यह ठीक है कि विपक्ष का काम ही होता है सरकार के कामों की रचनात्मक आलोचना करना, लेकिन देश की जनता को यह देखना पड़ेगा कि मोदी पर सवाल उठाने वालों के पास है क्या ? क्या मोदी का विरोध करने वालों के पास वाकई में विरोध लायक कुछ है या फिर केवल विरोध के लिए विरोध किया जा रहा है ? मोदी का विकास का एजेंडा बनाम विपक्ष की विरोध की राजनीति में से चुनना जनता के लिए कतई मुश्किल नहीं होगा।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 26 मई को केंद्र में अपने चार साल पूरे कर लिए। एक ऐसे नेता ने जिसने विकास के मुद्दे को 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना सबसे बड़ा और कारगर नारा बनाया, आज भी हिंदुस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उनका नारा था ‘सबका साथ सबका विकास’ जिसने सभी जाति, वर्गों और समुदायों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
आज वक़्त है ये देखने का कि क्या उन वादों के आधार पर मोदी दोबारा सत्ता में वापसी करेंगे ? क्या आज भी मोदी विकास के एजेंडे को उतना ही महत्व देते हैं ? जवाब है – हाँ। अपनी सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर मोदी ने एक ट्वीट किया कि ‘सही नियत, सही विकास’ जो प्रधानमंत्री की विकास के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी को 2019 में एक और मौका मिलेगा ?
विकास ही एक मात्र विकल्प
मोदी के विकास मॉडल की चर्चा उन दिनों से होती रही है, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, मोदी ने अपने उसी अक्स को राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिस्थापित किया। आज भारत के सर्वांगीण विकास के लिए मोदी काम कर कर रहे हैं, तो उसके पीछे 2014 के चुनाव में उन्हें मिला लोगों का भारी समर्थन ही है। बीते दिनों इन चार वर्षों के दौरान हासिल हुई उपलब्धियों को लेकर प्रधानमंत्री ने ओड़िशा के कटक में एक रैली को संबोधित कर सरकार के कार्यों का ब्यौरा जनता के सामने रखा।
इसके अलावा पीएम ने 26 मई को इस विषय पर ट्विट किया, ‘2014 में आज ही के दिन भारत के बदलाव को लेकर हमारी यात्रा शुरू हुई थी। पिछले चार वर्षों के दौरान विकास एक जीवंत जन आंदोलन बन गया है, जिसमें भारत का प्रत्येक नागरिक शामिल है। 125 करोड़ भारतीय भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जा रहे हैं!‘ उन्होंने आगे लिखा, ‘हमारी सरकार के प्रति अविश्वसनीय विश्वास के लिए मैं अपने नागरिकों को सलाम करता हूं। यह समर्थन और प्यार पूरी सरकार के लिए प्रेरणा और ताकत का सबसे बड़ा स्रोत है। हम उसी शक्ति और समर्पण के साथ भारत के लोगों की सेवा करना जारी रखेंगे।‘
विपक्ष का मोदी विरोध कितना जायज़ ?
विपक्ष का काम ही होता है सरकार के कामों की आलोचना करना, लेकिन देश की जनता को यह देखना पड़ेगा कि मोदी पर सवाल उठाने वालों के पास है क्या ? क्या मोदी का विरोध करने वालों के पास वाकई में विरोध लायक कुछ है या फिर केवल विरोध के लिए विरोध किया जा रहा है ?
सवाल है कि आज मोदी के विरोध में जो लोग लामबंद होने की कोशिश कर रहे हैं, उनका एजेंडा क्या है ? क्या विपक्ष को इसलिए मैंडेट मिलना चाहिए, क्योंकि वह मोदी विरोध में एकजुट हुआ है। यह पहली बार नहीं है, जब विपक्षी दल एक सामूहिक विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह के विकल्पों का इतिहास बहुत अच्छा नहीं रहा है।
कर्नाटक में हाल में हुए चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, मगर मोदी और बीजेपी विरोध के नाम पर वहां चुनाव पूर्व के विरोधी कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी, लेकिन उसके पास अपना कोई एजेंडा नहीं है। विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी है कि मोदी का विरोध करने के लिए वह बिना किसी विचारधारा के एक मंच पर इकठ्ठे हुए हैं। मौकापरस्ती और मोदी विरोध से पैदा हुए इस राजनीतिक भाईचारे पर जनता कितना विश्वास करेगी, यह बड़ा सवाल है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)