सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार हमार वैज्ञानिकों के साथ हर प्रकार से खड़ी है। सरकार के इस सहयोग के परिणामस्वरूप हमारे वैज्ञानिक विफलता के प्रति निर्भय होकर लगातार सफलता के लिए प्रयास कर रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में विश्व में अंतरिक्ष सहित विज्ञान के विविध क्षेत्रों में भारत का दबदबा कायम होगा।
नया साल देश के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता और उपलब्धियां लेकर आया है। अपने सफल प्रक्षेपणों के लिए ख्यात भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने फिर एक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण कर दिखाया है। यह उपग्रह कार्टोसेट टू सीरीज का था, जिसे पीएसएलवी के माध्यम से लॉन्च किया गया। यह तो उपलब्धि है ही, लेकिन इससे बड़ी और अहम उपलब्धि ये रही कि इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों की संख्या पूरी सौ हो गई।
बीते शुक्रवार की सुबह इसरो ने कुल 31 सैटेलाइट छोड़े जिन्हें अमेरिका के लिए लक्षित किया गया। जिस प्रकार के उपग्रह इसरो ने प्रक्षेपित किए, उस प्रकार के उपग्रह दक्षिण कोरिया, फ्रांस, कनाडा और यूके आदि देशों के हैं। निश्चित ही इस सफलता से भारत को विराट उपलब्धि हासिल हुई है, जिसके चलते हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि इसरो विगत कुछ वर्षों से सफलता का प्रतिमान बन चुका है। यही कारण है कि उक्त देशों सहित अन्य देश इसरो की सेवाएं लेना पसंद करते हैं और वे अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण इसरो के माध्यम से करवाते हैं।
ऐसा नहीं है कि इसरो ने हमेशा सफलता ही पाई हो, संघर्ष और विफलताओं से ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस संदर्भ में आपको याद होगा गत सितंबर में इसरो का एक प्रक्षेपण असफल हो गया था, लेकिन उसके बाद अगले सैटेलाइट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचाने के बाद से इसरो ने अपनी लय दोबारा प्राप्त कर ली। शुक्रवार को सफल प्रक्षेपण से महज एक दिन पहले यानी बुधवार को ही इसरो के नए अध्यक्ष की घोषणा हुई। इसरो से सेवानिृत्त हो रहे अध्यक्ष किरण कुमार के स्थान पर वरिष्ठ अंतरिक्ष विज्ञानी के. सिवान पद पर होंगे। ये वही सिवान हैं, जिन्होंने 104 सैटेलाइट एक साथ लॉन्च करने के इसरो के बड़े प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
खैर, उपर्युक्त बातों से यह तो स्पष्ट होता ही है कि अब भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में वैश्विक रूप से इतना सुदृढ़ हो चुका है कि अंतरिक्ष कारोबार को लेकर भी अब भारत की धाक विश्व में जमने लगी है। लगातार मिल रही सफलताओं के बाद निश्चित ही अपेक्षाओं और चुनौतियों का बढ़ना तय है, इसके चलते तकरीबन प्रत्येक महीने में एक सैटेलाइट लॉन्च करना होगा। मंगल एवं चंद्रमा के लिए आने वाले दिनों में नए अभियानों के आरंभ होने की उम्मीद है। इसरो अब एक वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसी बन चुका है, जिसकी सेवाएं अधिक से अधिक देश लेने को इच्छुक हैं।
देखा जाए तो केवल अन्तरिक्ष ही नहीं, बल्कि रक्षा आदि क्षेत्रों में भी भारत हाल के वर्षों में तेजी से प्रगति किया है। मोदी सरकार द्वारा स्वदेशी निर्माण पर जोर दिए जाने के परिणामस्वरूप तमाम सैन्य उपकरणों का निर्माण देश में ही होने लगा है। आइये, कुछ प्रमुख वैज्ञानिक कामयाबियों पर एक नजर डालते हैं।
पनडुब्बी आईएनएस
गत वर्ष दिसंबर में देश को पहली स्कार्पिन क्लास की पनडुब्बी की सौगात मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कलवरी नाम की इस पनडुब्बी को नौसेना के बेड़े में शामिल किया। लॉन्चिंग से पहले इस पनडुब्बी का समुद्र में लगातार चार महीने तक परीक्षण किया गया था। कई मापदंडों पर कसने के बाद इसे हरी झंडी दी गई। कलवरी वास्तव में पनडुब्बी का एक प्रकार होता है, जिसका नाम टाइगर शार्क पर आधारित है जो हिंद महासागर में पाई जाती है। इसका निर्माण भारत में किया गया है और अभी ऐसी बीस और पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है।
ब्रम्होस से लैस सुखोई
पिछले दिनों देश की रक्षा प्रणाली ने एक अभूतपूर्व सफलता हासिल की, जिससे पूरी दुनिया की निगाहें भारत की ओर मुड़ गईं। भारतीय वायुसेना ने फाइटर प्लेन सुखोई से ब्रम्होस मिसाइल का सफल परीक्षण करके इतिहास रच दिया। ब्रम्होस को विश्व की सर्वाधिक वजनी मिसाइलों में से माना जाता है। समुद्र में जहाजों पर सबसे तेज गति से यह हमला करने के लिए जानी जाती है। भारतीय वायुसेना में इसका शामिल होना एक गौरव की बात है। इस मिसाइल को सुखोई से प्रक्षेपित करना अत्यंत बड़ा काम था, जो हमारे देश ने कर दिखाया।
104 सैटेलाइट लॉन्च कर गढ़ा इतिहास
पिछले साल फरवरी में इसरो ने अभी तक की सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की थी। श्रीहरिकोटा के लॉन्चिंग पेड से इसरो की ओर से 104 सैटेलाइट छोड़े गए और भारत ने विश्व फलक पर कीर्तिमान रच दिया। यह इसरो का सबसे बड़ा मिशन था, जो पूरी तरह सफल हुआ। यह पहला अवसर था, जबकि सौ से अधिक सैटेलाइट एक साथ अंतरिक्ष में छोड़े गए थे। इनमें इजरायल, स्विट्ज़रलैंड, कज़ाकिस्तान, यूएई आदि देशों के उपग्रह शामिल थे। रोचक बात यह है कि इसमें भारत के केवल तीन ही उपग्रह शामिल थे।
दरअसल अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका का पहले पूरे विश्व में दबदबा था। इसके चलते अमेरिका भारत सहित अन्य देशों को तकनीकें नहीं मुहैया कराता था। एक बार रूस ने भारत को क्रायोजनिक इंजन देना चाहा तो अमेरिका ने बाधा खड़ी की। यह अमेरिका का अहंकार था, जो किसी अन्य देश को आगे नहीं आने देना चाहता था लेकिन भारत ने अपने बलबूते पर वह मुकाम हासिल किया कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया देखती रह गई। इसरो के पास एडवांस तकनीक भरपूर है और इसके दम पर इसरो ने मिसाइल के क्षेत्र में सफलता के नित नए प्रतिमान रचे हैं।
सबसे अच्छी बात यह भी है कि सरकार हमार वैज्ञानिकों के साथ हर प्रकार से खड़ी है। सरकार के इस सहयोग के परिणामस्वरूप हमारे वैज्ञानिक विफलता के प्रति निर्भय होकर लगातार सफलता के लिए प्रयास कर रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में विश्व में अंतरिक्ष सहित विज्ञान के विविध क्षेत्रों में भारत का दबदबा कायम होगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)