हिमाचल में लोगों की शिकायत है कि कांग्रेस हारती हुई दिख रही है, इसीलिए हिमाचल को चुनावी चर्चा से मीडिया ने गायब ही कर दिया है। रिपोर्टिंग ऐसे हो रही है, जैसे चुनाव सिर्फ गुजरात में हो। क्या देश की जनता को यह जानने का हक़ नहीं है कि आखिर हिमाचल प्रदेश में क्या हो रहा है, जहाँ पिछले पांच सालों से कांग्रेस पार्टी सत्ता में है। शिमला को कभी अंग्रेजों ने देश का समर कैपिटल बनाया था, लेकिन आज इसकी दूरी दिल्ली से इतनी ज्यादा क्यों हो गई है ?
इस समय देश के दो महत्वपूर्ण राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन चुनावी चर्चा से हिमाचल लगभग पूरी तरह से गायब है। हिमाचल की धरती पर आप कदम रखेंगे तो वहां वर्तमान कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है और सरकार के प्रति जनता में बेहद गुस्सा है, लेकिन इसकी झलक आपको न तो समाचार चैनलों पर देखने को मिलेगी और न ही अंग्रेजी के बड़े अख़बारों में।
हिमाचल में लोगों की शिकायत है कि कांग्रेस हारती हुई दिख रही है, इसीलिए हिमाचल को चुनावी चर्चा से मीडिया ने गायब ही कर दिया है। हिमाचल की चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है, गुजरात का होना है। लेकिन, रिपोर्टिंग ऐसे हो रही है, जैसे चुनाव सिर्फ गुजरात में हो। क्या देश की जनता को यह जानने का हक़ नहीं है कि आखिर हिमाचल प्रदेश में क्या हो रहा है, जहाँ पिछले पांच सालों से कांग्रेस पार्टी सत्ता में है। शिमला को कभी अंग्रेजों ने देश का समर कैपिटल बनाया था, लेकिन आज इसकी दूरी दिल्ली से इतनी ज्यादा क्यों हो गई है ?
क्या मीडिया पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुँच गई है कि यहाँ नतीजे किस दिशा में जाने वाले हैं। हिमाचल के मतदाता को इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि मीडिया में इस चुनाव को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जा रहा। लेकिन, जब वाजिब मुद्दों की बात होगी तो कांग्रेस के पांच सालों का लेखा-जोखा भी लिया ही जायेगा। वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है।
वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार में घिरे हुए हैं। आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में उनकी मुसीबतें बनी हुई हैं। सेब बागानों से हुई आय और उसके निवेश को लेकर मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी के खिलाफ जांच चल ही रही है। इसी साल ही वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य के नाम से खरीदे गए दिल्ली स्थित 27 करोड़ रूपये के फार्म हाउस को ईडी ने सील कर दिया, इसकी भी जांच चल रही है।
दरअसल भ्रष्टाचार के आरोपों से वीरभद्र सिंह का पुराना नाता रहा है। संप्रग सरकार में केन्द्रीय इस्पात मंत्री रहते हुए कई व्यापारियों के साथ लेन-देन को लेकर जब आरोप गहराए तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। 2012 में मतदाताओं ने वीरभद्र को मुख्यमंत्री चुनकर फिर से कुर्सी पर बिठा दिया, यह बात अलग है कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनके जवाब से जांच एजेंसियां और अदालत संतुष्ट नहीं हैं। मगर, वे कुर्सी पर यथावत बने हुए हैं। स्पष्ट है कि 2012 में भी भ्रष्टाचार कांग्रेस के लिए कोई मुद्दा नहीं था और आज भी नहीं है।
इसके अलावा हिमाचल के कोठकई में हुए गुड़िया काण्ड के बाद कई पुलिस अधिकारी सलाखों के पीछे चले गए। हिमाचल एक शांतिप्रिय प्रदेश है, यहाँ की जनता ने इस तरह के क़त्ल और दुष्कर्म की घटनाओं को कभी नहीं होते देखा था। इस मामले ने राज्य सरकार की क़ानून व्यवस्था पर गहरे प्रश्नचिन्ह लगाए। कांग्रेस सरकार की चुप्पी से सभी चकित भी हैं और सरकार को दण्डित करने के पक्ष में भी।
यह बात सही है कि वीरभद्र हिमाचल की राजनीति में एक तिकड़मी नेता के तौर पर जाने जाते हैं और उन्होंने अपने विरोधियों को किनारे लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। अपने चहेतों को टिकट दिलवाने के लिए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के हाथ से चुनाव अभियान की कमान छीन ली और अपने बेटे को भी टिकट दिलवाने में सफल रहे।
कांग्रेस के सीएम पद के उम्मीदवार वीरभद्र सिंह को बहुत समय कोर्ट-कचहरियों के चक्कर लगाने में ही बिताना पड़ता है, वहीं बीजेपी के पास सीएम पद के उम्मीदवारों की सूची काफी लम्बी है। कांग्रेस के आला नेता अपने-अपने बेटे-बेटियों के भविष्य को सँवारने में लगे हैं, वहीं हिमाचल में भाजपा के खेमे में उत्साह की लहर है। भाजपा के लिए राज्य में जीत की बयार हर तरफ बह रही है।
कांग्रेस पार्टी मिशन रिपीट का नारा लगाकर सत्ता में वापसी का दावा कर रही है, वहीं भाजपा का नारा है मिशन 50 का। हिमाचल में 68 विधान सभा सीटें हैं, इसलिए अमूमन जीत और हार का मार्जिन भी बहुत बड़ा नहीं देखा जाता, लेकिन इस बार ज़मीनी स्तर पर बड़े बदलाव के संकेत से कांग्रेस खेमे में बौखलाहट है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)