सामाजिक न्याय शासन का महत्वपूर्ण लक्ष्य है और यह लक्ष्य तभी हासिल होगा जब पंक्ति के अंतिम स्थान पर खड़े लोगों की पहचान कर उन्हें विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए। देश के सर्वागीण विकास और 2022 तक न्यू इंडिया के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए मोदी सरकार ने देश के 115 सबसे पिछड़े जिलों में 5 जनवरी 2018 को आकांक्षी जिला कार्यक्रय (एस्पीरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम या एडीपी) शुरू किया जिसका सकारात्मक परिणाम अब सामने आने लगा है।
आजादी के बाद की सरकारों के विकास के वादे कर सत्ता में आने और विकास के नाम पर अरबों-खरबों की धनराशि खर्च करने के बावजूद देश के पिछड़े क्षेत्रों की बदहाली में उल्लेखनीय सुधार नहीं आया। 1990 के दशक में पंचायती राज की स्थापना और सत्ता के विकेंद्रीकरण से उम्मीद जगी थी कि पिछड़े क्षेत्र विकास की मुख्य धारा में शामिल हो जाएंगे लेकिन नाउम्मीदी ही हाथ लगी।
उदारीकरण–भूमंडलीकरण की तो अवधारणा ही सत्ता और संपत्ति के केंद्रीकरण पर आधारित है इसीलिए उदारवादी नीतियों के कारण पिछड़े क्षेत्रों की बदहाली में इजाफा ही हुआ। ऊंची विकास दर के बावजूद मानव विकास सूचकांक के मामले में पिछड़ने की असली वजह यह असमान विकास ही है।
सामाजिक न्याय शासन का महत्वपूर्ण लक्ष्य है और यह लक्ष्य तभी हासिल होगा जब पंक्ति के अंतिम स्थान पर खड़े लोगों की पहचान कर उन्हें विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए। देश के सर्वागीण विकास और 2022 तक न्यू इंडिया के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए मोदी सरकार ने देश के 115 सबसे पिछड़े जिलों में 5 जनवरी 2018 को आकांक्षी जिला कार्यक्रय (एस्पीरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम या एडीपी) शुरू किया।
ये जिले शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण जैसे मानव विकास के पैमाने पर तो पिछड़े हैं ही यहां बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। इसीलिए इन जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, वित्तीय समावेश, कौशल विकास और आधारभूत ढांचा क्षेत्र में विकास के लिए सीधा हस्तक्षेप करने की नीति अपनाई गई है।
मोदी सरकार ने अनूठी पहल करते हुए इन जिलों के विकास को सरकारी कार्यक्रम न बनाकर जनांदोलन का रूप दिया है। इसीलिए इनका नाम पिछड़ा क्षेत्र विकास न रखकर आकांक्षी जिला कार्यक्रम रखा है ताकि उनको अवसर और उम्मीद के द्वीप के तौर पर देखा जाए।
अब तक यह होता रहा है कि पिछड़े क्षेत्रों के विकास के नाम पर नई योजनाएं बनाई जाती थीं या भारी-भरकम वित्तीय पैकेज मुहैया कराया जाता था। एडीपी इन सबसे अलग है। इसमें नई योजना शुरू करने के बजाए मौजूदा योजनाओं के संसाधनों को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने पर जोर दिया गया है ताकि बेहतर नतीजे हासिल किए जा सकें।
योजनाओं के समन्वय और प्रगति की समीक्षा के लिए केंद्र सरकार के अपर या संयुक्त सचिव स्तर के एक-एक अधिकारी को एक-एक जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई है। राज्य के सचिव स्तर के अधिकारी को भी प्रभारी बनाया गया है जो जिला प्रशासन के साथ मिलकर काम करेंगे। यह जरूरी था क्योंकि सभी फैसले जिला स्तर पर नहीं लिए जाते हैं। इसके बावजूद सर्वाधिक अहम जिम्मेदारी जिलाधिकारी को सौंपी गई है क्योंकि वह जिले की समस्याओं से परिचित होने के साथ-साथ सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए नोडल अधिकारी होता है।
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से यह भी कहा कि वे इन पिछड़े जिलों में उम्रदराज अफसरों के बजाए उन नौजवान अफसरों को तैनात करें जिनमें कुछ करने का जज्बा हो। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने इन जिलों में तैनात अफसरों को स्थिर कार्यकाल देने की वकालत की है।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) में नई अवधारणाओं का भी समावेश किया गया है। आजादी के बाद विकास के संबंध में एक गलत धारणा यह पैदा हुई कि देश में बदलाव केवल सरकार के प्रयासों से ही होगा। दूसरे शब्दों में सरकार को माई-बाप मानने की प्रवृत्ति बढ़ी। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि समाज की ताकत घटी और सरकार पर निर्भरता बढ़ती गई। एडीपी में इस समस्या को दूर करते हुए निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी को सहभागी बनाया गया है।
नीति आयोग और ल्यूपिन फाउंडेशन आकांक्षी जिलों के विकास हेतु समन्वय कर रहे हैं। इसके अलावा टाटा ट्रस्ट, पीरामल फाउंडेशन, आईटीसी, लार्सन एंड टूब्रो और बिल-मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन भी जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग के लिए मदद कर रहे हैं। नीति आयोग ने पिछड़े जिलों के विकास के लिए कार्पोरेट सोशल रिसपांसिबिलिटी को बढ़ावा दिया है ताकि नए विचार के साथ सहभागिता बन सके।
आकांक्षी जिलों में जमीनी स्तर पर उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के कई कार्यक्रम चल रहे हैं। सिडबी कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से माइक्रो इंटरप्राइजेज प्रमोशन प्रोग्राम (एमईपीपी) चला रहा है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान उद्यमिता की संभावनाओं को जमीन पर उतारना है। इसी तरह कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय इन जिलों में मौजूद परंपरागत हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए एस्पिरेशन हुनर अभियान (आशा) चला रहा है।
मोदी सरकार की सतत निगरानी का नतीजा है कि महज एक साल पहले शुरू हुई आकांक्षी जिला योजना के सकारात्मक नतीजे आने लगे हैं। 27 दिसंबर को नीति आयोग ने इन जिलों में पिछले एक साल में विकास कार्यों की बदौलत आए बदलाव को दर्शाने के लिए 111 जिलों की डेल्टा रैंकिंग जारी की।
यह रैकिंग स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि, वित्तीय समावेश, कौशल विकास तथा आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में प्रदर्शन के आधार पर तैयार की गई है। नीति आयोग द्वारा जारी ताजा रैकिंग के मुताबिक तमिलनाडु के विरूधनगर, ओडिशा के नौपदा और उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर ने विकास के मामले में संतोषजनक प्रदर्शन करते हुए शीर्ष तीन में अपना स्थान बनाया है। अन्य जिले भी शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि विकास में उल्लेखनीय प्रगति कर रहे हैं।
दुर्भाग्यवश पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने तीन पिछड़े जिलों को इस योजना का हिस्सा बनाने से इंकार कर दिया और बाढ़ प्रभावित होने के कारण केरल के एक जिले से आंकड़े एकत्र नहीं किए जा सके। इसीलिए 111 जिलों की ही रैकिंग जारी हो सकी।इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि एक ओर मोदी सरकार देश के सबसे पिछड़ों जिलों में प्राथमिकता के आधार पर विकास की रोशनी फैला रही है तो दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार राजनीतिक कारणों से अपने तीन पिछड़े जिलों को इस योजना का हिस्सा बनाने से ही इंकार कर दिया।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)