भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और अपने अच्छे-बुरे का निर्णय स्वयं करने को स्वतंत्र है। अमेरिका और रूस के बीच संबन्ध इसमें बाधक नहीं बन सकते। इसमें संदेह नहीं कि वर्तमान सरकार की दृढ़ता के ही कारण अमेरिकी प्रतिबन्ध और धमकियों के बावजूद रूस के साथ एस-400 की खरीद का समझौता हो सका। मोदी ने जिस छप्पन इंच की छाती की बात कही थी, इस समझौते में उसका दम देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबित किया कि उनके लिए राष्ट्रीय हित और सुरक्षा सर्वोच्च है। इसके लिए देश के भीतर कांग्रेस और बाहर अमेरिका का विरोध उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने रूस के साथ एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम के रक्षा सौदे को अंजाम तक पहुंचाया। अमेरिका ने इस समझौते को रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। कांग्रेस राफेल की तरह इस पर भी चोर-चोर चिल्ला सकती है। लेकिन मोदी अविचलित भाव से आगे बढ़ते रहते हैं। उनकी दृढ़ता से विदेश नीति के क्षेत्र में नया अध्याय जुड़ा। अमेरिका के लगातार विरोध को मोदी ने दरकिनार किया जिसके चलते रूस के साथ यह रक्षा समझौता संभव हो सका।
देखा जाए तो शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व के हालात पूरी तरह बदल गए थे। मनमोहन सिंह के समय विदेश नीति अमेरिका की तरफ झुकी थी। उसके साथ परमाणु करार ही तब एकमात्र ड्रीम प्रोजेक्ट था। इसका परिणाम यह हुआ कि तब रूस का झुकाव चीन और पाकिस्तान की तरफ होने लगा था।
नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिया। अमेरिका और रूस के साथ मित्रता में संतुलन बनाया। अमेरिका से भी बेहतर रिश्ते बनाये, इसी के साथ रूस को भी दूर नहीं जाने दिया। लेकिन अपनी दृढ़ता और राष्ट्रीय स्वाभिमान को भी बनाये रखा। प्रधानमंत्री बनने के साथ ही मोदी ने कहा था कि किसी भी देश के साथ आंख झुकाकर नहीं आँख मिलाकर बात की जाएगी। रूस के साथ इस समझौते से मोदी ने यह साबित कर दिया।
दरअसल अमेरिका ने ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट’ के अन्तर्गत रूस से रक्षा खरीद को प्रतिबंधित कर दिया था। यह प्रतिबंध रूस के क्रीमिया पर कब्जे और अमेरिकी चुनाव में रूसी हस्तक्षेप के कारण लगाया गया था। इसी प्रतिबन्ध के तहत अमेरिका उन देशों के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है जो रूस से रक्षा सामग्री या खुफिया सूचनाओं का लेन-देन करते हैं।
लेकिन भारत ने इसकी परवाह न करते हुए रूस के साथ व्यापार, निवेश, नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, अंतरिक्ष आदि क्षेत्रों में समझौते किए। इसके अलावा दोनों देशों के बीच रूबल रुपया डील, हाइ स्पीड रशियन ट्रेन, टैंक रिकवरी ह्विकल, रोड बिल्डिंग इन इंडिया, ऑपरेशन ऑन रेलवे, सर्फेस रेलवे ऐंड मेट्रो रेल पर भी बात हुई। आतंकवाद, अफगानिस्तान ऐंड इंडो पेसेफिक इवेंट, क्लाइमेट चेंज के साथ एससीओ, ब्रिक्स, जी ट्वेंटी और असियान जैसे मुद्दे भी चर्चा का विषय रहे। लेकिन सबसे ख़ास एस-400 की खरीद के समझौते पर हस्ताक्षर होना ही है।
एस-400 अत्याधुनिक और सर्वाधिक लंबी दूरी वाला एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम है। यह दुश्मन के क्रूज, एयरक्राफ्ट और बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है। वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ ने एस-400 को भारतीय वायुसेना के लिए एक बूस्टर शॉट बताया है। भारत को पड़ोसी देशों के खतरे से निपटने के लिए इसकी बहुत जरूरत थी, लेकिन पिछली सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं थी।
इसके अलावा दोनों देशों के बीच स्पेस में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी करार हुआ है। इस डील के तहत साइबेरिया में रूसी शहर के पास भारत निगरानी स्टेशन बनाएगा। भारत की ओर से दो हजार बाइस में चांद में मानव को भेजने के मिशन के ऐलान के बाद यह करार महत्वपूर्ण होगा।
एस-400 समझौता राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में तो महत्वपूर्ण पड़ाव है ही, साथ ही इसने राष्ट्रीय स्वाभिमान को भी बढ़ाया है। महाशक्ति अमेरिका की रोक के बावजूद भारत का इस समझौते पर आगे बढ़ जाना देश की मजबूती का परिचायक है। अमेरिका से भारत के रिश्ते अच्छे हैं, लेकिन इसके लिए कोई शर्त नहीं हो सकती। सुरक्षा के लिए भारत की सैन्य जरूरतों को पूरा करना अपरिहार्य है। इसके लिए भारत जो भी उचित समझेगा, वह निर्णय करेगा।
भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और अपने अच्छे-बुरे का निर्णय स्वयं करने को स्वतंत्र है। अमेरिका और रूस के बीच संबन्ध इसमें बाधक नहीं बन सकते। इसमें संदेह नहीं कि वर्तमान सरकार की दृढ़ता के ही कारण अमेरिकी प्रतिबन्ध के बावजूद रूस के साथ यह समझौता हो सका। मोदी ने जिस छप्पन इंच की छाती की बात कही थी, इस समझौते में उसका दम देखा जा सकता है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)