न्यू इंडिया में केवल आर्थिक विकास पर ही बल नहीं होगा, बल्कि बेहतर समाज का भी निर्माण किया जाएगा, जिसमें समरसता होगी। धनी वर्ग केवल निजी भलाई तक सीमित न रहे, वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे। सबसे पीछे रह गए लोगों को बराबरी पर लाया जाएगा। इससे हमारा समाज और अंततः देश मजबूत होगा। नीति आयोग इस दिशा में प्रयास कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यू इंडिया के निर्माण में आगमी पांच वर्षों को बहुत अहम बताया था। यह स्पष्ट हो रहा है कि नीति आयोग ने इसके लिए कमर कस ली है। न्यू इंडिया का रोडमैप सामने है। नीति आयोग ने 2022 का विजन डॉक्यूमेंट जारी किया है। इस समयसीमा में देश को गरीबी, गन्दगी, भ्र्ष्टाचार आतंकवाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद से मुक्त कर देने का लक्ष्य है। इसका मतलब है कि न्यू इंडिया में ये कमजोरियां नहीं होगी।
न्यू इंडिया में विकास को जन आंदोलन बनाया जाएगा, जिससे भारत विश्व की सर्वाधिक मजबूत तीन अर्थव्यवस्था वाले देशों में शामिल हो जाएगा। इसमें कुछ नहीं, वरन सभी गांव आदर्श होगें। योजनाओं और व्यवस्था का विकेंद्रीकारण किया गया है। भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था है। विकास का कोई भी मॉडल प्रान्तों के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता। व्यवस्था या विकास का सोवियत मॉडल भारत के लिए अनुकूल नहीं था। इसके चलते हम विकास की दौड़ में पीछे रह गए।
आज भी हमारे देश की एक बड़ी आबादी तक विकास की किरण नहीं पहुंची है। आजादी के सत्तर वर्षो बाद भी हजारो गांव अंधेरे में रहने को विवश थे। अन्य मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव था। इनमें बिजली के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, रोजगार, पेयजल जैसे अनेक विषय शामिल हैं। इसका मतलब है कि पिछली सरकारों के जेहन में न्यू इंडिया का स्पष्ट विचार ही नहीं था। अन्यथा समय रहते योजना आयोग की जगह बदले आर्थिक माहौल के अनुरूप किसी संस्था की स्थापना की जाती। यह कार्य मोदी सरकार ने नीति आयोग का गठन करके किया। इसने ही योजना आयोग का स्थान लिया।
ऐसा नहीं कि पहले विकास नहीं किया गया। सरकार के नियंत्रण में अनेक बड़े उद्योगों की स्थापना की गई। बड़े-बड़े बांधों का निर्माण हुआ। लेकिन एक तो यह विकास सन्तुलित नहीं था। दूसरे राज्य आर्थिक रूप से कमजोर बने रहे। उन्हें केंद्र का मुंह देखना पड़ता था। केंद्र पर सहायता में भेदभाव का आरोप लगता था। प्रदेश में दूसरी पार्टी की सरकार हुई तो उसकी सुनवाई आसानी से नहीं होती थी। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को इन कठिनाइयों का व्यावहारिक अनुभव बराबर हुआ करता था। यूपीए सरकार तो उनके प्रति पूरी तरह असहष्णु थी।
प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् मोदी का प्रयास रहा है कि बतौर मुख्यमंत्री उन्हें जिन कड़वे अनुभवों से गुजरना पड़ा, उसे किसी अन्य के साथ दोहराया न जाये। विकास का विषय पार्टी लाइन से ऊपर होना चाहिए, क्योंकि इसमें आमजन का कल्याण समाहित है। केंद्र व राज्य में अलग पार्टियों की सरकार होने का नुकसान जनता को नहीं होना चाहिए। नीति आयोग इसी भावना पर आधारित है। इसके तहत पार्टी लाइन से ऊपर होकर प्रदेश सरकारों को सहायता देने की व्यवस्था की गई है। राज्यों की सहायता राशि को बढ़ाया गया। राज्यों के मुख्यमंत्री और अन्य संबंधित अधिकारियों को नीति आयोग में अपनी बात कहने का अधिकार मिला है।
पंचायती राज को ही विकेंद्रीकरण मान लेना पर्याप्त नहीं था। राज्यों को अधिकार देना, केंद्र के साथ लगातार संवाद की व्यवस्था कायम करना, राज्यों को मिलने वाली सहायता राशि बढ़ाना आदि लक्ष्य नीति आयोग के माध्यम से पूरे हो रहे हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष प्रो. राजीव कुमार ने कहा भी है कि आयोग राज्यों के साथ विकास में सहभागी के रूप में कार्य करना चाहता है। वस्तुतः यह मूल विचार ही योजना आयोग से नीति आयोग को अलग करता है।
नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन के पांच वर्ष बाद देश आजाद हुआ था। यह पांच वर्ष स्वतंत्र भारत की तैयारी के थे। इसी प्रकार अब न्यू इंडिया की तैयारी का समय आ गया है। मोदी ने यह ऐलान आकस्मिक रूप में नहीं किया है, बल्कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए थे।
तीस करोड़ जनधन खाता खोलने, स्वच्छता अभियान के तहत चार करोड़ शौचालयों का निर्माण, डिजिटल इंडिया को बढ़ावा, तीन करोड़ से ज्यादा रसोई गैस कनेक्शन, नोटबन्दी, जीएसटी आदि कदम न्यू इंडिया की दिशा में उठ रहे थे। न्यू इंडिया को ध्यान में रखकर भी नीति आयोग का गठन किया गया था। इतना आधार बनाने के बाद नरेंद्र मोदी ने न्यू इंडिया का लक्ष्य निर्धारित किया।
इसमें केवल आर्थिक विकास पर ही बल नहीं होगा, बल्कि बेहतर समाज का भी निर्माण किया जाएगा, जिसमें समरसता होगी। धनी वर्ग केवल निजी भलाई तक सीमित न रहे, वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे। सबसे पीछे रह गए लोगों को बराबरी पर लाया जाएगा। इससे हमारा समाज और अंततः देश मजबूत होगा। नीति आयोग इस दिशा में प्रयास कर रहा है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)