रामायण सर्किट की कल्पना नरेंद्र मोदी ने ही की थी। लेकिन, उत्तर प्रदेश की पिछली सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था, जबकि योगी आदित्यनाथ ने इसे प्राथमिकता दी। अयोध्या के कारण उत्तर प्रदेश में इसका विशेष महत्व है। मोदी की यात्रा का निर्धारण इसे ध्यान में रखकर किया गया। योगी आदित्यनाथ इस पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। अयोध्या से जनकपुर तक के लिए बस सेवा से इसे नया रूप मिला है। इसका मकसद रामायण सर्किट को जोड़ना है।
विदेश नीति के क्षेत्र में मित्र देशों का विशेष महत्व होता है। लेकिन, कुछ देश इस श्रेणी से भी ऊपर होते हैं। इन्हें बन्धु देश कहते हैं। इनके बीच साझा सांस्कृतिक विरासत होती है, जिसे कभी अलग नहीं किया जा सकता। भारत और नेपाल के संबन्ध इसी श्रेणी में आते हैं। यह सही है कि इसमें अनेक उतार-चढ़ाव भी हुए हैं। चीन समर्थित माओवाद ने भी इन संबंधों में कड़वाहट घोलने का प्रयास किया। इसके वावजूद रिश्तों की मूल धरोहर अपनी जगह पर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना ठीक है कि भारत और नेपाल के संबन्ध त्रेता युग से चले आ रहे हैं। इसका सही समय भी बता पाना संभव नहीं है। नेपाल के बिना भारत अधूरा है। जनकपुर के बिना अयोध्या की पूर्णता नहीं हो सकती। इस दृष्टि से जनकपुर और अयोध्या की बस सेवा का केवल यातायात की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्व है।
भारत और नेपाल के प्रधानमंत्री ने संयुक्त रूप से इस बस को जनकपुर से रवाना किया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समारोहपूर्वक अयोध्या में इस बस के यात्रियों का स्वागत किया। यह न तो सामान्य मार्ग था, न सामान्य यात्रा; यह दो देशों के भावनात्मक रिश्तों को रेखांकित करने वाला अवसर था। इसीलिये जनकपुर से लेकर अयोध्या तक उत्सव का माहौल था।
नेपाल के प्रदेश दो की मंत्री सरोज कुशवाहा, उषा यादव सहित जनकपुर की उप-महापौर गीता कुमारी मिश्रा भी बस यात्री के रूप में अयोध्या पहुंची थीं। योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई अगवानी से सभी यात्री भाव-विभोर थे। योगी ने ठीक कहा कि जनकपुर को अयोध्या से, काशी को काठमांडू से, बस सेवा द्वारा जोड़ना नरेंद्र मोदी के समय में ही संभव हुआ। राजा दशरथ और राजा जनक, अयोध्या व जनकपुर, पशुपतिनाथ और काशी विश्वनाथ की कड़ियाँ भारत तथा नेपाल को जोड़ती हैं। ये राजनीतिक संबंधों से ज्यादा महत्वपूर्ण सम्बन्ध हैं।
इसके अलावा मोदी ने महत्वाकांक्षी अरुण तीन पनबिजली परियोजना की आधारशिला रखी। यह भी अच्छा है कि नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत से रिश्ते मजबूत बनाना चाहते हैं। दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले भारत की ही यात्रा की थी। नौ हजार मेगावाट की इस परियोजना से भारत-नेपाल दोनों की ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी। काठमांडू से रक्सौल रेल मार्ग को भी विकसित किया जाएगा।
नेपाल के प्रधानमंत्री ने भी इसी के अनुरूप इच्छाशक्ति दिखाई। उन्होंने कहा कि नेपाल अपनी जमीन का भारत के खिलाफ प्रयोग नहीं होने देगा। भारतीय हितों के प्रति नेपाल संवेदनशील है। दोनो देशों के बीच अट्ठारह सौ पचास किमी सीमा है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और सिक्किम तक फैली है। 1950 के समझौते से दोनों के बीच मुक्त व्यापार संधि लागू है। इसके अनुसार वीजा की जरूरत नहीं होती है। इस स्थिति का आपसी सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से उपयोग किया जाएगा। रामायण सर्किट, बस सेवा को भी इसी संदर्भ में देखना होगा।
रामायण सर्किट की कल्पना नरेंद्र मोदी ने ही की थी। लेकिन, उत्तर प्रदेश की पिछली सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था, जबकि योगी आदित्यनाथ ने इसे प्राथमिकता दी। अयोध्या के कारण उत्तर प्रदेश में इसका विशेष महत्व है। मोदी की यात्रा का निर्धारण इसे ध्यान में रखकर किया गया। योगी आदित्यनाथ इस पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। अयोध्या से जनकपुर तक के लिए बस सेवा से इसे नया रूप मिला है। इसका मकसद रामायण सर्किट को जोड़ना है।
मुख्यमंत्री ने अयोध्या से जनकपुर के लिए बस को रवाना किया। नेपाल के साथ सांस्कृतिक-धार्मिक रिश्ते के साथ यातायात भी सुगम हुआ है। रेल मार्ग पर भी दोनों देशों के बीच संयुक्त समिति विचार करेगी। यह समिति इस साल के आखिर तक इस परियोजना पर अपनी रिपोर्ट देगी ताकि समय रहते रक्सौल के काठमांडू को रेल नेटवर्क से जोड़ने की प्रक्रिया पूरी की जा सके।
जाहिर है, मोदी की नेपाल यात्रा बहुत उपयोगी साबित हुई है। नेपाल स्वतंत्र संप्रभु देश है, उसके अन्य देशों के साथ आर्थिक-व्यापारिक संबन्ध हैं। लेकिन, भारत के साथ बंधुत्व के स्तर का जो संबन्ध है, वह बेजोड़ है। नेपाल और वहां के लोगों को यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए। चीन कभी भारत की जगह नहीं ले सकता।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)