योगी सरकार ने निर्माण कार्यों में पारदर्शिता के अनेक कदम उठाए हैं। इसका लाभ प्रदेश को मिलेगा। लेकिन, यदि ड्रीम लक्ष्य की बात की जाए तो फिलहाल ‘इन्वेस्टर्स समिट’ का नाम लिया जा सकता है। इसमें प्रदेश के समग्र विकास की कल्पना है। इस पर अमल से प्रदेश का कायाकल्प हो सकता है। वैसे इन्वेस्टर्स समिट पहले भी हुए हैं, लेकिन इनके परिणाम दिखाई नहीं दिए। योगी आदित्यनाथ क्रियान्वयन पक्ष को लेकर भी उतने ही गंभीर हैं। इसे उन्होने समिट की तैयारियों में शामिल भी किया है। मतलब समिट के प्रस्तावों और उनपर अमल का रोडमैप एक साथ बनाया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश की पिछली दोनों सरकार को पूर्ण बहुमत से अपना कार्यकाल पूरा करने का अवसर मिला था। उनके मुख्यमंत्रियों के लिए अपने कतिपय ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने में भी आसानी थी। शायद उन्होने कुछ ड्रीम प्रोजेक्ट बनाये भी थे और इनकी चर्चा भी खूब होती थी । लेकिन प्रदेश के सर्वांगीण विकास या बीमारू छवि से प्रदेश को बाहर निकालने के प्रति इन सरकारों में पर्याप्त गंभीरता दिखाई नहीं दी थी। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अंदाज अलग है। कुछ भवन या सड़क मात्र उनके ड्रीम प्रोजेक्ट नहीं हैं। यह सब तो सरकार के रूटीन कार्य हैं। ये सब तो होते ही रहते हैं। इतना अवश्य है कि इनमें भ्रष्टाचार न हो तो ज्यादा बेहतर परिणाम मिलते हैं।
योगी सरकार ने निर्माण कार्यों में पारदर्शिता के अनेक कदम उठाए हैं। इसका लाभ प्रदेश को मिलेगा। लेकिन, यदि ड्रीम लक्ष्य की बात की जाए तो फिलहाल ‘इन्वेस्टर्स समिट’ का नाम लिया जा सकता है। इसमें प्रदेश के समग्र विकास की कल्पना है। इस पर अमल से प्रदेश का कायाकल्प हो सकता है। वैसे इन्वेस्टर्स समिट पहले भी हुए हैं। लेकिन इनके परिणाम दिखाई नहीं दिए। योगी आदित्यनाथ क्रियान्वयन पक्ष को लेकर भी उतने ही गंभीर हैं। इसे उन्होने समिट की तैयारियों में शामिल भी किया है। मतलब समिट के प्रस्तावों और उनपर अमल का रोडमैप एक साथ बनाया जा रहा है।
इन तैयारियों के तीन अन्य पक्ष भी महत्वपूर्ण हैं। एक यह कि इसमें इन्वेस्टमेंट अर्थात निवेश से ज्यादा जोर इम्प्लाईमेंट अर्थात रोजगार पर होगा। दूसरा, परंपरागत उद्योगों पर भी ध्यान दिया जायेग। तीसरा, प्रत्येक जिले के परंपरागत उद्योग को बढ़ावा दिया जाएगा। पिछले दिनों मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड की बैठक को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा सकता है। क्योकि दशकों से ऐसी बैठके प्रदेश में दिखाई नहीं दी थीं, जिसमें निवेश के अनुकूल माहौल बनाने पर इतने बड़े पैमाने पर विचार विमर्श हुआ हो। इसमें संबंधित अधिकारियों के स्थानांतरण, श्रम कानून, ट्रांसपोर्ट, भूमि बैंक अथवा विशेष आर्थिक जोन आदि पर भी विचार हुआ।
संबंधित अधिकारियों के जल्दी-जल्दी ट्रांसफर से भी निवेश कार्य बाधित होते हैं। पिछली सरकारो के समय भी इनके जल्दी ट्रांसफर न करने की सलाह दी गई थी। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। निवेशक किसी अधिकारी से वार्ता करके योजना बनाते थे । लेकिन अगली बैठक से पहले उस अधिकारी का ट्रांसफर हो जाता था। नया अधिकारी पुनः निवेश प्रस्तावों को समझने का प्रयास करता था। वह भी कितने समय रहेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं थी। इस समस्या की ओर भी योगी आदित्यनाथ ने ध्यान दिया है।
इस कार्य के जानकार अधिकारियों की एक टीम बनानी होगी। सिंगल विंडो सिस्टम से कार्य को आगे बढ़ाना होगा। यह भी सराहनीय है कि योगी आदित्यनाथ ने इन्वेस्टर्स समिट में एक जिला एक उत्पाद का रोडमैप भी शामिल किया है। कभी अधिकांश जिले अपने खास उत्पाद की वजह से प्रसिद्ध हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ इनकी पहचान समाप्त होती गई। पिछली सरकारों ने स्थानीय उद्योगों को बचाने का प्रयास नहीं किया, जबकि इनमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल रहा था।
इस कार्य में केंद्र सरकार की मुद्रा, स्टैंड अप और अन्य रोजगार योजनाओं से भी सहायता मिलेगी। योगी सरकार इसके लिए संसाधनों के अलावा प्रशिक्षण की भी व्यवस्था करेगी। योगी आदित्यनाथ ने दावा भी किया है कि उनकी सरकार संसाधनों का पर्याप्त लाभ उठाने के लिए निवेश के अनुकूल नीतियों का निर्माण कर रही है।
इन्वेस्टर्स समिट में इन नीतियों से भी लाभ मिलेगा, क्योकि इनमें निवेशकों के लिए आकर्षण है। उनको पारदर्शिता के साथ अनुकूल माहौल दिया जाएगा। समिट में चौबीस सत्र होंगे। योगी आदित्यनाथ व्यक्तिगत रूप से भी अधिकांश लोंगों के साथ बैठक करेंगे, जिससे उनकी आशंकाओं या प्रश्नों का समाधान किया जा सके। जाहिर है कि मुख्यमंत्री इक्कीस और बाइस फरवरी को लखनऊ में प्रस्तावित इन्वेस्टर्स समिट को लेकर गंभीर हैं। वह इसके माध्यम से प्रदेश के विकास की नई इबारत लिखना चाहते हैं।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)