स्वतन्त्रता संग्राम में जनजातीय समुदाय का योगदान किसी से कम नहीं है। लेकिन इनको इतिहास में उचित व पर्याप्त स्थान नहीं मिला। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिया है। अमृत महोत्सव के अंतर्गत इतिहास के अनेक उपेक्षित नायकों/नायिकाओं का योगदान सामने आ रहा है। अनेक राष्ट्र नायकों से देश की वर्तमान पीढ़ी परिचित हो रही है। कुछ दिन पहले तक रानी कमलापति के नाम से लोग अनजान थे। नरेंद्र मोदी की पहल से यह नाम आज राष्ट्रीय चर्चा में है।
भारतीय समाज का स्वरूप आदिकाल से व्यापक और विविधतापूर्ण रहा है। यहाँ उपासना पद्धति के विविध रूप रहे हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विचार विविधता में एकता का सूत्र है। यह हमारे समाज की दुर्लभ विशेषता है। जनजातीय समुदाय भी इस उदार व्यवस्था का अंग रहा है। भगवान ने श्री राम के रूप में मानव अवतार लिया और इस लीला में चौदह वर्ष जनजातीय क्षेत्रों में व्यतीत किया। वनवास की इस अवधि में उनकी यात्रा जनजातीय समाज के बीच ही संचालित रही। यह समरसता भारतीय समाज एवं संस्कृति का सहज गुण थी।
मध्यकाल में विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय संस्कृति पर प्रहार किए। देश राजनीतिक रूप से परतंत्र रहा, लेकिन सांस्कृतिक रूप से देश ने कभी अधीनता स्वीकार नहीं की। विदेशी आक्रांता आजीवन हमले करते रहे। वह जगह जगह पर होने वाले विद्रोहों को दबाने के लिए सेना सहित भागते रहे। तब भी दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता संस्कृति को समाप्त नहीं कर सके। विदेशी आक्रांताओं के हमलों के बावजूद जनजातीय समुदाय ने अपनी सभ्यता संस्कृति को कायम रखा है।
इन्होंने सदैव विदेशी आक्रांताओं से मोर्चा लिया। यह संस्कृति आज भी जीवंत और गतिशील है। किंतु वर्तमान पीढ़ी को इतने मात्र से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए। इस संस्कृति व स्वतन्त्रता के लिए जीवन बलिदान करने वालों का स्मरण करना चाहिए। उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। अमृत महोत्सव ने इसका अवसर प्रदान किया है।
स्वतन्त्रता संग्राम में जनजातीय समुदाय का योगदान किसी से कम नहीं है। लेकिन इनको इतिहास में उचित व पर्याप्त स्थान नहीं मिला। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर ध्यान दिया है। अमृत महोत्सव के अंतर्गत इतिहास के अनेक उपेक्षित नायकों के विषय में तथ्य सामने आ रहे हैं। अनेक राष्ट्र नायकों से देश की वर्तमान पीढ़ी परिचित हो रही है। कुछ दिन पहले तक रानी कमलापति के नाम से लोग अनजान थे। नरेंद्र मोदी की पहल से यह नाम आज राष्ट्रीय चर्चा में है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने रांची में भगवान बिरसा मुंडा के संग्रहालय का वर्चुअल लोकार्पण किया। इस मौके पर मोदी ने कहा कि नई पीढ़ी को हमारे संग्रामों और जनजातीय नायकों के योगदान से परिचित कराया जाएगा।
रानी दुर्गावती, रानी कमलापति को राष्ट्र भूल नहीं सकता। जनजातीय वर्ग के महत्वपूर्ण योगदान को आजादी के बाद दशकों तक देश को नहीं बताया गया। देश की दस प्रतिशत जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक खूबियों को नजरअंदाज किया गया।
बिरसा मुंडा की झारखंड, बिहार, उड़ीसा आदि प्रदेशो में प्रतिष्ठा रही है। जनजातीय समुदाय में उन्हें भगवान माना जाता है। लेकिन वह राष्ट्रनायक के रूप में पूरे देश के लिए सम्मान की विभूति हैं। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खुटी जिले के उलीहातु गाँव में हुआ था। उनमें बाल्यकाल से ही समाजसेवा का भाव था। उन्होंने जनजातीय समुदाय को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराने का संकल्प लिया था।
अकाल के समय उन्होंने लोगों की सेवा सहायता की। इसके साथ ही अंग्रेजों की लगन वसूली का जम कर विरोध किया। उन्होंने स्थानीय लोगों को एकत्र किया। अंग्रेजों की लगान वसूली के विरुद्ध आन्दोलन किया। मुंडा विद्रोह को उलगुलान नाम से भी जाना जाता है।
1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और दो साल के कारावास की सजा दी गयी। उन्हें लोग सम्मान से धरती आबा कहते थे। अंग्रेजों के विरुद्ध कई वर्ष संघर्ष चला। खूँटी थाने पर हमला कर अंग्रेजों को चुनौती दी गई। तांगा नदी के किनारे ब्रिटिश सेना पराजित भी हुई थी। डोम्बरी पहाड़ पर संघर्ष हुआ था।चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। ब्रिटिश जेल में ही उनका निधन हुआ था।
मध्य प्रदेश के रेलवे स्टेशन हबीबगंज का भोपाल की अंतिम गोंड शासक रानी कमलापति के नाम पर नामकरण किया गया। नरेंद्र मोदी ने इस स्टेशन का लोकार्पण किया। रानी कमलापति रेलवे स्टेशन देश का पहला आईएसओ सर्टिफाइड एवं पीपीपी मॉडल पर विकसित रेलवे स्टेशन है। एयरपोर्ट पर मिलने वाली सुविधाएँ इस रेलवे स्टेशन पर मिल रही हैं। इस प्रकार रानी कमलापति की राष्ट्र सेवा को सम्मान दिया गया। वह अठारहवीं शताब्दी की गोंड रानी थीं।
जनजातीय समाज का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान है। जनजातीय समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों, जीवन-शैली से प्रेरणा मिलती है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों में भी शिक्षा, आवास,बिजली,गैस, इलाज आदि सभी सुविधाएँ पहुँचाई गई हैं। देश में जल-जीवन मिशन प्रारंभ कर हर घर में नल से जल पहुँचाया जा रहा है। जनजातीय कलाकृतियों एवं उत्पादों को सरकार द्वारा अब उचित बाजार प्रदान किया जा रहा है। इन्हें आत्म-निर्भर बनाने के लिये निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं।
ट्राइफेड पोर्टल के माध्यम से जनजातीय उत्पादों को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार निरंतर जनजातीय कल्याण के कार्य कर रही हैं। सरकार द्वारा बीस लाख जनजातीय व्यक्तियों को वनभूमि के पट्टे प्रदान किये गये हैं। जनजातीय युवाओं के शिक्षा एवं कौशल विकास के लिये देशभर में साढ़े सात सौ एकलव्य आवासीय आदर्श विद्यालय खोले जा रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा तीस लाख विद्यार्थियों को हर वर्ष छात्रवृत्ति दी जा रही है।
सरकार द्वारा नब्बे वनउपजों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। भारत सरकार ने जो डेढ़ सौ से अधिक मेडिकल कॉलेज मंजूर किए हैं, उनमें जनजातीय बहुल जिलों को प्राथमिकता दी गई है। इसी तरह जल जीवन मिशन के अंतर्गत जनजातीय क्षेत्रों में नल से जल पहुंचाने की योजना संचालित हो रही है।
सरकार ने खनिज नीति में ऐसे परिवर्तन किए जिनसे जनजातीय वर्ग को वन क्षेत्रों में खनिजों के उत्खनन से लाभ मिलने लगा है। जिला खनिज निधि से पचास हजार करोड़ के लाभ में जनजातीय वर्ग हिस्सेदार है। जनजातीय समाज को यह सम्पदा काम आ रही है। खनन क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाया गया है।
बाँस की खेती जैसे सरल कार्य को पूर्व सरकारों ने कानूनों में जकड़ दिया था, जिन्हें संशोधित कर अब जनजातीय वर्ग की छोटी छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति का मार्ग प्रशस्त किया गया है। मोटा अनाज जो कभी उपेक्षित था। वह भारत का ब्राण्ड बन रहा है। जनजातीय बहनों को काम और रोजगार के अवसर दिलवाने का कार्य हो रहा है। नई शिक्षा नीति में जनजातीय वर्ग के बच्चों को मातृ भाषा की शिक्षा का लाभ भी मिलेगा। कोरोना काल में भी प्रधामनंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से लाभान्वित किया गया।
उल्लेखनीय होगा कि जनजातीय समुदाय ने प्राचीन काल से ही जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, नागालैंड सहित सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास किया है और देश की सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाई है। आजादी से पहले भी जनजातीय नायकों ने भारत की स्वतन्त्रता के संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई। लेकिन यह पहली बार है जब जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। अब तक स्वतंत्रता संग्राम के जनजातीय नायक गुमनाम ही थे। लेकिन मोदी सरकार के प्रयासों से अब इन गुमनाम नायकों/नायिकाओं के महान योगदानों से देश सुपरिचित हो रहा है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)