“साइबर ग्राम” योजना के तहत सरकारी स्कूलों एवं मदरसों के छात्रों को कंप्यूटर एवं डिजिटल ज्ञान की सुविधा प्रदान की जा रही है ताकि छात्रों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर हो। प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम अल्पसंख्यकों के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है। स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “सबका साथ-सबका विकास” की जो योजना क्रियान्वित कर रहे हैं, वह बिना किसी भेदभाव के “हर हाथ को काम” देने वाली है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि ये मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाली नहीं, उनके हितों की दिशा में काम करने वाली सरकार है।
भले ही उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपने सेवाकाल के आखिरी दिन मुसलमानों में असुरक्षा और घबराहट की भावना की बात कही हो, लेकिन स्वयंभू गोरक्षकों की छिटपुट गतिविधियों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में अमन-चैन कायम है। 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले विरोधी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस प्रकार का नकारात्मक माहौल बनाया था, वह निर्मूल साबित हुआ। सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार जिस ढंग से अल्पसंख्यकों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काम कर रही है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ है।
गौरतलब है कि भारतीय राजनीति में अब तक मुसलमानों को एक वोट बैंक की तरह देखा गया है और उनसे अपेक्षा की जाती रही है कि वे शिक्षा, रोजगार आदि के बजाए सिर्फ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट दें। वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता अपनी कुटिल चाल में कामयाब भी रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि विकास की दौड़ में मुस्लिम समुदाय पिछड़ता गया।
स्पष्ट है, धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति और फायदों का सब्जबाग दिखाकर मुसलमानों का जितना नुकसान धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों ने किया उतना किसी ने नहीं। मोदी सरकार इन सबसे अलग है। जिस मुस्लिम समुदाय को चुनावों के बाद अगले चुनाव तक के लिए भुला दिया जाता था, उनके सर्वागीण विकास का काम मोदी सरकार कर रही है। पिछले तीन वर्षों से मोदी सरकार बिना तुष्टिकरण किए अल्पसंख्यकों के शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक उन्नति में लगी है। आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं।
चीन में एक कहावत है “एक साल की योजना बनानी हो तो धान रोपिए, दस साल की योजना बनानी हो तो पेड़ लगाइए और सौ साल की योजना बनानी हो तो शिक्षा दीजिए।” मोदी सरकार सौ साल की योजना पर काम करते हुए मदरसों को आधुनिक व स्वच्छ बना रही है ताकि मुसलमानों में व्याप्त शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर किया जा सके। इसके लिए सरकार थ्री टी योजना अर्थात टायलेट, टिफिन और टीचर पर काम कर रही है। इसके तहत देश भर के मदरसों में एक लाख शौचालय बनवाने का लक्ष्य रखा गया है।
इसी तरह आधुनिक शिक्षा देने वाले मदरसों में मध्यान्ह भोजन देने का फैसला किया गया। मदरसा अध्यापकों के लिए अपग्रेड कौशल योजना शुरू की गई है ताकि शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। गौरतलब है कि मुस्लिम समुदाय में 6-14 वर्ष के एक-चौथाई बच्चे बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। 17 साल से अधिक आयु वर्ग में इस समुदाय के बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि 17 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय औसत 26 फीसदी है। मिडिल स्कूल स्तर पर सिर्फ 50 फीसदी बच्चे स्कूली शिक्षा पूरी कर पाते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 62 फीसदी है।
मोदी सरकार एक ओर शिक्षा का दायरा बढ़ा रही है तो दूसरी ओर उन शिल्पकारों को उन्नत प्रशिक्षण दे रही है जो पैतृक व्यवसाय के रूप में अपनी परंपरागत जीविका (दस्तकारी) को बचाए रखने की कोशिश में जुटे हैं। इसके लिए 14 मई 2015 को “उस्ताद” योजना शुरू की गई जिसके तहत 15 से 35 वर्ष के शिल्पकारों को मास्टर क्राफ्टमैन के रूप में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, इनके उत्पादों को देश-विदेश के बाजारों तक पहुंचाने के लिए ऑनलाइन ई-प्लेटफार्म उपलब्ध कराया गया है। इसके माध्यम से हुनरमंद शिल्पकार अपने उत्पाद ऑनलाइन बेच रहे हैं।
पारंपरिक हुनर को बढ़ावा देने के साथ-साथ मोदी सरकार अल्पसंख्यकों को कौशल-संपन्न बना रही है ताकि स्किल इंडिया में सभी समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए मौलाना आजाद की 125वीं जयंती पर 11 नवंबर 2014 को सरकार ने मौलाना आजाद राष्ट्रीय कौशल विकास अकादमी की स्थापना की। इसका उद्देश्य कौशल प्रशिक्षण के जरिए बेहतर पेशेवर तैयार करना है ताकि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लाभदायक रोजगार या स्वरोजगार के अवसर मिल सकें।
यह अकादमी कौशल प्रशिक्षण और उनके उन्नयन के लिए रियाययी दरों पर कर्ज भी मुहैया करा रही है। एकीकृत शिक्षा और आजीविका पहल के संदर्भ में 2015 में “नई मंजिल” योजना शुरू की गई। इससे हर साल एक लाख अल्पसंख्यक युवाओं को फायदा हो रहा है। अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रमों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब विश्व बैंक ने ऐसे कार्यक्रम के लिए 50 फीसदी वित्तीय सहायता देने की सहमति दी हो।
मदरसे में पढ़ने वाले किशोरों को कौशल सीखने के साथ-साथ उनके लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र में शत-प्रतिशत रोजगार सुनिश्चित करने के लिए 2013-14 में “सीखो और कमाओ” योजना शुरू की गई थी लेकिन जटिल प्रक्रियाओं के कारण यह योजना लक्ष्य हासिल करने में विफल रही। मोदी सरकार ने इस योजना को सरल बनाया ताकि अल्पसंख्यक समुदाय स्किल इंडिया व मेक इन इंडिया का लाभ उठा सकें।
इतना ही नहीं, सरकार ने इसके बजट आवंटन को 17 करोड़ रूपये से 11 गुना बढ़ाकर 192 करोड़ रूपये कर दिया। इसी तरह अल्पसंख्यक महिलाओं के नेतृत्व विकास के लिए 2012-13 में शुरू की गई “नई रोशनी” योजना को भी व्यावहारिक बनाया गया जिससे इसके लाभार्थियों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ।
‘साइबर ग्राम’ योजना के तहत सरकारी स्कूलों एवं मदरसों के छात्रों को कंप्यूटर एवं डिजिटल ज्ञान की सुविधा प्रदान की जा रही है ताकि छात्रों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर हो। प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम अल्पसंख्यकों के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है। स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “सबका साथ-सबका विकास” की जो योजना क्रियान्वित कर रहे हैं, वह बिना किसी भेदभाव के “हर हाथ को काम” देने वाली है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)