भले ही जनेऊधारी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर दर्शन का रिर्कार्ड बना रहे हों लेकिन कांग्रेस की मुस्लिमपरस्ती में कोई कमी नहीं आई है। इसका ज्वलंत उदाहरण है, तीन तलाक पर कांग्रेस का महिला विरोधी रवैया। मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए नकली आंसू बहाने वाले सोनिया और राहुल गांधी ने राज्यसभा में तीन तलाक विरोधी बिल पेश होने से रोकने में पूरा जोर लगा दिया और वे इसमें कामयाब भी रहे। सच्चाई यह है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में तीन तलाक पीड़ित महिलाओं का दर्द कांग्रेस को सुनाई नहीं दे रहा है। इसी तरह असम में एनआरसी मुद्दे पर भी कांग्रेस का हिंदू विरोधी व मुस्लिमपरस्त रूख जाहिर हो गया।
हाल ही में “इंकलाब” नामक उर्दू अखबार को दिए इंटरव्यू में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस “मुसलमानों” की पार्टी है। भले ही इस इंटरव्यू के बाद खंडन-मंडन का दौर चला हो, लेकिन इस बयान से राहुल गांधी की कांग्रेस का असली चरित्र ही उजागर होता है।
भले ही जनेऊधारी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर दर्शन का रिर्कार्ड बना रहे हों लेकिन कांग्रेस की मुस्लिमपरस्ती में कोई कमी नहीं आई है। इसका ज्वलंत उदाहरण है तीन तलाक पर कांग्रेस का महिला विरोधी रवैया। मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले सोनिया और राहुल गांधी ने राज्यसभा में तीन तलाक विरोधी बिल पेश होने से रोकने में पूरा जोर लगा दिया और वे इसमें कामयाब भी रहे। सच्चाई यह है कि कट्टरपंथियों के दबाव में तीन तलाक पीड़ित महिलाओं का दर्द कांग्रेस को सुनाई नहीं दे रहा है। इसी तरह असम में एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस का हिंदू विरोधी व मुस्लिमपरस्त रूख जाहिर हो गया।
तेलंगाना में कांग्रेस मुसलमानों को 12 फीसदी आरक्षण देने की मांग करते हुए राज्य में पोस्टकार्ड आंदोलन शुरू कर चुकी है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो कांग्रेस मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देने की वकालत कर रही है वही कांग्रेस अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में दलितों-पिछड़ों को आरक्षण दिए जाने के सवाल पर मुंह सिले हुए है।
कांग्रेस के इसी दोमुहेपन के कारण जबर्दस्त मुस्लिमपरस्ती के बावजूद मुसलमान पूरी तरह कांग्रेस को कभी वोट नहीं देते। वे जानते हैं कि कांग्रेस ने मुसलमानों को डराकर सत्ता हासिल की है। मुसलमानों का एक तबका अपने पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस की वोट बैंक की नीति को जिम्मेदार मानता रहा है। हाल के वर्षों में इस तबके की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ। यही कारण है कि कभी देश के हर गांव-कस्बे में नुमाइंदगी दर्ज कराने वाली कांग्रेस पार्टी आज महज तीन फीसदी आबादी तक सिमट गई है।
जिन सूबों में कांग्रेस की तूती बोलती थी, वहां अब वह तीसरे व चौथे पायदान पर पहुंच चुकी है। इन सूबों में अब कांग्रेस अपने अस्तित्व बचाने के लिए क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बन चुकी है जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल। इस प्रकार इन राज्यों में उसकी स्थिति डूबते को तिनके का सहारा वाली हो गई है। इसके बावजूद कांग्रेस अपने हिंदू विरोधी और मुस्लिमपरस्त नीतियों पर आत्मचिंतन नहीं कर रही है।
2014 में मोदी लहर में बुरी तरह परास्त होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने हार के कारणों की समीक्षा के लिए लिए वरिष्ठ नेता एक एंटनी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि छद्म धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के प्रति झुकाव रखने के कारण कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी की बन चुकी है। इसके बाद से ही राहुल गांधी का मंदिर दौरा शुरू हुआ। चूंकि जनता कांग्रेस के असली चरित्र को जान चुकी है कि इसलिए राहुल गांधी का मंदिर दौरा लोगों के मनोरंजन का एक जरिया बन चुका है।
देखा जाए तो कांग्रेस का हिंदू विरोधी रवैया शुरू से ही रहा है। देश विभाजन के दौरान लाखों हिंदू-सिखों का कत्लेआम और महिलाओं के चीरहरण में कांग्रेस के अधिकांश शीर्ष नेता मूकदर्शक बने हुए थे। हैदाराबाद और कश्मीर में मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों और हिंदू कोड बिल पास होने के दौरान कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने के तमाम आरोप लगे लेकिन कांग्रेस पार्टी बड़ी चतुराई से इन आरोपों से अपने को बाहर निकालने में कामयाब रही। इसी तरह साठ के दशक में गोहत्या विरोधी आंदोलन भी उसे हिंदू विरोधी साबित नहीं कर सका। दरअसल जनता में मुक्तिदाता की छवि, राजनीतिक चातुर्य, बिखरे विपक्ष, सशक्त हिंदूवादी आवाज न होने जैसे कारणों से कांग्रेस पार्टी अपनी कुटिल चाल में कामयाब होती रही।
इसके अलावा दंगों की राजनीति ने भी कांग्रेस को लंबे अरसे तक सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाई। अंग्रेजों की बांटो और राज करो नीति की भांति कांग्रेस पार्टी ने दंगों के सहारे वोट बैंक की राजनीति का हिट फार्मूला अपनाया। सांप्रदायिक दंगों को हवा देकर कांग्रेसी नेता मुसलमानों के रहनुमा के रूप में सामने आते और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बल पर सत्ता हसिल करने में कामयाब रहते।
समग्रत: तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदू हितों को बलि देने और मुस्लिमपरस्ती करने वाली कांग्रेस की चाल को अब जनता समझ चुकी है। अब वो इसके झांसे में नहीं आ सकती। यही कारण है कि कांग्रेस का दायरा सिमटता जा रहा है। यदि कांग्रेस का यह रवैया जारी रहा है, तो वह दिन दूर नहीं जब इस राष्ट्रीय पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
(ये लेखिका के निजी विचार हैं।)