समरकंद से निकला सार्थक संदेश

मोदी-पुतिन संवाद से दुनिया को उम्मीद है कि यूक्रेन संकट का हल जरुर निकलेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने एससीओ के देशों का आह्नान किया कि कोरोना महामारी और खाद्य उर्जा संकट की समस्या से निपटने के लिए एक भरोसेमंद सप्लाई चेन तैयार करे। गौर करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को धार देकर पाकिस्तान की कसकर घेराबंदी की। दरअसल भारत युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में सामान भेज रहा है और पाकिस्तान अपने रास्ते से जाने देने में अवरोध पैदा कर रहा है। उम्मीद है कि अब पाकिस्तान इस हरकत से बाज आएगा।

रुस-यूक्रेन संघर्ष के बीच उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में संघाई को-ऑपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) का वार्षिक शिखर सम्मेलन गहरे निहितार्थों को समेटे हुए है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन के जरिए सामयिक मुद्दों, विस्तार व सहयोग की प्रगाढ़ता की वकालत की वहीं  भारत की भावी-प्रभावी वैश्विक भूमिका को भी रेखांकित कर दिया। उन्होंने दुनिया के मनोभावों का इजहार करते हुए रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय बैठक में दो टूक कहा कि आज का युग युद्ध का नहीं है। यूक्रेन संकट का हल बातचीत से निकाला जाना चाहिए। पुतिन ने मोदी की चिंता को गंभीरता से लिया और भरोसा दिया कि वह यूक्रेन संकट को खत्म करना चाहते हैं। 

मोदी-पुतिन संवाद से दुनिया को उम्मीद है कि यूक्रेन संकट का हल जरुर निकलेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने एससीओ के देशों का आह्नान किया कि कोरोना महामारी और खाद्य उर्जा संकट की समस्या से निपटने के लिए एक भरोसेमंद सप्लाई चेन तैयार करे। गौर करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को धार देकर पाकिस्तान की कसकर घेराबंदी की। दरअसल भारत युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में सामान भेज रहा है और पाकिस्तान अपने रास्ते से जाने देने में अवरोध पैदा कर रहा है। उम्मीद है कि अब पाकिस्तान इस हरकत से बाज आएगा।

माना जा रहा था कि पूर्वी लद्दाख में गोगरा हाॅट स्प्रिंग क्षेत्र से चीन की सेना के पीछे हटने के बाद प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हो सकती है। इस संभावित बैठक से रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैसे भी देखें तो किसी एक मुलाकात मात्र से रिश्तों की कड़ुवाहट मिठास में कहां बदलती है। हां, चीनी राष्ट्रपति ने 2023 में एससीओ की मेजबानी भारत को सौंपे जाने पर जरुर बधाई दी। उन्होंने कहा भी कि वह भारत की अध्यक्षता का समर्थन करेंगे।

एससीओ सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री मोदी की तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन से मुलाकात हुई। दोनों देशों ने सहयोग बढ़ाने पर सहमति जतायी। इस मुलाकात से पाकिस्तान को चुभन हो सकती है। इसलिए कि वह तुर्की को अपना सबसे बड़ा दोस्त मानता है और उसके साथ मिलकर वैश्विक मंचों के जरिए भारत की घेराबंदी करता है। लेकिन खाद्यान्न संकट से परेशान तुर्की की बदहाली से साफ है कि भारत को लेकर अब उसके रुख में नरमी आएगी। 

प्रधानमंत्री मोदी और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के बीच चाबहार प्रोजेक्ट और अफगानिस्तान को लेकर चर्चा हुई। यह मुलाकात इस मायने में महत्वपूर्ण है कि मौजूदा समय में दोनों देश दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य एशिया के बीच संपर्क में सुधार की बुनियाद को मजबूत कर रहे हैं।

भारत की नजर से देखें तो एससीओ सम्मेलन में भारत की भूमिका बेहद प्रभावी रही और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने व्यवसायिक हितों को शीर्ष पर रखा। उन्होंने इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था के 7.5 फीसद की दर से बढ़ने की उम्मीद को रेखांकित करते हुए दुनिया को अवगत कराया कि यह बड़ी अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा है। उन्होंने दुनिया को संदेश दिया कि भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बन रहा है। इनोवेशन और 70 हजार से अधिक स्टार्टअप के बूते भारतीय अर्थव्यवस्था की गति तेज है। दुनिया चाहे तो भारत के अनुभव का फायदा उठा सकती है। प्रधानमंत्री ने एससीओ का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि उसे मिलेट फूड फेस्टिवल पर विचार करना चाहिए। उन्होंने वर्ष 2023 को यूएन इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स के रुप में मनाने का सुझाव दिया। 

उम्मीद है कि इस वार्षिक शिखर सम्मेलन से क्षेत्रीय सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के अलावा आर्थिक विकास को गति देने, व्यापार, निवेश, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य सुविधाओं, कृषि, सूचना एवं संचार प्रौद्यागिकी के क्षेत्र में विस्तार को नया आयाम मिलेगा। जाहिर है कि मध्य एशिया एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है। एससीओ में भारत की प्रभावी भूमिका से इस क्षेत्र में उभर रही आतंकी गतिविधियों अंतर्राष्ट्रीय खतरों, अवैध ड्रग कारोबार, जैसी चुनौतियों से निपटने और सदस्य देशों को गोलबंद करना आसान होगा। 

साभार : PIB

एससीओ में भारत की सहभागिता पर नजर दौड़ाएं तो 2018 में चीन के तटीय शहर किंगदाओ में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में पहली बार शिरकत करने का मौका मिला। इससे पहले बतौर पर्यवेक्षक की भूमिका में था। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में संपन्न सम्मेलन में भारत की स्थायी सदस्यता पर मुहर लगी और महज पांच वर्षों में भारत ने अपनी धारदार भूमिका से एससीओ के चरित्र को बदल दिया। 

भारत की सदस्यता से पहले संगठन के सदस्य राष्ट्रों का कुल क्षेत्रफल 30 मिलियन 189 हजार वर्ग किमी और जनसंख्या तकरीबन 1.5 बिलियन था। लेकिन अब भारत के जुड़ जाने से संगठन का क्षेत्रफल व जनसंख्या व्यापक हो गया है। आज की तारीख में यह संगठन विश्व की तकरीबन आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन बन चुका है। चूंकि इस संगठन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा यूरोपिय संघ, आसियान, काॅमनवेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी संबंध स्थापित किए हैं इस नाते भारत की भूमिका और अधिक व्यापक हो जाती है। 

गौर करें तो अभी तक एससीओ पर चीन का वर्चस्व रहा है। लेकिन अब भारत की अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ रही है ऐसे में संगठन में भारत की भूमिका और स्वीकार्यता दोनों बढ़ी है। इस कारण चीन के व्यापक प्रभाव में कमी और दृष्टिकोण में बदलाव आ रहा है। एससीओ के दबाव के कारण चीन आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान को प्रश्रय तो दे रहा है लेकिन उसे शर्मसार भी होना पड़ रहा है। चूंकि एससीओ के सदस्य देशों का भारत से अति निकटता है ऐसे में उम्मीद किया जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चीन के रुख में बदलाव आ सकता है। 

ऐसा इसलिए कि संघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देश मसलन रुस, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। अगर चीन समर्थन करता है तो भारत को स्थायी सदस्यता मिल सकती है। संघाई सहयोग संगठन के इतिहास में जाएं तो अप्रैल, 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रुस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एकदूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने को राजी हुए। तब इस संगठन को शंघाई फाइव कहा गया।

जून 2001 में चीन, रुस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई संगठन सहयोग शुरु किया और धार्मिक चरमपंथ से निपटने के अलावा व्यपार व निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया। शंघाई फाइव के साथ उजबेकिस्तान के आने के बाद इस समूह को शंघाई सहयोग संगठन कहा गया। यह संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका कार्यालय बीजिंग में है और क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना ताशकंद में है। राज्य प्रमुखों की परिषद इस संगठन का सर्वोच्च निकाय है जिसकी प्रतिवर्ष बैठक होती है। इसके अलावा शासन प्रमुखों की परिषद (एचजीसी) की वार्षिक बैठक होती है।

शंघाई सहयोग संगठन में 2008 से डायलाॅग पार्टनर यानी वार्ताकार सहयोग की व्यवस्था की गयी है। 2009 के शिखर सम्मेलन में सबसे पहले श्रीलंका और बेलारुस को डायलाॅग पार्टनर का दर्जा दिया गया। अफगानिस्तान, शंघाई सहयोग संगठन-अफगानिस्तान कांटैट ग्रुप का हिस्सा है और इस गु्रप की स्थापना 2005 में की गयी थी।

इस संगठन की शिखर बैठकों में संयुक्त राष्ट्र, सीआईएस, यूरेशियन इकोनाॅमिक कम्युनिटि एवं सामुहिक सुरक्षा संधि संगठन यानी सीएसटीओ के प्रतिनिधि भी भाग लेते हैं। 2005 में कजाकिस्तान के आस्ताना में भारत के प्रतिनिधियों ने पहली बार शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में भाग लिया और सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन किया। 

अच्छी बात है कि भारत ने एससीओ की सदस्यता ग्रहण करने के उपरांत हर सम्मेलन में यूरेशियाई धरती के लोगों के साथ बेहतर संबंध बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहरायी। जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने समरकंद सम्मेलन के जरिए यूक्रेन संकट और खाद्यान्न संकट से निपटने के साथ आपसी सहयोग बढ़ाने का मंत्र दिया, उससे दुनिया भर में भारत की प्रभावकारी भूमिका और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व कौशल की सराहना हो रही है।

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)