भयग्रस्त व्यक्ति तनिक आहट से भी सहम जाता है। भारत में इस समय विपक्ष की यही मनोदशा है। उसमें नरेंद्र मोदी को लेकर डर है, अनेक दल अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं। आगामी आम चुनाव पर ही इनकी पूरी उम्मीद टिकी है। इसलिए नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के विरोध में कोई स्वर सुनाई देता है, तो ये गोल बना कर उसी तरफ दौड़ जाते हैं। यह भी नहीं सोचते कि मसला सम्पूर्ण विपक्ष से संबंधित है भी या नहीं। लोकसभा मे अविश्वास प्रस्ताव ऐसा ही मुद्दा था।
अविश्वास प्रस्ताव सरकार को परेशान करने वाला होता है, लेकिन इस बार उल्टा हुआ। सत्ता पक्ष को बड़े उत्तम ढंग से अपनी उपलब्धियां लोगों तक पहुंचाने का अवसर मिला। विपक्ष की पूरी रणनीति ध्वस्त हो गई। इनका प्रदर्शन एक हद तक अदूरदर्शी और हास्यास्पद ही साबित हुआ।
राहुल गांधी अपनी अजीबोगरीब बातों व हरकतों के कारण एकबार फिर चर्चा में रहे। आरोप लगाते-लगाते वे अचानक प्रधानमंत्री मोदी से गले मिलने लगे, फिर अकाली नेता हर सिमरत कौर के लिए आपत्तिजनक बयान दे दिए और आँख मार बैठे। राहुल गांधी की आँख मारने की फोटो को मीडिया ने लपक लिया। राहुल को लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने संसद की गरिमा याद दिलाते हुए फटकार भी लगाई। कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए अविश्वास प्रस्ताव का यही सब हासिल रहा।
देखा जाए तो अविश्वास प्रस्ताव सरकार के गिरने या बचने तक सीमित नहीं होता। विपक्ष द्वारा किये गए प्रहारों का भी बहुत महत्व होता है। लेकिन विपक्षी नेता इसे समझ ही नहीं सके। यह अविश्वास प्रस्ताव लाने का न कोई समय था, न कोई कायदे का मुद्दा था, न विपक्ष के पास सरकार को परेशान करने वाले वक्ता थे। अकेले नरेंद्र मोदी का इन सब पर भारी पड़ना ही था।
भयग्रस्त व्यक्ति तनिक आहट से भी सहम जाता है। भारत में इस समय विपक्ष की यही मनोदशा है। उसमें नरेंद्र मोदी को लेकर डर है, अनेक दल अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं। आगामी आम चुनाव पर ही इनकी पूरी उम्मीद टिकी है। लेकिन भीतर ही भीतर भय भी है। इसलिए नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के विरोध में कोई स्वर सुनाई देता है, तो ये गोल बना कर उसी तरफ दौड़ जाते हैं। यह भी नहीं सोचते कि मसला सम्पूर्ण विपक्ष से संबंधित है भी या नहीं। लोकसभा मे अविश्वास प्रस्ताव ऐसा ही मुद्दा था।
तेलगू देशम ने आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज न देने के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। वस्तुतः यह अविश्वास प्रस्ताव के लिए उपयुक्त विषय ही नहीं था। सच्चाई तो यह है कि तेलगु देशम के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू यह नहीं चाहते थे कि अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्वीकार हो जाये।
वह तो आंध्र प्रदेश के लोगों को यह दिखाना चाहते थे कि वह विशेष पैकेज के लिए जमीन-आसमान की कोशिश में लगे हैं। विशेष पैकेज न देने वाली मोदी सरकार को हटाना चाहते हैं। इसलिये अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जिसे स्वीकार नहीं किया गया। चंद्रबाबू केवल इतना ही प्रचार चाहते थे। ये बात अलग है कि विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले ऐसे आडंबर कामयाब नहीं होते।
आंध्र के लोग जानते हैं कि ऐसी कवायदों से मुख्यमंत्री चंद्रबाबू अपनी विफलता से ध्यान हटाना चाहते हैं। वह यह दिखाना चाहते हैं कि केंद्र ने विशेष पैकेज नहीं दिया, अन्यथा आंध्र का बहुत विकास कर देते। जबकि पहली बात यह कि आंध्र को पैकेज देने पर कोई सरकार विचार ही नहीं करती। क्योकि ऐसा करने पर लगभग सभी राज्य आर्थिक पैकेज की मांग करने लगते। दूसरी बात यह कि चंद्रबाबू को इस कवायद का कोई लाभ मिलना मुश्किल है। अब उन्हें पैकेज मिल भी जाये तो उससे कुछ नहीं होगा। विधानसभा चुनाव के लिए कम ही समय बचा है।
साफ है कि तलगू देशम प्रमुख चंद्रबाबू केवल अविश्वास प्रस्ताव का प्रचार चाहते थे। इसलिए उन्होंने किसी अन्य पार्टी से बात भी नहीं की थी। लेकिन आठ पार्टियां प्रचार के लिए लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में दौड़ पड़ीं। चर्चा में विपक्ष ने भीड़ के हमले, रोजगार, मंहगाई, आदि घिसे-पिटे विषय उठाये।
निस्संदेह हिंसा की प्रत्येक घटना निंदनीय है। कुछ जगह भीड़ ने हमले भी किये। कानून अपने हाथ में लेना गलत है। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए और हुई भी है। यह राज्य सरकार का विषय है। लेकिन विपक्ष जिस तरीके से इन घटनाओं का प्रचार कर रहा है, वह भी आपत्तिजनक है।
विपक्षी ऐसे प्रचार कर रहे हैं जैसे भारत आतंकवाद से ग्रस्त मुल्क है। जैसे यह लेबनान, सीरिया की तरह हो गया है। नरेंद्र मोदी या भाजपा के मतलब-बेमतलब विरोध को अगर एकबार ठीक भी मान लें, तो भी इनके विरोध के चक्कर में विपक्ष को भारत को बदनाम करने से बचना चाहिए। विपक्ष की इस राजनीति से देश की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंच रही है।
इस अविश्वास प्रस्ताव में यह अच्छा हुआ कि राहुल गांधी की नरेंद्र मोदी के सामने बोलने की मुराद पूरी हुई। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में पुरानी बात ही दोहराई। वह पन्द्रह लाख रुपये खाता में न आने से पहले की तरह बेचैन थे। रोजगार, नोटबन्दी, जीएसटी, राफेल विमान डील पर भी उनका विरोध यहां भी जारी रहा और अचानक ही वे मोदी से गले मिलने भी पहुँच गए।
देश को पहली बार पता चला कि राहुल फ्रांस के राष्ट्रपति से मिले थे। उन्होंने कथित रूप में बताया कि राफेल डील की जानकारी न देने पर कोई समझौता नहीं हुआ। इसी प्रकार डोकलांम विवाद के समय राहुल गोपनीय तरीके से चीन के राजदूत से बात की थी। इसका रहस्य देश आज भी नहीं जानता।
राहुल गांधी के भाषण में राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष पद की गरिमा का अभाव था। यह लगता नहीं कि उनकी फ्रांस के राष्ट्रपति से राफेल डील पर बात हुई थी। अन्यथा राहुल इतने समय तक खामोश नहीं रहते। यह कहने के लिए उन्होंने लोकसभा के मंच का उपयोग किया, जहाँ कुछ भी बोलने की स्वतंत्रता है। यदि फ्रांस के राष्ट्रपति राहुल से हुई मुलाकात नकार दें तो उनकी कितनी फजीहत होगी। ऐसे भाषण या सदन में आंख मारने से राहुल की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी है। संसदीय कार्यमंत्री अनन्त कुमार ने ठीक कहा कि राहुल अनाप-शनाप बोल रहे हैं। उन्होंने गलत बयानी की है।
कुछ उद्योगपतियों के कर्ज माफी के आरोप वित्तमंत्री पहले ही गलत बता चुके हैं। राहुल की इस बात पर कौन विश्वास करेगा कि पूरा विपक्ष, अकाली दल और भाजपा के लोग भी उनकी बात से सहमत है। यह हास्यस्पद बात है। ऐसा लगा कि राहुल अब नरेंद्र मोदी को लेकर कुंठित हो चुके हैं जिस कारण बिना सोचे-विचारे कुछ भी बोले और किये जा रहे हैं।
रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण का जबाब राहुल के भाषण की हवा निकालने को पर्याप्त था। राफेल समझौता कांग्रेस के समय हुआ था। वर्तमान सरकार ने तत्कालीन रक्षामंत्री एन्टोनी द्वारा किये गए समझौते को ही आगे बढ़ाया था। कांग्रेस की सरकार इसका समय से पालन नहीं कर सकी यह उसकी विफलता थी।
देश के सामने ऐसे अनेक कार्य थे जो कांग्रेस कार्यकाल में पूरे हो जाने चाहिए थे। डॉ भीमराव नोटबन्दी के हिमायती थे। इंदिरा गांधी के सामने इसका प्रस्ताव लाया गया था। लेकिन उन्होंने कहा कि चुनाव में नुकसान होगा। डॉ आंबेडकर की इच्छा के अनुरूप यह कार्य मोदी ने किया। वन रैंक वन पेंशन चालीस वर्षो से लंबित थी, यह कार्य मोदी ने किया। तीस करोड़ लोगों ने बैंक का मुंह नहीं देखा था, मोदी ने इन्हें बैक का खातेदार बना दिया।
सौ से ज्यादा परियोजनाएं अनेक दशकों से लंबित थीं। इनमें से अधिकांश को मोदी ने पूरा किया। सत्तर वर्षो से अठारह सौ गांव और चार करोड़ लोग बिजली नहीं जानते थे। मोदीं ने बीड़ा उठाया, इन सबके घरों में बिजली कनेक्शन देने का अभियान पूरा होने जा रहा है। करीब तीन करोड़ परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए। पहली बार चौदह खाद्यान्न के न्यूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना वृद्धि की गई। फसल बीमा, मुद्रा बैंक, कौशल विकास, स्टैंड अप, स्टार्ट अप यूरिया की उपलब्धता, आदि अनेकों कार्य हुए हैं।
सड़क, रेल लाइन बनवाने में इस सरकार ने कांग्रेस सरकारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस को पीछे छोड़ कर भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है। अगले कुछ समय में भारत जर्मनी और ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ देगा। ऐसी उपलब्धियों और पूर्ण बहुमत से युक्त सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्ष ने अपनी फजीहत की पटकथा ही लिखी थी, जिसमें राहुल की निरर्थक बातों और हरकतों ने और वृद्धि करने का काम किया। जाहिर है कि अविश्वास प्रस्ताव सत्ता पक्ष के लिए वरदान साबित हुआ। विपक्ष में नेतृत्व और रणनीति दोनों का अभाव उजागर हुआ।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)