नोटबंदी का एक साल : बढ़ा आयकर संग्रह, कैशलेस अर्थव्यवस्था की राह पर देश

नोटबंदी की कवायद से आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आयकर की ई-फाइलिंग वर्ष 2017 के अगस्त महीने तक तीन करोड़ के आंकड़ा को पार कर चुकी थी, जो पिछले साल के मुक़ाबले 24% ज्यादा है। वित्त वर्ष 2017 के दौरान कुल 5.28 करोड़ आयकर ई-रिटर्न दाखिल किये गये, जो वित्त वर्ष 2016 से 22% अधिक है, जिससे सरकार को अतिरिक्त कर राजस्व की प्राप्ति हो रही है।

नोटंबदी के एक वर्ष पूर्व होने पर स्थिति यह है कि इससे डिजिटल लेनदेन में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2017-18 में डिजिटल लेनदेन में 80 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है, जो रूपये में लगभग 1800 करोड़ होगी। मार्च एवं अप्रैल, 2017 में जब नोटबंदी के बाद नकदी की किल्लत लगभग दूर हो गई थी तब भी डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी हो रही थी। मार्च एवं अप्रैल 2017 में लगभग 156 करोड़ रूपये के डिजिटल लेनदेन हुए थे और उसके बाद से औसतन 138 करोड़ रूपये के डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं।

अक्टूबर, 2017 तक तकरीबन 1000 करोड़ रूपये का डिजिटल लेनदेन हो चुका है, जो वित्त वर्ष 2016-17 में हुए लेनदेन के बराबर है। सूचना एंव प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार जून, जुलाई एवं अगस्त, 2017 में औसतन 138 करोड़ रूपये का लेनदेन डिजिटल माध्यम से किया गया। देखा जाये तो जनधन खाते, आधार और मोबाइल के कारण डिजिटल लेनदेन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा रही है। मौजूदा समय में देश में लगभग 118 करोड़ मोबाइल, करीब इतने ही आधार कार्ड्स और 31 करोड़ जनधन खाते हैं।

वित्त वर्ष 2017-18 में अक्टूबर, 2017 तक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के जरिये 6.28 लाख करोड़ रूपये लाभार्थियों के खातों में डाले जा चुके हैं। अक्टूबर, 2016 में पॉस मशीनों की संख्या 15 लाख थी, जो अगस्त, 2017 में बढ़कर 29 लाख हो गई। लगभग 78% बैंक खाते मोबाइल से जोड़े जा चुके हैं, वहीं लगभग 73% बैंक खातों को आधार से जोड़ दिया गया है। तत्काल भुगतान सेवा (आईएमपीएस) से नवंबर, 2016 में 8.96 लाख रूपये का लेनदेन किया गया था, जो अक्टूबर, 2017 में बढ़कर 32.42 लाख रूपये हो गया।

सांकेतिक चित्र

एम-वॉलेट से नवंबर, 2016 में 46.03 लाख रूपये का लेनदेन हुआ था, जो अक्टूबर, 2017 में बढ़कर 72.72 लाख रूपये हो गया। नोटबंदी के बाद पेटीएम के जरिये भुगतान करने वालों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसकी वजह से ई-टोल के भुगतान में भी बड़ा उछाल देखने को मिला है। जनवरी, 2016 में यह आंकड़ा 88 करोड़ रूपये था, जो अगस्त, 2017 में बढ़कर 275 करोड़ रूपये हो गया था।  

आधार एनेब्ल्ड़ पेमेंट सर्विस (एईपीएस) के जरिये नवंबर, 2016 में 12.06 लाख रूपये का लेनदेन किया गया था, जो अक्टूबर, 2017 में बढ़कर 29.08 लाख रूपये हो गया। आधार एप की मदद से बायोमेट्रिक रीडर और हाथ की अँगुली की मदद से किसी भी बैंक खाताधारी, जिनका खाता आधार से जुड़ा है, को कहीं भी भुगतान किया जा सकता है।

इस एप के इस्तेमाल से इसका इसका फायदा ग्राहकों एवं दुकानदारों दोनों को मिल रहा है, क्योंकि डेबिट और क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर लगने वाले 2.5 प्रतिशत सेवा शुल्क इस एप के जरिये किये जाने वाले भुगतान पर दुकानदारों को नहीं देना पड़ रहा है। एईपीएस की मदद से एक आधार संबद्ध खाते से दूसरे आधार संबद्ध बैंक खाते में पैसों का अंतरण किया जा सकता है। इसके लिए डेबिट कार्ड की जरूरत नहीं होती है। एक लाख से अधिक नई पॉस मशीनों की आपूर्ति कारोबारियों को की गई है। जाहिर है, ऐसे में बैंकों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, जो डिजिटल भुगतान के प्लेटफॉर्म को तैयार करने में भारी निवेश कर रहे हैं।

नोटबंदी की कवायद से आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आयकर की ई-फाइलिंग वर्ष 2017 के अगस्त महीने तक तीन करोड़ के आंकड़ा को पार कर चुकी थी, जो पिछले साल के मुक़ाबले 24% ज्यादा है। वित्त वर्ष 2017 के दौरान कुल 5.28 करोड़ आयकर ई-रिटर्न दाखिल किये गये, जो वित्त वर्ष 2016 से 22% अधिक है, जिससे सरकार को अतिरिक्त कर राजस्व की प्राप्ति हो रही है।

वर्ष 2017 में अप्रैल से अगस्त महीने की अवधि में आयकर की 55, 285 ई-फाइलिंग की गई, जो पिछले साल की समान अवधि से 19% ज्यादा है। इस तरह, इस साल लगभग 22 लाख नये करदाताओं ने आयकर रिटर्न दाखिल किया है। अगर आयकर ई-रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की संख्या में इसी रफ्तार से बढ़ोतरी होती है, तो वित्त वर्ष 2018 में यह संख्या बढ़कर 6.5 करोड़ से भी अधिक हो जायेगी।  

ई-निविदा, ई-खरीद, रिवर्स नीलामी आदि नवीन प्रौद्योगिकी के जरिये होने से शासन एवं उसके कार्यविधियों में पारदर्शिता आई है। नक़दी के कम इस्तेमाल से भी भ्रष्टाचार में कमी आ रही है। राजस्व में बढ़ोतरी और भ्रष्टाचार में कमी आने का फायदा डीबीटी के जरिये गरीबों को दिया जा रहा है। कहा जा सकता है कि नोटबंदी के बाद कारोबारियों का डिजिटल भुगतान के प्रति सकारात्मक रुख बना है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो भारत कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से अग्रसर है। उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले कुछ सालों में भारत का नाम भी विश्व के प्रमुख कैशलेस अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जायेगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)