प्रियंका के भाषण का सन्दर्भ स्पष्ट है। वह बताना चाहती हैं कि सभी समस्याएं पांच वर्ष में पैदा हुई हैं। कांग्रेस शासन में कोई बेरोजगारी, गरीबी नहीं थी। किसानों को बिना कठिनाई के यूरिया और उन्नत बीज मिलते थे, सिंचाई की सभी जगह व्यवस्था थी आदि। जबकि वास्तविकता ये है कि पांच वर्ष में नरेंद्र मोदी ने गरीबों, बेरोजगारों, किसानों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं। करोड़ों परिवारों को गैस कनेक्शन, आवास, यूरिया, सिंचाई आदि की दिशा में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषण, भाषा, शैली के चलते स्वयं को हल्का बना लिया है। उनकी बातों में अध्यक्ष पद की गरिमा का नितांत अभाव है। वह प्रधानमंत्री के लिए अमर्यादित व सड़क छाप नारे लगवाते हैं। राफेल सौदे पर उनके पास कोई तथ्य नहीं, फिर भी हंगामा करते रहते हैं। ऐसे में यह माना गया था कि प्रियंका गांधी वाड्रा का चुनाव प्रचार अलग ढंग का होगा। लेकिन वह भी पुराने और तथ्यविहीन मुद्दे ही उठा रही हैं।
प्रियंका ने साबरमती आश्रम में एक वृक्ष के नीचे बैठने का उल्लेख ऐसे किया जैसे यहां उनको देशभक्ति का ज्ञान प्राप्त हुआ। वह बोलीं कि वे साबरमती के उस आश्रम में गईं, जहां से महात्मा गांधी ने इस देश की आजादी का संघर्ष शुरू किया था। वहां पेड़ों के नीचे बैठे हुए उनकी आँख में आंसू आ गए। वैसे यह घिसापिटा मुद्दा है। लेकिन प्रियंका आज भी इसी के सहारे हैं।
दूसरी चीज कि प्रियंका राहुल, लालू, तेजस्वी, अखिलेश आदि की तरह पन्द्रह लाख रुपये के लिए परेशान हैं, उन्हें भी नफरत बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि जो पन्द्रह लाख आपके खाते में आने थे, वह कहां हैं। दो करोड़ नौकरियों के वादे का क्या हुआ। फिजूल के मुद्दे उठाए जाएंगे, इसलिए आपको जागरूक होना है, क्योंकि इस चुनाव के जरिए आप अपना भविष्य चुनने जा रहे हैं।
प्रियंका के भाषण का सन्दर्भ स्पष्ट है। वह बताना चाहती हैं कि सभी समस्याएं पांच वर्ष में पैदा हुई हैं। कांग्रेस शासन में कोई बेरोजगारी, गरीबी नहीं थी। किसानों को बिना कठिनाई के यूरिया और उन्नत बीज मिलते थे, सिंचाई की सभी जगह व्यवस्था थी आदि। जबकि पांच वर्ष में नरेंद्र मोदी ने गरीबों, बेरोजगारों, किसानों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू की है। करोड़ों परिवारों को गैस कनेक्शन, आवास, यूरिया, सिंचाई आदि की दिशा में अभूतपूर्व कार्य हुए हैं।
कांग्रेस की महासचिव और स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ बड़ी बिडंबना है। एक तरफ वह गांधी नगर में लोगों को महात्मा गांधी के चिंतन का पाठ पढ़ा रही थीं, दूसरी तरफ उनके पति रॉबर्ट वाड्रा अवैध व अकूत सम्पत्ति के आरोप में जांच एजेंसियों का चक्कर लगा रहे थे। उनपर राजस्थान और हरियाणा में कृषि भूमि घोटाले के आरोप पहले से थे, अब लंदन में अनेक सम्पत्तियां भी चर्चा में हैं। यदि इन आरोपो में तनिक भी सच्चाई है, तो यह मानना पड़ेगा कि प्रियंका ने अपने पति को गांधी चिंतन से वंचित रखा है। इतना ही नहीं सब कुछ उनकी जानकारी में था, इसलिए जिम्मेदारी उनकी भी बनती है।
महात्मा गांधी ने तो सम्पत्ति पर विस्तृत विचार व्यक्त किये थे। इस संदर्भ में उन्होंने ईमानदारी, अपरिग्रह और ट्रस्टीशिप का विशेष महत्व बताया। इस प्रकार उन्होंने निजी व समाज जीवन का दर्शन दिया। कुछ समय पहले स्वयं प्रियंका भी हिल स्टेशन पर अपने सपनो के भवन के लिए बहुत सक्रिय थीं। क्या ऐसे में महात्मा गांधी की दुहाई देना दोहरे आचरण का प्रमाण नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि कांग्रेस का आचरण गांधीवाद के विरोध में रहा है।
इसके शीर्ष स्तर पर परिवारवाद, जातिवाद और सम्प्रदायवाद है। यही कारण है कि इसके शीर्ष नेता आतंकी सरगना का नाम सम्मान से लेते है। प्रियंका को भी परिवारवाद के चलते लाभ मिला है। गांधीनगर की सभा में जातिवादी आंदोलन से निकले नेता को भी पार्टी में शामिल करने के बाद महिमामण्डित किया गया, विडंबना देखिये कि इसी मंच से महात्मा गांधी के दर्शन पर उपदेश भी दिए जा रहे थे।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)