भारत की राजनीति में ऐसा दृश्य शायद ही पहले कभी बना हो। एक प्रधानमंत्री को इस प्रकार तन्मयता से, गंभीरता से छात्रों से जुड़कर उनकी समस्याओं पर बात करते देखना एक नया अनुभव था। अक्सर प्रधानमंत्री शब्द सुनते ही मन में ऐसे धीर-गंभीर नेता की छवि उभरती है जो केवल देश-विदेश के गहन मुद्दों एवं योजनाओं में व्यस्त रहता है। लेकिन, पीएम मोदी ने इस पहल के द्वारा प्रधानमंत्री शब्द की परिपाटी और छवि ही बदल दी। उन्होंने इस शब्द को राजनीति के गलियारे से बाहर निकालकर हर वर्ग का शब्द बनाने का काम किया है। यदि प्रधानमंत्री को हम देश का सर्वोच्च निर्वाचित नेता मानते हैं तो उसे क्यों छात्र वर्ग जैसी बड़ी इकाई से संवाद से वंचित रहना चाहिये। निश्चित ही पीएम मोदी ने सही समय पर सही पहल की। उनकी यही विशेषता उन्हें पूर्ववर्ती राष्ट्राध्यक्षों से अलग कतार में ला खड़ा करती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों अपनी एक नई छवि को लेकर चर्चाओं का केंद्र बने हुए हैं। एक राजनेता, सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेता और एक राष्ट्र के प्रमुख होने से इतर उनकी एक अनूठी छवि सामने आई है। एक ऊर्जावान एवं सक्रिय नेता के रूप में तो देश-दुनिया ने उनका रूप देखा ही है, इन दिनों वे एक शिक्षा-मित्र के तौर पर भी नज़र आ रहे हैं। इस बात का जि़क्र करने के लिए एक आयोजन विशेष का संदर्भ तो है ही, लेकिन इससे इतर भी वे इस कार्य में पहले से ही रत प्रतीत हो रहे थे। गत 16 फरवरी को प्रधानमंत्री नई दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में विद्यार्थियों एवं उनके अभिभावकों से मुखातिब हुए। उनकी चर्चा का विषय आने वाली परीक्षाओं की तैयारियों को लेकर था।
जहां तक शैक्षणिक तैयारियों की बात है, वह तो संबंधित शाला एवं शिक्षकों के स्तर पर है, लेकिन इस दौरान किस प्रकार की मानसिकता रहती है और ऐसे में किस प्रकार से मनोभावों को नियंत्रित किया जाना चाहिये, इसे लेकर प्रधानमंत्री ने बहुत ही प्रभावी ढंग से अपनी बात कही। उन्होंने परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए छात्र-छात्राओं को अपनी ओर से सलाह दी और शिक्षकों, अभिभावकों से भावनात्मक अनुरोध भी किया कि इस तनाव की घड़ी में अपना रवैया लचीला बनाए रखें। उन्होंने परीक्षा के तनाव से निपटने और मानसिक रूप से तरोताज़ा बने रहने के गुर भी बताए। यह सचमुच एक अभूतपूर्व दृश्य था।
भारत की राजनीति में ऐसा दृश्य शायद ही पहले कभी बना हो। एक प्रधानमंत्री को इस प्रकार तन्मयता से, गंभीरता से छात्रों से जुड़कर उनकी समस्याओं पर बात करते देखना एक नया अनुभव था। अक्सर प्रधानमंत्री शब्द सुनते ही मन में ऐसे धीर-गंभीर नेता की छवि उभरती है जो केवल देश-विदेश के गहन मुद्दों एवं योजनाओं में व्यस्त रहता है। लेकिन, पीएम मोदी ने इस पहल के द्वारा प्रधानमंत्री शब्द की परिपाटी और छवि ही बदल दी। उन्होंने इस शब्द को राजनीति के गलियारे से बाहर निकालकर हर वर्ग का शब्द बनाने का काम किया है। यह बात स्वाभाविक भी है। यदि प्रधानमंत्री को हम देश का सर्वोच्च निर्वाचित नेता मानते हैं तो उसे क्यों छात्र वर्ग जैसी बड़ी इकाई से संवाद से वंचित रहना चाहिये। निश्चित ही पीएम मोदी ने सही समय पर सही पहल की। उनकी यही विशेषता उन्हें पूर्ववर्ती राष्ट्राध्यक्षों से अलग कतार में ला खड़ा करती है।
इससे पहले एक दशक तक मनमोहन सिंह की सरकार थी, लेकिन उस समय ऐसा कोई आयोजन देखने-सुनने में नहीं आया। पीएम मोदी की यह पाठशाला इसलिए भी विशेष थी, क्योंकि इसमें उन्होंने आधुनिक टेक्नोलॉजी का पूरा-पूरा सदुपयोग किया। ताल कटोरा स्टेडियम में मौजूद छात्र-छात्राओं के अलावा उन्होंने देश भर के स्टूडेंट्स से वीडियो के ज़रिये प्रत्यक्ष संवाद किया। सीधे प्रश्न-उत्तर का सत्र चला। यह एकल नहीं, द्विपक्षीय संवाद था। पीएम मोदी ने जिन बिंदुओं पर बातें की वे औपचारिक या अव्यवहारिक नहीं थीं। उन्होंने बक़ायदा उदाहरण सहित अपनी बात रखी। एक उदाहरण में उन्होंने बताया कि शीतकालीन ओलिंपिक में एक पदक विजेता खिलाड़ी खेल के कुछ महीनों पहले चोटिल हो गया था, लेकिन उसने पदक जीतकर दिखाया। इसका केवल इतना ही कारण था कि उसने अपना आत्म-विश्वास नहीं खोया था। यह भावना महज बोलने से नहीं आती, बल्कि यह एक जीवंत अनुभव है। आत्म-विश्वास लगातार प्रयास करते रहने और कृत्य करने से उपजता है।
चूंकि मोदी स्वयं आजीवन एक व्यवहारिक व्यक्ति रहे हैं, जिन्होंने संघर्ष से सफलता के सोपान गढ़े हैं, इसलिए उन्होंने मिसाल भी उसी प्रकार की दी। अपनी बात में उन्होंने अत्यंत गहरी बात कही कि परीक्षा का अर्थ केवल एक शैक्षणिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह तो इस विचार को निर्धारित करने का अवसर है कि हमारे भविष्य की कमान किसके हाथ में है। अपना भविष्य हमें स्वयं तय करना है, किसी और को नहीं।
इस टू-वे ट्रैफिक आयोजन में एक रोचक क्षण तब आया जब नोएडा व बीएचयू के छात्रों ने बुनियादी सवाल पूछा कि पढ़ाई के समय ध्यान भटके तो क्या किया जाए। इस पर पीएम मोदी ने कहा कि पढ़ाई में ध्यान से मतलब केवल शैक्षणिक ध्यान से नहीं है, बल्कि यह एक मन की एकाग्रता का भाव है जो कि किसी भी कार्य में लगाया जा सकता है। यह कोई गतिविधि नहीं, मनोदशा है। कुछ छात्राओं ने पूछा कि पढ़ाई में प्रतिद्वंद्विता बढ़ गई है, ऐसे में आत्म-विश्वास डगमगाए तो क्या किया जाए। इस पर पीएम मोदी ने कहा कि स्वयं की किसी और से नहीं, स्वयं से स्पर्धा होनी चाहिए। यदि हम स्वयं के एकल प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करें तो सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी जो उत्तरोत्तर विकास करेगी। अधिकांश स्थानों से छात्रों का एक कॉमन सवाल आया कि अभिभावकों की अपेक्षाओं का बोझ कुछ अधिक हो गया है। 90 फीसदी अंकों पर भी वे संतुष्ट नहीं होते। इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि यह तुलना निराधार है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमता होती है। ऐसे में प्रदर्शन निजी ही होता है।
इस संवाद आयोजन के क्रम में प्रधानमंत्री ने अभिभावकों के संदेश पर भी कहा। उन्होंने स्टूडेंट्स से आह्वान किया कि वे भी अपने अभिभावकों की भावनाओं को समझें और इस बात को जानें कि उनके भी कुछ सपने हैं जो वे पूरे होते देखना चाहते हैं। यहां पीएम ने एक अहम बिंदु पर ज़ोर देते हुए कहा कि घर का माहौल खुला होना चाहिये जो पढ़ाई में बाधा ना बने। इस अनूठे संवाद में पीएम मोदी ने मोटे तौर पर जिन बातों पर ज़ोर दिया वो यही थीं कि पढ़ाई के समय एकाग्रता बनाए रखें, मोबाइल फोन का सीमित उपयोग करें, परीक्षा के भय से बाहर निकलें, सहज रहें, खेलकूद में भी निरंतर सक्रिय बने रहें, मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दें, दोस्तों से मिलें और लक्ष्य पर केंद्रित रहें। निश्चित ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह पहल सार्थक और सामयिक है।
जीवन की पाठशाला में तो वे स्वयं को हमेशा एक छात्र ही मानते आए हैं, लेकिन इस बार वे कमोबेश स्वयं एक शिक्षक कम दोस्त की भूमिका में ढलकर सामने आए। उनके इस सकारात्मक स्वरूप ने लाखों छात्रों का दिल जीत लिया। कहने की आवश्यक्ता नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी एक बहुआयामी व्यक्तित्व एवं सर्वांगीण विकास के पक्षधर व्यक्ति हैं। निश्चित ही देश ने उनके भीतर छुपे इस मोटिवेशनल स्पीकर को देखकर पसंद किया होगा और उनके बताए रास्तों को अपनाकर छात्र अपनी परीक्षा में तनाव से मुक्ति पाकर सफलता प्राप्त करेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)