रेलवे के संबंध में मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने रेलवे के राजनीतिक उपयोग पर लगाम लगाईं है। गौरतलब है कि आजादी के बाद से ही राजनीतिक हित साधने के लिए रेलवे का इस्तेमाल होने लगा था। 1990 के दशक में देश में शुरू हुई गठबंधन राजनीति के दौर में तो इसने समस्या का रूप ले लिया। सरकार में शामिल सहयोगी दलों से बनने वाले रेल मंत्रियों ने लोकलुभावन योजनाओं को लागू किया जिससे रेल सुधार की आधारभूत परियोजनाएं पिछड़ती चली गईं।
इसबार बजट में रेलवे को लेकर कई महत्वपूर्ण एलान हुए हैं, जिनका असर आने वाले वक़्त में देखने को मिलेगा। लेकिन, गौर करें तो मोदी सरकार ने पिछले लगभग साढ़े तीन साल में ऐसे कई कदम उठाए हैं जो रेलवे का कायाकल्प करने वाले हैं। प्रधानमंत्री ने रेलवे को एक ऐसा इंजन बनाने का लक्ष्य रखा है जो नए भारत की दिशा में देश की विकास यात्रा को नई गति प्रदान करेगा। देखा जाए तो मोदी सरकार ने महज साढ़े तीन साल में इतना काम किया है कि वह तीस साल के बराबर है। उदाहरण के लिए सरकार ने तीन साल में 16700 किलोमीटर रेल लाइनों का विद्युतीकरण किया जबकि पिछले तीस साल में 19000 किलोमीटर रेल लाइनों का विद्युतीकरण हुआ था।
इसी तरह सरकार ने इस दौरान 12690 किलोमीटर रेल लाइन के दोहरीकरण की मंजूरी दी जबकि पिछले 30 साल में महज 7192 किलोमीटर रेल लाइनों का दोहरीकरण किया गया। मोदी सरकार के कार्यकाल में न सिर्फ पूर्वी व पश्चिमी मालवाहक गलियारे के निर्माण में तेजी आई है, बल्कि सरकार ने चार नए मालवाहक गलियारे बनाने की घोषणा की है। ये अतिरिक्त गलियारे हैं- मुंबई-कोलकाता के बीच पूर्व-पश्चिम गलियारा, दिल्ली व चेन्नई के बीच उत्तर-दक्षिण गलियारा, खड़गपुर व विजयवाड़ा के बीच पूर्व तटीय गलियारा और चेन्नई तथा गोवा के बीच दक्षिण गलियारा।
रफ्तार की दृष्टि से देखें तो भारतीय रेल पिछड़ी हुई नजर आएगी। इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई-अहमदाबाद के बीच एक लाख करोड़ रूपये की लागत से बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखी साथ ही कुछ अन्य मार्गों पर बुलेट ट्रेन हेतु व्यावहारिकता अध्ययन शुरू कर दिया गया है। बुलेट ट्रेन के अलावा रेलवे स्वदेशी तकनीक के बल पर हाई स्पीड ट्रेन चलाने जा रहा है। “ट्रेन 18” और “ट्रेन 20” नामक ये विश्वस्तरीय हाई स्पीड रेलगाड़ियां मौजूदा राजधानी व शताब्दी एक्सप्रेस की जगह लेंगी। ये रेलगाड़ियां मेक इन इंडिया मुहिम के तहत रेलवे कोच फैक्टरी, कोयंबटूर में बनाई जा रही हैं।
रेल हादसों को रोकने के लिए इंजनों में माडर्न तकनीक पर आधारित 12000 करोड़ रूपये की सुरक्षा प्रणाली लगाई जा रही है। इसके तहत इलेक्ट्रिक इंजनों में यूरोपीयन ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम लगाकर उसे पहले से अधिक सुरक्षित बनाया जाएगा। रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए परंपरागत कोच की जगह अब सिर्फ हल्के व नए डिजाइन वाले एलएचबी कोच लगाए जा रहे हैं। अब रेलवे अपने कारखानों में परंपरागत रेल कोच की जगह सिर्फ एलएचबी कोच का निर्माण कर रहा है।
रेलवे के लिए सीधी बिजली खरीद करने से हर साल हजारों करोड़ रूपये की बचत हो रही है। रेल पटरियों की सुरक्षा और स्वच्छ भारत मिशन की ओर कदम बढ़ाते हुए अब तक 55 फीसदी यात्री गाड़ियों में बायो टायलेट लगा दिए गए हैं। सरकार ने दिसंबर 2018 तक सभी रेलगाड़ियों में बॉयो टायलेट लगाने का लक्ष्य रखा है। रेलवे में जारी भ्रष्टाचार रोकने में भी सरकार को कामयाबी मिली है। रेलवे के ठेकों में वर्षों से कब्जा जमाए बैठे भ्रष्ट ठेकेदारों के वर्चस्व को तोड़कर ई-टेंडरिंग की शुरूआत की गई है।
सरकार ने समूचे पूर्वोत्तर में रेल नेटवर्क को मजबूत बनाने के लिए 1385 किलोमीटर लंबाई की 15 नई रेल परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिन पर 47000 करोड़ रूपये की लागत आएगी। पिछले तीन वर्षों में पूर्वोत्तर के पांच राज्यों (मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय) को ब्रॉड गेज रेल नेटवर्क से जोड़ा गया। 2016-17 में 29 नई रेलगाड़ियां चलाई गई हैं। पिछले तीन साल में 900 किलोमीटर मीटर गेज की रेल लाइन को ब्रॉड गेज में बदला गया और और अब समूचे पूर्वोत्तर में मीटर गेज रेल लाइन नहीं रह गई है। 2020 तक सभी राज्यों की राजधानियों को ब्रॉड गेज रेल नेटवर्क से जोड़ने का लक्ष्य है।
जिरिबम व इंफाल के बीच देश की सबसे लंबी रेल सुरंग बन रही है। 2016 में अगरतला-अखौरा ब्राडगेज पर काम शुरू हुआ। 15 किमी लंबा रूट पूरा होने पर यह ट्रांस एशियन रेल नेटवर्क का हिस्सा बन जाएगा। इससे कोलकाता और अगरतला के बीच की दूरी कम हो जाएगी। मोदी सरकार पूर्वोत्तर की भांति पिछड़े क्षेत्रों में रेल विकास और वर्षों से लंबित रेल परियोजनाओं को पूरा करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।
रेलवे के संबंध में मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने रेलवे के राजनीतिक उपयोग पर लगाम लगाईं है। गौरतलब है कि आजादी के बाद से ही राजनीतिक हित साधने के लिए रेलवे का इस्तेमाल होने लगा था। 1990 के दशक में देश में शुरू हुई गठबंधन राजनीति के दौर में तो इसने समस्या का रूप ले लिया। सरकार में शामिल सहयोगी दलों से बनने वाले रेल मंत्रियों ने लोकलुभावन योजनाओं को लागू किया जिससे रेल सुधार की आधारभूत परियोजनाएं पिछड़ती चली गईं। रेलवे को अपने मनमुताबिक चलाने वाले रेल मंत्रियों ने यात्री किरायों में घाटे की भरपाई माला भाड़ा से करने की गलत परिपाटी शुरू कर दी। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे “क्रास सब्सिडी” कहा जाता है।
इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे देश में माल भाड़ा तेजी से बढ़ा और माल ढुलाई का एक हिस्सा रेलवे के हाथों से निकलकर कर ट्रक कारोबारियों के पास जाने लगा। उदाहरण के लिए 1970-71 में कुल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 70 फीसदी थी जो कि आज 30 फीसदी रह गई है। आज सड़कों पर माल ढोने वाले विशालकाय ट्रकों का रेला लगा है तो इसकी एक वजह रेल माल भाड़े की ऊंची दर के साथ-साथ लेट लतीफी भी है। माल ढुलाई की ऊंची दरों का एक अन्य परिणाम महंगाई और ढुलाई लागत में बढ़ोत्तरी के रूप में सामने आया। उपरोक्त खामियों को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने अगले तीन साल में साढ़े आठ लाख करोड़ रूपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है ताकि रेलवे का कायापलट हो जाए।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)