देश में महंगे इलाज के चलते हर साल सात करोड़ लोग गरीबी के बाड़े में धकेल दिए जाते हैं। परिजनों का इलाज कराने के लिए लोग अपना खेत-खलिहान, मकान, जेवर तक बेचने को विवश होना पड़ता है। इससे हर साल ग्रामीण इलाकों में 3.6 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 2.9 फीसदी गरीबी बढ़ जाती है। स्पष्ट है, मुफ्त इलाज गरीबी उन्मूलन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
अब तक की सरकारें गरीबों को दान-दक्षिणा वाली योजनाओं में उलझाए रखती थीं ताकि वोट बैंक की राजनीति पर आंच न आए। यही कारण है कि गरीबी उन्मूलन की सैकड़ों योजनाओं और लाखों करोड़ रूपये खर्च करने के बावजूद गरीबों की तादाद में अपेक्षित कमी नहीं आई। मोदी सरकार इन सबसे अलग है, क्योंकि वह गरीबों को समर्थ बना रही है ताकि वे उदारीकृत अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। बिजली, सड़क, रसोई गैस, शौचालय, बैंकिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने के बाद अब मोदी सरकार गरीबों को मुफ्त में इलाज उपलब्ध कराने की योजना लागू करने जा रही है।
गौरतलब है कि देश में महंगे इलाज के चलते हर साल सात करोड़ लोग गरीबी के बाड़े में धकेल दिए जाते हैं। परिजनों का इलाज कराने के लिए लोग अपना खेत-खलिहान, मकान, जेवर तक बेच डालते हैं। इससे हर साल ग्रामीण इलाकों में 3.6 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 2.9 फीसदी गरीबी बढ़ जाती है। स्पष्ट है, मुफ्त इलाज गरीबी उन्मूलन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
इस साल का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए “ओबामा केयर” की तर्ज पर “मोदी केयर” जैसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना का एलान किया। इसके तहत सरकार 10 करोड़ गरीब परिवारों अर्थात 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रूपये का सालाना बीमा कवरेज देगी। इस योजना के तहत पूरे देश में डेढ़ लाख स्वास्थ्य केंद्र बनाए जाएंगे जहां दवा व जांच की सुविधाएं मुफ्त में उपलब्ध होंगी। इस प्रकार सरकारी खर्च पर चलने वाली यह दुनिया की सबसे बड़ी योजना होगी। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें 60:40 के अनुपात में वित्त उपलब्ध कराएंगी।
इस योजना के लिए धन जुटाने हेतु वित्त मंत्री ने एक फीसदी अतिरिक्त सेस लगाया है। प्रस्तावित योजना का हश्र ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ जैसा न हो इसीलिए योजना को आधार संख्या से जोड़कर नकदी रहित बनाया गया है। इसके तहत लाभार्थी देश में कहीं भी पैनल में शामिल किसी भी निजी या सरकारी अस्पताल में इलाज करा सकेंगे और इलाज में आया खर्च डीबीटी के जरिए सीधे अस्पताल के बैंक खाते में पहुंच जाएगा।
गौरतलब है कि गरीबों को मुफ्त इलाज के लिए 2008 में ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना’ शुरू की गई थी, जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले पांच सदस्यों वाले परिवार को 30,000 रूपये का बीमा कवर प्रदान किया जाता है। लेकिन, योजना में निहित खामियों, प्रक्रियागत जटिलताओं और भ्रष्टाचार के कारण इसके लाभार्थियों की संख्या में लगातार कमी आई। 2015-16 में इस योजना के तहत 4.13 करोड़ परिवार पंजीकृत थे, जो 2016-17 में घटकर 3.63 करोड़ रह गए। इसके तहत उपचार मुहैया कराने वाले निजी अस्पतालों की संख्या भी घटती जा रही है। 2009-10 में 7865 अस्पताल जुड़े थे जो कि 2015-16 में घटकर 4926 रह गए। फिलहाल यह योजना सिर्फ 15 राज्यों में ही लागू है। सबसे बड़ी समस्या यह रही कि इसके लाभार्थियों में लाखों परिवार ऐसे हैं जो गरीबी के दायरे में आते ही नहीं।
जिस देश में स्वास्थ्य सुविधाओं पर लोगों को 66 फीसदी धन अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है, वहां गरीबों के लिए मुफ्त इलाज वाली योजना संजीवनी साबित होगी। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक भारत में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक खर्च लगभग 2500 रूपये होता है। सरकार (केंद्र व राज्य सरकारें संयुक्त रूप से) इसमें से केवल 675 रूपये खर्च करती है, जबकि शेष 1825 रूपये लोगों द्वारा खर्च किया जाता है। भारत में अपनी जेब से किया गया खर्च पूरे विश्व में सबसे अधिक है और इसका सर्वाधिक खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2014 में देश में 62.4 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च लोगों के सामर्थ्य से बाहर था, जबकि वैश्विक औसत 18 फीसदी है।
देश का स्वास्थ्य ढांचा अपने भीतर भारी विडंबनाओं को समेटे हुए है। एक ओर पूरी दुनिया जहां संक्रामक व जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के बढ़ते प्रकोप, बुजुर्गों के बढ़ते अनुपात, दवाओं के प्रतिरोध जैसी चुनौतियों से जूझ रही हैं, वहीं हम अभी भी टीकाकरण, शिशु व मातृत्व मृत्यु दर, मलेरिया, कालाजार जैसी प्राथमिक स्वास्थ्य चुनौतियों को काबू करने में जुटे हैं। यदि समग्रता में देखें तो स्वास्थ्य क्षेत्र में पिछड़ने का मूल कारण भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेसी सरकारों द्वारा इस क्षेत्र के लिए बेहद कम आवंटन है। दूसरी विडंबना यह है कि जिस देश में महंगा इलाज लोगों को गरीब बना रहा है वही देश दुनिया भर के रोगियों के लिए इलाज का पसंदीदा स्थान बन चुका है। इसका कारण है कि आजादी के बाद देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे की कीमत पर राजनीतिक प्रश्रय से निजी स्वास्थ्य ढांचे का विकास हुआ।
समग्रत: बेलगाम प्राइवेट अस्पतालों, महंगी दवाओं, चिकित्सा उपकरणों के मामले में आयात पर निर्भरता, बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों की कुटिल चाल आदि को देखते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना समय की मांग है। जरूरत इस बात की है कि इसे ठीक ढंग से क्रियान्वित किया जाए ताकि उसका हश्र राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना जैसा न हो। वैसे, मोदी सरकार द्वारा अपनी पिछली योजनाओं के सुसंगत क्रियान्वयन को देखते हुए लगता है कि इस योजना का भी उत्तम प्रकार से क्रियान्वयन होगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)