक सोच हो। हालांकि गुजरात में कांग्रेस की शर्मनाक हार नहीं हुई है, लेकिन हार तो हार ही है, जिसको लेकर उसे आत्ममंथन करना चाहिए। हिमाचल की हार का भी विश्लेषण करना चाहिए। अंत में, दोनों राज्यों की जनता साधुवाद की पात्र है, जिसने सही और गलत का फर्क कर उचित फैसला लिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)