मुफ्तखोरी की राजनीति का आगाज मुफ्त बिजली से हुआ था और इसने राज्य विद्युत बोर्डों को खस्ताहाल कर डाला। गठबंधन राजनीति के दौर में भारतीय रेलवे की भी कमोबेश यही दशा हुई। अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली मेट्रो व बसों में मुफ्त यात्रा का प्रस्ताव देकर वोट बैंक की राजनीति को एक नया आयाम देने में जुट गए हैं।
भारी-भरकम चुनावी वायदे कर सत्ता में आना और सत्ता मिलते ही उसे अगले चुनाव तक भुला देने की बीमारी बहुत पुरानी है। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने अपने आपको परंपरागत भारतीय राजनीति से अलग घोषित किया इसलिए उनके चुनावी वायदों को जनता ने अलग दृष्टि से देखा और उनकी झोली भरते हुए 70 में से 67 सीट दे दी लेकिन सत्ता मिलते ही केजरीवाल आम के बजाए खास आदमी की राजनीति करने लगे। कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश आम आदमी पार्टी के नेताओं ने सरकार बनते ही कांग्रेसी भ्रष्टाचार के प्रति आंख बंद कर लिया। इतना ही नहीं खुद केजरीवाल सरकार के कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए और उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
केजरीवाल पर भी कई बार गंभीर आरोप लगे। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी और सरकार के जन समर्थन में भारी कमी आई। पार्टी के देशव्यापी प्रसार का मंसूबा ध्वस्त हो गया। आम आदमी पार्टी के गढ़ दिल्ली में भी यही हाल हुआ। दिल्ली में विधानसभा के उपचुनाव में पार्टी के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर पहुंच गए। वोट प्रतिशत में भारी गिरावट दर्ज की गई। दिल्ली नगर निगम और लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया।
जनभावनाओं की घोर उपेक्षा के कारण आज अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ऐसे मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां अस्तित्व का संकट नजर आने लगा है। इसीलिए वे छह महीने बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पैतरेबाजी की राजनीति पर उतर आए हैं। बिजली-पानी मुफ्त करने के दावे और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क होने के चलते आम आदमी पहले से ही नाराज है। इसीलिए महिलाओं को मुफ्त यात्रा का पासा फेंका है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि मेट्रो में महिलाओं की मुफ्त यात्रा पर आने वाले खर्च का भुगतान वह खुद डीएमआरसी को करेगी। गौरतलब है कि दिल्ली की बसों व मेट्रो में कुल यात्रियों में एक-तिहाई महिलाएं होती हैं। दिल्ली सरकार दूसरा तर्क यह दे रही है कि इस कदम से महिलाओं को सुरक्षा मिलेगी।
दरअसल महिलाओं को मुफ्त यात्रा के प्रस्ताव के जरिए केजरीवाल अपनी नाकामियों को छिपाना चाहते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय केजरीवाल ने 500 स्कूल, 20 कॉलेज, महिलाओं की सुरक्षा के लिए हर बस में कमांडो तैनात करने, पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरा लगवाने जैसे भारी-भरकम चुनावी वायदे किए थे, लेकिन इनमें से कोई चुनावी वादा पूरा नहीं हुआ। यही कारण है कि केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव के पहले नया शिगूफा छोड़ा है।
महिलाओं को मुफ्त यात्रा का चुनावी वायदा करने से पहले केजरीवाल को यह देखना चाहिए कि दिल्ली मेट्रो पर अभी 33000 करोड़ रूपये का कर्ज है। दूसरे, मेट्रो अभी भी क्षमता से कम यात्री ढो रही है। फिलहाल 25 लाख यात्री रोजाना यात्रा कर रहे हैं जो कि क्षमता से कम हैं। भले ही दिल्ली सरकार कह रही हो कि वह यात्री किरायों में होने वाली कमी की भरपाई अपने खजाने से करेगी लेकिन दिल्ली के राजस्व को देखें तो यह मुमकिन नहीं लगता।
दिल्ली मेट्रो आज दुनिया भर के लिए मानक बनी है तो अपनी कार्य संस्कृति के बल पर जिसमें किसी के लिए किराए में छूट नहीं है। यहां तक प्रधानमंत्री जैसे विशिष्ट व्यक्ति को भी यात्रा करने के लिए टिकट लेना पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार टिकट लेकर मेट्रो की यात्रा कर चुके हैं।
ऐसे में दिल्ली मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा का प्रावधान करने से देश की अन्य मेट्रो में भी महिलाओं को मुफ्त यात्रा की मांग उठेगी। भारत में वोट बैंक की राजनीति के रिकॉर्ड को देखें तो कोई भी मुख्यमंत्री ऐसे लोकलुभाव वादे से मना नहीं कर पाएगा। इसका नतीजा यह निकलेगा कि धन की कमी के चलते मेट्रो परियोजनाएं अधूरी रह जाएंगी। इस प्रकार एक स्वस्थ कार्य संस्कृति राजनीतिक हित साधने की भेंट चढ़ जाएगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)