मोदी सरकार की लोकप्रिय योजना मुद्रा के जरिए अप्रैल 2015 से अब तक साढ़े पांच करोड़ रोजगार का सृजन हुआ है। इस दौरान आठ करोड़ उद्यमियों को 3.42 लाख करोड़ का लोन दिया गया। इन लाभार्थियों में 55 प्रतिशत अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग से संबंधित हैं। मुद्रा योजना से कर्ज लेने वालों में सवा दो करोड़ नए उद्यमी हैं जो अब तक नौकरी की तलाश में भटक रहे थे।
बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने वालों की कमी नहीं है लेकिन वे यह नहीं देख रहे हैं कि मोदी सरकार युवाओं को “रोजगार मांगने वाले” से “रोजगार देने वाले” में बदल रही है। मोदी सरकार ने हर साल जिन एक करोड़ नौकरियों के सृजन का लक्ष्य रखा है, वे वेतनभोगी प्रकृति की नहीं हैं। दरअसल मोदी सरकार का मुख्य बल प्रक्रियागत खामियों को दूर कर ऐसा वातावरण बनाने का है, जिसमें युवा वर्ग अपना उद्यम शुरू करें। दुनिया भर के अनुभवों से यह साबित हो चुका है कि रोजगार सृजन की सबसे ज्यादा क्षमता सूक्ष्म व लघु उद्यमों में होती है। अब यही प्रयोग भारत में भी कामयाब हो रहा है।
मोदी सरकार की लोकप्रिय योजना मुद्रा के जरिए अप्रैल 2015 से अब तक साढ़े पांच करोड़ रोजगार का सृजन हुआ है। इस दौरान आठ करोड़ उद्यमियों को 3.42 लाख करोड़ का लोन दिया गया। इन लाभार्थियों में 55 प्रतिशत अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग से संबंधित हैं। मुद्रा योजना से कर्ज लेने वालों में सवा दो करोड़ नए उद्यमी हैं जो अब तक नौकरी की तलाश में भटक रहे थे।
गौरतलब है कि देश के सूक्ष्म व लघु उद्यमों को अनगिनत कठिनाइयों से जूझना पड़ता है, लेकिन सबसे बड़ी बाधा बैंक ऋण के रूप में आती है। इसी का नतीजा है कि सूक्ष्म व लघु इकाइयों के मात्र 4 फीसदी को ही संस्थागत स्रोतों से सुख सुविधा मिल पाती है जबकि बाकी इकाइयां अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए असंगठित क्षेत्र के साहूकारों-महाजनों पर निर्भर रहती हैं। यही कारण है कि करोड़ों पढ़े-लिखे लोग अपना उद्यम शुरू तो करना चाहते हैं, लेकिन साहूकारों-महाजनों की ऊंची ब्याज दरों के कारण जोखिम नहीं उठाते हैं। इसी को देखते हुए कई अर्थशास्त्री लंबे समय से सुझाव देते रहे हैं कि इनके लिए एक अलग वित्तीय संस्थान की स्थापना की जाए।
मोदी सरकार द्वारा मेक इन इंडिया पहल को सर्वव्यापक बनाने और छोटे व नव उद्यमियों की ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरूआत की गई है। मुद्रा का अर्थ है माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट्स रिफाइनेंस एजेंसी (MUDRA)। मुद्रा बैंक को एक पुनर्वित्त एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया है जो अपनी मध्यवर्ती संस्थाओं जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों, सूक्ष्म वित्त संस्थानों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को पुनर्वित्त प्रदान करता है।
ये संस्थाएं गैर-कृषि क्षेत्र में आयपरक गतिविधियों के लिए छोटे उद्यमियों को पचास हजार से लेकर दस लाख रूपये तक का ऋण मुहैया करा रही है ताकि वे अपना कारोबार शुरू कर राष्ट्र की मुख्यधारा में अपना योगदान दें। इन कारोबारियों को उनकी जरूरत के मुताबिक कर्ज मुहैया कराया जाता है।
कारोबार शुरू करने वाले नवउद्यमियों को“शिशु” श्रेणी में रखा गया है और उन्हें 50,000 रूपये तक का कर्ज दिया जाता है। मध्यम स्थिति में कर्ज तलाशने वालों को “किशोर” श्रेणी में रखा गया है जिन्हें पचास हजार से पांच लाख तक का ऋण दिया जा रहा है। तीसरी श्रेणी “तरुण” में उन कारोबारियों को दस लाख रूपये तक का कर्ज मुहैया कराया जा रहा है जो अपने उद्यम को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
फिलहाल सरकार का मुख्य जोर छोटे कारोबारियों को कर्ज मुहैया कराने पर है। यही कारण है कि मुद्रा योजना के तहत वितरित कुल ऋणों में अधिकतर कर्ज शिशु श्रेणी के हैं। इतना ही नहीं मुद्रा से लोन लेने वाले कुल उद्यमियों में तीन-चौथाई महिलाएं और सवा दो करोड़ नए उद्यमी हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति व अल्पसंख्यक समुदाय के उद्यमियों की भी अच्छी-खासी संख्या है। स्पष्ट है, मुद्रा बैंकिंग से समावेशी विकास का लक्ष्य भी हासिल हो रहा है । इतना ही नहीं सूक्ष्म व लघु इकाइयों को समय-समय पर सुविधा उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड (एनएसआईसी) ने सात वित्तीय सुविधा केंद्र स्थापित किए हैं।
उद्यमियों की नई पौध तैयार करने के साथ-साथ सरकार कई अनूठी पहलें भी कर रही है। अब तक की सरकारों ने दलितों को वोट बैंक की राजनीति में उलझाए रखा जिससे उनका सर्वागीण विकास नहीं हुआ। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजातियों के बीच उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि यह विशाल वर्ग रोजगार मांगने वाले के बजाय रोजगार देने वाला बने। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकार ने स्टैंड अप इंडिया योजना शुरू की है।
इसके तहत अनुसूचित जातियों-अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देने के लिए 10 लाख रूपये से लेकर एक करोड़ रूपये तक का कर्ज मुहैया कराया जा रहा है। राष्ट्रीयकृत बैंकों की प्रत्येक शाखा हर साल इस प्रकार के दो ऋण प्रदान कर रही है। इस प्रकार इस योजना के जरिए देश के सवा लाख बैंक शाखाओं के जरिए हर साल 2.5 लाख नव उद्यमी तैयार हो रहे हैं।
समग्रत: मोदी सरकार देश में उद्यमशीलता का जो वातावरण बना रही है उसमें रोजगार के स्वरूप में बदलाव आया है। यही कारण है कि कारोबारी माहौल और करोड़ों उद्यमियों की मौजदूगी के बावजूद नौकरियों में कमी के आंकड़े आ रहे हैं। अत: हमें नौकरी और रोजगार में फर्क को समझना होगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)