जम्मू-कश्मीर में हुई सुधारात्मक पहलों को अपनी निजी क्षति मानकर बैर पाल रहे नेता अब प्रदेश में दोबारा अराजकता लाना चाहते हैं। इसलिए ये गुपकार गठबंधन के रूप में सक्रिय हो रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए गए एक साल से अधिक समय हो गया है। अब लद्दाख ना केवल केंद्र शासित प्रदेश है, बल्कि वह अन्य राज्यों की तरह विकास क्रम में आगे भी बढ़ रहा है। इसी के साथ आगे बढ़ रही है कश्मीर की अवाम और वह पूरी परिस्थिति जो बदले हुए आयाम में अपने नए अस्तित्व को पाकर उत्तरोत्तर अग्रसर है।
लेकिन इस बीच नेताओं का एक विघ्नसंतोषी वर्ग भी है जो सब कुछ ठीक होते नहीं देख सकता। जा़हिर है, ऐसे में कानाफूसी होंगी, बैठकें होंगी, जुमले उछाले जाएंगे और अप्रिय बातें कहीं जाएंगी। यहां भी यही सब हो रहा है। असल में, कश्मीर के नए वजूद को वो लोग कतई नहीं पचा पा रहे हैं जो यहां केवल आतंकवाद और अलगाववाद के आदी थे और अब उन्हें अमन-चैन से बड़ी घबराहट हो रही है।
पीडीपी की महबूबा मुफ्ती लंबे समय बाद नज़रबंदी से बाहर तो आ गईं हैं, लेकिन अपना वैमनस्य चार गुना बढ़ाकर लौटी हैं। अब वे जब तब भारत के खिलाफ बयानबाजी कर रही हैं। इन दिनों वह गुपकार गैंग दोबारा सक्रिय हो गया है जो साल भर पहले एकजुट हुआ था।
श्रीनगर में गुपकार नाम का एक रोड है जहां पर फारूक अब्दुल्ला का घर है। 5 अगस्त, 2019 को संसद में ऐतिहासिक बिल लाकर कश्मीर से 370 अनुच्छेद हटाया गया, उसके ठीक एक दिन पहले अब्दुल्ला के इसी घर पर कई नेता जुटे थे। इनमें महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला प्रमुख थे।
उन दिनों करीब पखवाड़े भर पहले से कश्मीर में अभूतपूर्व रूप से सुरक्षाबलों की तैनाती की जा रही थी। देश भर से अनेक कंपनियों के सैनिकों को वहां नियोजित किया गया था। यह देख इन अलगाववादी नेताओं की नींद उड़ गई थी और उन्हें कुछ बड़ा होने की आशंका लग रही थी। यह निर्मूल साबित नहीं हुई।
बड़ा हुआ, वास्तव में हुआ और इतिहास बन गया। लेकिन इन नेताओं ने बैचेनी में आकर कुछ घोषणाएं कर डालीं। अब यह जानना अहम है कि ये घोषणाएं या संकल्प क्या थे और इनकी गर्त में क्या है।
हाल ही में महबूबा ने कहा कि उन्होंने भारत में शामिल होकर गलती की। क्या उनके इस बयान से यह सीधा संदेश नहीं मिलता कि वे खुद को भारत का हिस्सा नहीं मानतीं। साथ ही वे कश्मीर को अभी भी अलग ही राज्य मानती हैं। वे ही क्यों, फारूक अब्दुल्ला तो गलतबयानी में उनसे एक कदम आगे हैं। बीते दिनों एक साक्षात्कार में उन्होंने कश्मीर के भारत के हाथों से निकल जाने का इंतजार किए जाने जैसी बात कही। उन्होंने चीन के पक्ष में भी काफी कुछ कहा।
चिंता की बात तो यह है कि अब यह गुपकार गिरोह अपनी जड़ें फैलाने लगा है। ये लोग तिरंगे का अपमान करते हैं। हालांकि सही समय पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस पनपते गिरोह की संभावनाओं को भांप लिया है। उन्होंने कांग्रेस पर यह सवाल भी उठाया था कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी इस गुपकार गिरोह का समर्थन कर रहे हैं या विरोध, उन्हें अपना झुकाव तो स्पष्ट करना चाहिये।
ऐसे दबाव के चलते कांग्रेस ने अब स्पष्टीकरण के रूप में यह कहा है कि वो इन संगठनों की विचारधारा का समर्थन नहीं करती है, लेकिन तब सवाल ये है कि फिर उसने स्वतः ही इस गिरोह के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई। अमित शाह के सवाल पूछने के बाद ही उसकी प्रतिक्रिया क्यों सामने आई ?
खैर, पुनः गुपकार गिरोह की बात करें तो जम्मू-कश्मीर में हुई सुधारात्मक पहलों को अपनी निजी क्षति मानकर बैर पाल रहे नेता अब प्रदेश में दोबारा अराजकता लाना चाहते हैं। इसलिए ये गुपकार गठबंधन के रूप में सक्रिय हो रहे हैं।
आपको बता दें कि “पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन” जम्मू और कश्मीर के राजनेताओं का एक समूह है, जिसमें फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन शामिल हैं। इन नेताओं ने ही सबसे पहले जम्मू और कश्मीर में आर्टिकल 370 की बहाली के लिए लड़ाई शुरू की थी। जहां तक, गुपकार टोली की बात है, यह अकेली नहीं है। देश के भीतर बैठे विश्वासघाती और देशद्रोही तत्व जरूर पिछले दरवाज़े से इनकी हर संभव मदद करेंगे।
इससे पहले कि इन अराजक नेताओं को शह मिले, देश की जनता को समझ में आ जाना चाहिये कि सामूहिक चेतना और सहभागिता इसमें कितना बड़ा योगदान कर सकती है। कश्मीर की जनता अब जाग चुकी है। निश्चित ही वह इन दलों व इनके इस गिरोह के बहकावे में न आकर जम्मू-कश्मीर के विकास की राह को अपनाए रहेंगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)